जनता की नब्ज़ को समझना और उसके अनुसार रणनीति तैयार करके शासन करना ही राजनीति है। भक्तगिरी के चश्मे से बाहर निकलकर वास्तविकता के नज़रिए से देखने पर यही पता चलेगा कि इन पांच सालों में केवल दो ही नई चीज़ें मिली हैं।
अब कुछ लोग कहेंगे कि यह भी भाजपा की उपलब्धि है मगर धीरज रखिए हम बता रहे हैं कि वे दो चीज़ें क्या हैं? एक तो ऐसा व्यक्ति मिला जिसने दुनिया के सबसे युवा देश को जितना चाहा झूठ बोलकर बेवकूफ बनाया।
अब आप इसे उपलब्धि कहते हैं तो कहिए क्योंकि इसमें उनकी उपलब्धि है तो आपकी बेवकूफी हो सकती है। अब दूसरी नई चीज़ है 2000 रुपए का नोट। इसे भी उपलब्धि कहते हैं तो कह सकते है लेकिन 500 के चार नोटों को बदलने के दिन दिनभर एटीएम की लाइनों में भूखे-प्यासे खड़े होना समझदारी तो नहीं है।
क्या गुमराह हुई भारत की जनता?
अब आते हैं उन मुद्दों पर जिनकी वजह से भारत की जनता गुमराह हुई है। यह बात सभी जानते हैं कि भारत एक आस्था और श्रद्धा का देश है। ऐसे में यहां की जनता को इस्तेमाल करना ज़्यादा आसान हो जाता है। इन सबके बीच मंदिर मुद्दे पर अधिक ज़ोर दिया जाता है।
हां, हम राम मंदिर की ही बात कर रहे हैं। इन पांच सालों में मंदिर के लिए केवल तारीख ही मिली, मामले में कोई प्रगति नहीं हुई लेकिन इन पांच साल में भाजपा बहुत आगे बढ़ गई।
आप सोचिए न्यायपालिका पर सवाल उठाने के लिए मीडिया के सामने आए रंजन गोगई को मनाने और अपने सांचे में ढालने के लिए जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया जा सकता है तो क्या मंदिर मामले में जल्दी सुनवाई करने के लिए सरकार उनसे नहीं कह सकती?
क्या भाजपा मंदिर निर्माण चाहती ही नहीं है?
खैर, भाजपा ही एक ऐसी पार्टी है जो मंदिर नहीं बनाना चाहती है। यह बात अब मुस्लिम समुदाय के लोग भी समझ चुके हैं। इसलिए 2019 के चुनाव में मुस्लिम भी शायद भाजपा को ही वोट दें क्योंकि यह अकेली पार्टी है जो मंदिर मुद्दे पर मुस्लिम विरोधियों को बेवकूफ बना सकती है।
भष्टाचार मुक्त भारत का सपना दिखाकर खुद बैठे गद्दी पर
एक और मुद्दा जिस पर स्वयं काँग्रेसी भी गुमराह हो गए। 2014 के आम चुनाव में अन्ना हज़ारे, नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, बाबा रामदेव, काँग्रेस के भ्रष्ट नेता (जो भाजपा में शामिल हुए) और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा। ज़ाहिर है काँग्रेस 10 सालों से केंद्र में विराजमान थी जिस पर आरोप लगाने के स्कोप भी काफी थे।
उस दौरान जनता के अंदर भ्रष्टाचार को लेकर काफी आक्रोश था जिसे मुद्दा बनाकर यह सभी लोग काँग्रेस पर टूट पड़े। जनता को भी अन्ना हज़ारे के रूप में महात्मा गाँधी दिखने लगे। जिस भ्रष्टाचार का रोना रोया गया और उसके ज़रिए जनता के दिलों में दस्तक देते हुए मोदी पीएम बन गए, केजरीवाल मुख्यमंत्री बने, रामदेव बड़े बिज़नेसमैन और अन्ना बापू तो नहीं बन पाए लेकिन छोटे से बाबू (बच्चा) बनकर ज़रूर रह गए।
इन सबके बीच काँग्रेस के भ्रष्ट नेता बीजेपी में शामिल होकर आज भी मज़े ले रहे हैं। जनता को काँग्रेस मुक्त भारत का सपना दिखा कर मोदी खुद काँग्रेस की खिदमत में लगे हुए हैं।
मनरेगा का बखान विदेशों में किया जा रहा है जो कि काँग्रेस द्वारा शुरू की गई स्कीम है। खैर, काँग्रेस तो खत्म नहीं हुई लेकिन भारत की जनता के अच्छे दिन खत्म हो गए।
अब भी अगर भारत की जनता चाहे तो अपनी गलती में सुधार कर सकती है। मंदिर तो बन ही जाएगा लेकिन उसे आस्था तक ही सीमित रखा जाए तो बेहतर है क्योंकि लूटने वाले जानते हैं कि ताला कौन-सा जल्दी टूट सकता है। इसलिए आप तालों के भरोसे ना रहकर अपने अनमोल मताधिकार का प्रयोग करें।