अलगाववादी गठबंधन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना का मकसद राजनीतिक नज़रिए से कश्मीर के अलगाव के लक्ष्य को हासिल करना है। इसकी स्थापना 9 मार्च 1993 को की गई थी।
भारतीय अधिकारियों का मानना है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी संगठनों का प्रतिनिधित्व करती है। इसे बनाने की ज़रूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंसक गतिविधियों को मान्यता नहीं दी जाती है।
लिहाज़ा हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के ज़रिए कश्मीर समस्या के अंतरराष्ट्रीकरण और राजनीतिक समाधान के रास्ते ढूंढे जाएं। रास्ते तो नहीं मिले लेकिन 1993 के बाद भारत पर लगातार आतंकी हमले होते रहे हैं।
इसके अलावा कश्मीर में आतंकी आए दिन ना सिर्फ पुलिसकर्मियों पर हमले कर रहे हैं बल्कि उनके परिवार वालों को भी निशाना बना रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हुर्रियत नेताओं की मदद से भारत पर आतंकी हमले कराए जा रहे हैं? इसके लिए सबसे पहले जानना होगा कि हुर्रियत या अलगावादी किसे कहते हैं और इनका मकसद क्या है?
‘ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जम्मू और कश्मीर’ के 23 विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों का गठबंधन है। यह एक राजनीतिक मोर्चा है और कश्मीर के भारत से अलगाव की वकालत करता है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने ऐलान किया है कि वह जम्मू और कश्मीर राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में हिस्सा नहीं लेगी।
हालांकि कई प्रमुख मुद्दों पर इस गठबंधन के सदस्यों के भीतर आम राय नहीं है और समय-समय पर इनके मतभेद खुलकर सामने आते हैं। वर्षों तक अलग-थलग रहने के बाद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने नवंबर 2000 में भारत सरकार के एक तरफा युद्ध विराम के ऐलान के बाद भारत सरकार से संपर्क स्थापित करने के संकेत दिए थे लेकिन दोनों पक्षों के अपने-अपने रुख पर अड़े रहने से ऐसा नहीं हो सका।
गतिविधियां
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस मुख्यत: जम्मू-कश्मीर में चरमपंथी संगठनों से संघर्ष कर रही भारतीय सेना की भूमिका पर सवाल उठाने के अलावा मानवाधिकार की बात करती है। भारतीय सेना की कार्रवाई को सरकारी आतंकवाद का नाम देती है और कश्मीर पर भारत के शासन के खिलाफ हड़ताल और प्रदर्शन करती है।
15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के समारोहों का बहिष्कार भी करती आई है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने अभी तक एक भी विधानसभा या लोकसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस खुद को कश्मीरी जनता का असली प्रतिनिधि बताती है।
राज्य सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक अलगाववादियों पर सालाना 100 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इसमें उनकी सुरक्षा पर केंद्र सरकार की रकम भी शामिल है। बता दें कि कश्मीर के अलगाववादियों पर हो रहे खर्च का ज़्यादातर हिस्सा केंद्र सरकार उठाती रही है।
इस समय यह महत्वपूर्ण नहीं है कि भारत अपनी सीमाओं से बाहर क्या करता है। अहम बात यह है कि अपनी सीमाओं के भीतर वह क्या कर रहा है और उसमें कितनी सावधानी, सकारात्मकता और दृढ़ता का परिचय दे रहा है। हिंसा की अनुपस्थिति शांति नहीं होती, यह स्थायी शांति बहाली की शर्त होती है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अब वह वक्त आ गया है जब हिन्दुस्तान के हर मज़हब के लोगों को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होते हुए अपनी आवाज़ बुलंद करनी है।
किसी भी आतंकवादी घटनाओं के बाद ऐसा देखा जाता है कि लोग उग्र हो जाते हैं लेकिन ऐसी चीज़ों में उग्रता से काम नहीं चलने वाला है बल्कि शहीदों के परिवारवालों के साथ खड़े रहने की ज़रूरत है। उग्रता चाहे किसी भी रूप में हो लेकिन वह देश के लिए खतरा ही है।