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खुशखबरी और तरीकों से भी सुनी जा सकती है सिर्फ ‘माँ’ बनना ही ज़रिया नहीं

एक खुशमिज़ाज और मिलनसार लड़की है नेहा लेकिन बीते 2 साल से उसके व्यवहार में कुछ बदलाव आए हैं। पार्टी और शादी ब्याह की महीनों पहले से तैयारी करने वाली नेहा अब बहाने बनाकर वहां जाने से बचती है, रिश्तेदारों से नज़रें चुराती है, लेकिन क्यों? आखिर क्या कारण होगा उसके इस बदलाव का?

इसकी वजह भी हमारे समाज में बड़ी आम सी है। नेहा की शादी को 3 साल हो चुके हैं और अभी तक उसने अपने चहेते रिश्तेदारों को खुशखबरी नहीं सुनाई है यानि वो अभी तक माँ नहीं बन पाई है। यही कारण है कि अब जहां भी उनसे टकराती है उनका पहला सवाल यही होता है कि ‘अरे तुम कब दोगी खुशखबरी बहुत देर हो रही है, ज़्यादा देर करोगी तो बाद में बहुत दिक्कत आएगी।’

पहले तो यह सवाल सुनकर नेहा हंसकर टाल देती थी लेकिन धीरे-धीरे यही सवाल उसके गुमसुम रहने का कारण बनने लगा। वो कोशिश करती थी कि कम से कम लोगों का सामना हो, क्योंकि बार-बार एक ही सवाल अब कानों में चुभने लगा था। कोई कहता अपना नहीं तो अपनी सास का सोचो क्या उनका मन नहीं करता होगा पोता खेलाने का? कोई कहता बाद में दिक्कत होगी। यहां तक कि लोग अब डॉक्टर भी सुझाने लगे थे कि दिखा लो हो सकता है कि कोई परेशानी हो।

ये एक सच्चाई है, जो आज के समय में किसी ना किसी के घर की कहानी है। शादी के तुरंत बाद ही रिश्तेदारों की खुशखबरी सुनाने की चिंता ना केवल महिलाओं पर प्रेशर डालती है बल्कि कई बार उनके मानसिक तनाव का कारण भी बनने लगती हैं।

”अक्सर ऐसा होता है कि पति-पत्नी तुरंत बच्चा नहीं चाहते इसका कारण कुछ भी हो सकता है। उनका करियर, पैसे की दिक्कत या आपसी तालमेल। इस तरह के केस में पुरुष तो सवालों का कम सामना करते हैं लेकिन महिलाएं इनका शिकार होने से नहीं बच पातीं। कई बार अगर वाकई महिलाओं को कोई सेहत से जुड़ी परेशानी है तो ऐसे में बार-बार एक ही सवाल, डिप्रेशन का कारण बन जाता है और धीरे-धीरे इसका असर उनकी शादीशुदा ज़िंदगी पर भी पड़ने लगता है।” ये कहना है लखनऊ की मनोवैज्ञानिक डॉ नम्रता सिंह का।

सिर्फ औरत क्यों ज़िम्मेदार?

लखनऊ की रहने वाली एक महिला ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया, “मेरी सास हमेशा मुझे पड़ोसियों के उदाहरण देती हैं कि उनकी शादी बाद में हुई, वो मां बन गईं तुममें कोई कमी होगी डॉक्टर को दिखाओ।

पहली बात तो मेरे और मेरे पति ने कोई प्लानिंग नहीं की है अभी बच्चे को लेकर अपनी नौकरी की वजह से। उनके इन सवालों से मेरे मन में एक बात हमेशा आती है कि इतना आगे बढ़ने के बाद भी हमारे समाज में बच्चा ना होना सिर्फ औरत की कमी क्यों मानी जाती है। आदमियों से कोई कभी ये पहले नहीं कहता कि हो सकता है तुम में कमी हो? ये उनकी मर्दानगीं पर सवाल खड़ा करने के बराबर होता है।

बच्चे पैदा करने का फैसला पति-पत्नी का होना चाहिए। रिश्तेदारों के दबाव में आकर इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी उठाने का फैसला कई बार गलत भी साबित हो सकता है। इसके अलावा अगर कोई औरत मां नहीं भी बनती है तो उससे खुश रहने का हक ना छीनिए, दिन रात आपके ये सवाल उसके दिल दिमाग पर गहरी चोट करते हैं। खुशखबरी और तरीकों से भी सुनी जा सकती है सिर्फ मां बनना ही ज़रिया नहीं है।

अपना खून होना ज़रूरी है‘ जैसी मानसिकता अभी भी हम पर हावी

एक महिला ने बताया कि वो मां बनकर बच्चा गोद लेना चाहती थी, मैं चाहती थी कि परिवार के ‘वंश’ को आगे बढ़ाने के बजाय मुझे इंसानियत के बारे में सोचना चाहिए और इसके लिए आपको अपना बच्चा पैदा करने की ज़रूरत नहीं है लेकिन उसके इस फैसले में किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया क्योंकि वो अपना खून चाहते थे। महिला के पति स्वयं एक प्रतिष्ठित कंपनी में इंजीनियर हैं लेकिन उन्होंने भी गोद लेने के फैसले को सिरे से नकार दिया।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में 2 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो अनाथ हैं लेकिन फिर भी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके पीछे का कारण ‘अपना खून होना ज़रूरी है’ जैसी मानसिकता का आज भी हम पर हावी होना है।

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