हवाओं में कीलें उड़ रहीं है
चुभ रही है मासूमियत को,
आसमां नफरतों के आग
धरती पर पटक रहा है।
इंसानियत की ज़मी
फटकर तांडव कर रही है,
हर एक शख्स के रूह में
अनगिनत अनकहे खौफ हैं।
ये हवाएं बदल रही हैं
फिज़ाओ की तबियत,
ये साज़िश है
उन हुक्मरानों की
जो कत्ल किए जा रहे हैं
मानवता और प्रेम के हर श्रोत को।
खंजर मारा जा रहा है
लगातार बेहवास,
उन सारे स्वप्न को
जो बेहतर कल के लिए बुने गए थे।