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क्यों ज़रूरी है आपके लिए गज़ब वुमनिया की तरह “हाथ से निकली हुई” होना

गज़ब वुमनिया

गज़ब वुमनिया

मेरी एक दोस्त ने मुझसे कहा, “तुम्हारी हंसी कितनी अजीब है। लड़कियों को इस तरह से नहीं हंसना चाहिए। लड़कियों को केवल मुस्कुराना चाहिए, ताकि उनके दांत ना दिखे। इसलिए ठीक से हंसा करो।”

उसकी बातों को सुनने के बाद मुझे काफी गुस्सा आया और लगा कि पलटकर एक अच्छा जवाब दूं मगर मैंने सिर्फ उससे यही पूछा कि लड़कियों के लिए ‘आइडियल हंसी’ कैसी होनी चाहिए? होठों को कितनी दूरी में फैलाना है ताकि वह हंसी भी लगे और मेरे दांत भी बाहर ना निकले।

मेरे द्वारा यह बातें कहने के बाद वह कहती हैं, “लड़कियों की हंसी शालीन और सीमित होनी चाहिए।” मुझे उस पर गुस्सा तो आया लेकिन इसमें गलती उसकी नहीं है। दोष इस समाज का है, उस परिवेश का है जिसने उसे ऐसा बना दिया।

ठीक से बैठो, ठीक से बोलो, ठीक से हंसो, ज़्यादा कूदफान मत करो, पैरों को समेट कर बैठो, पूरे और ढंग के कपड़े पहनो, अकेले बाहर मत जाओ और इधर-उधर मत जाओ जैसी तमाम बातें आज भी हमारे समाज में होती हैं।

मुझे तो आज तक समझ नहीं आया कि लड़कियों के लिए ठीक की परिभाषा क्या है? लड़की की हाइट कम है, लड़की की रंगत सांवली है, चेहरे पर दाग धब्बे हैं तो उसकी शादी कैसे होगी? इस तरह की बातों के कारण कई परिवारों पर चिंता की लकीरें हर वक्त जोंक की तरह जमी रहती है, जिसकी वजह से लड़कियों को बहुत कुछ झेलना पड़ता है।

लड़की की शादी की ‘आइडियल उम्र’ निकल जाने पर तो यह समाज और परिवार उस लड़की की ज़िन्दगी जहन्नुम बना देता है। 30 की उम्र पार करते-करते वही लड़की बोझ बन जाती है। कई लड़कियों को नौकरी इसलिए छोड़नी पड़ती है क्योंकि उन्हें लगता है नौकरी करने से क्या होगा? बाद में रोटियां ही बेलनी है मगर जो मज़ा अपने पैसों की टेढ़ी रोटी में है, वह मज़ा कहीं और कहां?

अगर किसी बीमारी के कारण लड़की की प्रजनन क्षमता पर असर हो तो कई परिवार वाले उस लड़की का इलाज भी नहीं कराते हैं। इस डर से कि अगर उसकी वर्जिनिटी खत्म हो गई तो कौन अपनाएगा। जी हां, यह बात भले ही आपको अजीब लगे मगर कई डॉक्टर इस बात को स्वीकारते हैं।

मुझे याद है जब मैं मंदिर गई थी उस वक्त एक लड़की का इंटरव्यू चल रहा था। जी नहीं, जॉब का इंटरव्यू नहीं बल्कि उसे ‘बहु बनाओ इंटरव्यू’ कह सकते हैं। उस लड़की को पहले चलकर दिखाने को कहा गया, फिर हील पहनकर चलने को कहा गया।

इससे ज़्यादा तो मैं ना देख पाई और ना ही सुन पाई मगर ताज्ज़ुब की बात यह है कि संस्कारी बहू के सांचे में ढालने का वह  इंटरव्यू एक औरत ही ले रही थी। वह औरत जो कभी खुद भी इस प्रक्रिया का हिस्सा रही होगी और आज इसे परंपरा का रूप देकर आगे बढ़ा रही है।

जिस लड़की ने मुझसे ‘आइडियल हंसी’ की बात कही, वह भी कुंठित समाज का ही हिस्सा है। लड़कियां अपनी पहचान भूलकर समाज द्वारा बनाए सांचे में ढलने लग जाती हैं। जबकि कुछ लड़कियां ऐसी भी हैं जो गज़ब वुमनिया की तरह बेबाकी से जवाब देना भी जानती हैं।

अब अगर कोई बोले कि चल कर दिखाओ तो उसे गज़ब वुमनिया की भाषा में ही जवाब दीजिए, “तो भई! चल कर क्यों नाच के ही दिखा देती हूं!”

कोई आंटी अगर कहेगी लड़की हो, पैर समेटकर बैठो, तो लड़कियां गज़ब वुमनिया की तरह कहेंगी, “यह आराम का मामला है और आराम में दखल अंदाज़ी पसंद नहीं।”

इसलिए अब खुलकर अपनी बातें कहें और खुलकर हंसे ताकि बोलने वाला दूसरी बार बोल ही ना सके।

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