प्रतिकार- पूंजीपतियों का
गरीब हूं, गुनहगार नहीं
जो सहन करूं तकलीफें तुम्हारे पापों की
तुमने लूटे ज़मीन, जंगल ली जाने कई नादानों की।
घोला ज़हर हवा में तुमने, नदियों को दूषित किया
जलवायु का चक्र बिगाड़ा, किसानों को त्रस्त किया।
कई आशियाने उजाड़े तुमने, संस्कृतियों को मिटा दिया
हुआ विरोध जो लूट का तो, चैरिटी का ढोंग किया।
पर इससे नहीं मिलेगी माफी तुम्हारे गुनाहो की
गरीब हूं, गुनाहगार……
चेतावनी- नेताओ को
सुना है ज़मीर बिकता है बाज़ारों में
होते हैं ईमान के सौदे।
बिक जाते हैं लोग जो कोई कीमत लगा दे
जिसको चुना था हमने, उसने ही विश्वासघात किया।
धूल झोंक कर आंखों मे, लुटेरों का साथ दिया
नहीं रही फिक्र उसे अपने वादों की,
गरीब हूं, गुनहगार नहीं जो…….
आह्ववान- जनता से
आज भी कइंयों के लिए ख्वाब है दो वक्त की रोटी
पहनने को कपड़े और रहने को मकान नहीं
जी रहे हैं वे बेबस इंसान।
ख्याल है तुम्हें किसने इनका किया यह हाल
किसने इनके हक को मारा, ज़िन्दगी को किया बदहाल।
अब ज़रूरी है पहचान उन बेईमानो की
गरीब हूं गुनहगार नहीं….