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कविता: “ये हवाएं बदल रही हैं, फिज़ाओ की तबियत”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

हवाओं में कीलें उड़ रहीं है

चुभ रही है मासूमियत को,

आसमां नफरतों के आग

धरती पर पटक रहा है।

 

इंसानियत की ज़मी

फटकर तांडव कर रही है,

हर एक शख्स के रूह में

अनगिनत अनकहे खौफ हैं।

 

ये हवाएं बदल रही हैं

फिज़ाओ की तबियत,

ये साज़िश है

उन हुक्मरानों की

जो कत्ल किए जा रहे हैं

मानवता और प्रेम के हर श्रोत को।

 

खंजर मारा जा रहा है

लगातार बेहवास,

उन सारे स्वप्न को

जो बेहतर कल के लिए बुने गए थे।

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