इन दिनों दिल्ली के उन छोटे दुकानदारों की मुश्किलें तेज़ हो गई हैं जिन्होंने पगड़ी देकर दुकान किराए पर ली थी। अब उन्हें अपने दुकान से निकाले जाने का डर सता रहा है। राजधानी में करीब चार लाख ऐसे कारोबारी हैं जिनकी दुकानें अब उन्हें खाली करनी पड़ सकती हैं।
गौरतलब है कि कम-से-कम 10 लाख लोग पगड़ी की दुकानों से निकाले जाने पर प्रभावित होंगे। इसकी वजह से 20-30 लाख मज़दूर और सप्लायर भी प्रभावित होंगे।
क्या कहते हैं व्यापारी संगठन
इन सबके बीच राजधानी के छोटो दुकानदारों से जुड़े व्यापारी संगठनों का कहना है कि ‘दिल्ली किराया कानून’ में संशोधन कर दुकानदारों को राहत दिलाई जाए। अगर 15 दिनों में केंद्र सरकार दिल्ली के दुकानदारों को राहत देने के लिए कोई कदम नहीं उठाती है, तब वे आगामी लोकसभा चुनाव में नोटा का प्रयोग करेंगे।
आपको बता दें ‘राजधानी पगड़ी किरायेदार संगठन’ के सदस्यों ने इस मुद्दे पर दिल्ली के सांसदों से कई दफा मुलाकात की है। महेश गिरि, डॉ. हर्षवर्धन, डॉ. उदित राज और मनोज तिवारी जैसे बीजेपी के सांसदों ने तत्कालीन शहरी विकास मंत्री वेंकेया नायडू के समक्ष व्यापारियों की परेशानियां रखी हैं।
अमित शाह का आश्वासन भी फेल
दुकानदारों से जुड़े व्यापारी संगठनों ने इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से इन 4 सालों में कम-से-कम 15 बार मुलाकात की है। 2016 में अमित शाह ने सकारात्मक आश्वासन भी दिया था लेकिन ज़मीन माफिया से जुड़े लोगों के दबाव के कारण सरकार ने कोई फैसला नहीं किया।
दुकानदारों को राहत देने की मांग
दुकानदारों का कहना है कि उन्होंने केंद्रीय शहरी विकास और आवास मंत्री हरदीप सिंह पुरी समेत कई बीजेपी नेताओं से 2018 में भी मुलाकात की थी लेकिन उनकी समस्या दूर नहीं हुई। ‘राजधानी पगड़ी किरायेदार संगठन’ का कहना है कि दिल्ली किराया कानून में संशोधन कर दुकानदारों को तुरंत राहत दिलाई जाए।
क्या यह सौतेला व्यवहार है?
व्यापारी संगठनों के मुताबिक देश के सभी राज्यों में पगड़ी किरायेदारोंं को किसी भी प्रकार की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ रहा है लेकिन दिल्ली के पगड़ी किरायेदारों के साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है। दिल्ली के नेता और केन्द्र सरकार भू-माफियाओं के दबाव में आकर इन चीज़ों को बढ़ावा दे रही है।
बकौल व्यापारी संगठन, “दिल्ली के लगभग सभी व्यापारी संघों की मांग है कि इस बजट सत्र में सरकार तुरंत एक संशोधन विधेयक लाकर उसे पारित करें। अगर सुनवाई नहीं की गई तब दिल्ली के सभी व्यापारी मतदान नहीं करने पर बाध्य हो जाएंगे।”