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‘बांग्लादेश में हिन्दू संहार’ का सच बताती सलाम आज़ाद की किताब

सबसे पहले तस्नीफ़ हैदर का इस किताब के लिए शुक्रिया और आप इस बात का यकीन मानिए की आप बहुत खुशकिस्मत इंसान हैं अगर आपके जीवन मे तस्नीफ़ भाई जैसा एक भी इंसान है।

अब मुद्दे की बात ये की ‘सलाम आज़ाद’ साहब द्वारा संपादित इस किताब “बांग्लादेश में हिन्दू संहार” को किताब ना कहकर एक रिसर्च पेपर कहा जाए तो बेहतर है, क्योंकि इसको पढ़ते वक्त आपको महसूस होगा कि इसके लिए सलाम साहब ने यकीनन बहुत मेहनत की होगी और बहुत से जोखिम भी उठाए होंगे।

अब बात करते हैं इस रिसर्च पेपर की रिसर्च और कुछ अलिखित राजनीतिक दृष्टिकोण की। किताब की प्रस्तावना में 1992 में बाबरी मस्जिद के मुद्दे को आधार बनाते हुए बांग्लादेश में हिंदुओं पर जो जुल्म ढाए गए उसका विवरण दिया गया है- 12 हिंदू मारे गए, 2 हज़ार ज़ख्मी हुए और 2 हज़ार औरतों और लड़कियों को अमानवीय ढंग से यत्नाएं दी गईं।

उससे भी बुरा जो हुआ वो ये कि 28 हजार मकानों, 22 सौ व्यवसायों और 36 सौ मंदिरों को हानि पहुचाई गई ताकि हिंदुओं का सरवाइव करना भी मुश्किल हो जाये और ऐसे हालात पैदा कर दिए जाएं कि वे बांग्लादेश छोड़ने पर मजबूर हो जाएं।

इन कामों को जिन्होंने अंजाम दिया उनमें से ज़्यादातर लोग बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कट्टरपंथी कार्यकर्ता थे और उस वक्त सरकार भी BNP की ही थी, प्रधानमंत्री थीं बेगम ख़ालिदा।

दूसरी तरफ ‘अवामी लीग’ जिसकी मुखिया शेख हसीना हैं उनकी पार्टी हिंदुओ और अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति अधिक संवेदनशील मानी जाती है, यही कारण है कि शेख हसीना के कार्यकाल में अल्पसंख्यक अपने आप को ज़्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं और अवामी लीग को चुनाव में अपना समर्थन देते हैं। नोट करने की बात ये है कि अवामी लीग को समर्थन करना ही उनको हर बार भारी पड़ता है क्योंकि चुनाव के बाद फौरन बाद ही हिंदुओ का उत्पीड़न आरंभ हो जाता है।

ऐसा ही हुआ 2001 के चुनाव के बाद चुनाव के 45 दिन के अंदर ही लगभग 40 लाख लोगों को कई तरह की यातनाएं पहुंचाई गईं, लेकिन इस बार कुछ जागरूक समाचार पत्रों ने बेहतर भूमिका निभाते हुए ऐसी घटनाओं को जनता के सामने लाए, और जनता ऐसी यातनाओं के बारे में जानकार हैरान रह गई। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बांग्लादेश के हिंदुओं पर चुनाव के बाद हुए अत्याचारों के बारे में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की लेकिन हमेशा की तरह सरकार ने इस तरह की घटनाओं से नकार दिया जिसमें कि कुछ नया नहीं था।

अब मेरे हिसाब से इस किताब के कुछ मुख्य अंश जिनका ज़िक्र जरूरी है।

1. “हरे कृष्ण हरे राम, हसीनेर बापेर नाम; हिन्दू जोड़ी बचते चाओ, बांग्ला चेरे भारत जाओ” मतलब की (हसीना का बाप हरे कृष्ण, हरे राम है। अगर तुम जिंदा रहना चाहते हो, तो ऐ हिन्दुओं बांग्लादेश छोड़कर भारत चले जाओ।) “जब कोई जलूस के नारे लगाते हुए हमारे घरों के पास से होकर गुजरता था और जुनूनी लोग हमारे दरवाजों को खड़खड़ाते थे या खिड़कियों के शीशे तोड़ डालते थे, तो हम डर से दुबक जाते थे।” यह बकाया शरणार्थी रुबेल दास पिछली बातों को याद करते हुए कहता है।

2. जुगान्तर, 20.10.2001। शुक्रवार 10 अक्टूबर को नौजवानों के एक गिरोह पुराने ढाका के एक मंदिर के परिसर में घुस आया और वहाँ सब लोग गोमांस और नान रोटी खाने लगे। जब वे खाना खा चुके तो उन्होंने गऊ की एक बड़ी हड्डी मंदिर की छत से लटका दी। इलाके के हिंदुओं का कहना था कि इस प्रकार का धर्मविरोधी कार्य हिंदुओ की अपमानित करने के लिए पहली बार किया गया। (दि बांग्लादेश ऑब्ज़र्वर, 21 अक्टूबर, 2001)

3. स्टार रोविंग टीम के संवाद की पहली कड़ी। भयभीत ग्रहवासियों ने बताया कि अपने ही घर मे बने रहने के लिए, जहाँ वे कई पीढ़ियों से रहते हैं, उन्हें 10 हजार टका हफ्ता राशि के तौर पर देने पड़े। उसके बाद भी जमाती हमलावरों ने उनकी हर चीज़ लूट ली जो उनके हाथ लगी। जब हमले हुए तो वे सब आदमी, औरतें और बच्चे नजदीक के धान के खेतों में जा छिपे जिनमे बड़ी-बड़ी जोंकें थीं। महिलाओं ने अपने जिस्म पर, उनके साथ किये गए व्यवहार और उन पर हुए हमले के निशान दिखाए जिनमें जोंकों के काटने पर पड़े निशान भी शामिल थे। बेंटरबाड़ी में रात के दौरान औरतों का बेहताशा बलात्कार किया गया जिनमे आठ बर्षीय रीता रानी से लेकर 70 बर्षीय बाला भी शामिल थीं। (दि डेली स्टार, 9 नवंबर, 2001)

4. बागेरहाट (दि डेली स्टार, 10 मार्च, 2003) बागेरहाट पुलिस थाना के प्रभारी इशाह दुखू ने कहा “पुलिस की नौकरी के दौरान मैंने इस किस्म का वहशीपन कभी नहीं देखा” स्वप्न और पुलिस के अनुसार 10 आदमी सुबह 3 बजे रसोई के रास्ते घर मे घुस आए। उनके कदमों की आहट सुन तपन की पत्नी ने तपन को जगाया। जब तपन ने रसोई का दरवाजा खोला तो हत्यारों ने तेज़ हथियारों से उस पर वार कर उसका पूरा जिस्म काट डाला।

जब तपन खून में लथपथ ज़मीन पर गिर पड़ा तो हत्यारों में से एक ने 5 सौ टका के नोटों की गड्डी दिखाते हुए परिवार के सदस्यों से बोला “देखो हम लोग 1 लाख टका के बदले निरंजन का सिर काट कर ले जाने आए थे। क्योंकि हमें निरंजन नहीं मिला इसलिए हमने उसके भाई को कत्ल करके इस रकम को हलाल की कमाई बना लिया है। इसके बाद वे तीन औरतों को एक दूसरे कमरे में घसीट कर ले गए और बारी-बारी उनका बलात्कार किया।

ऐसी ही बहुत सारी घटनाओं का जिक्र मैं कर सकता हूं क्योंकि यह किताब ऐसी हज़ारों दर्दनाक घटनाओं का ही ज़िक्र है। अब बात करते हैं बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के 2 प्रमुख पहलुओं पर जिसमे पहला भारत सरकार का रुख और की गई कार्वाई, दूसरा भारतीय हिंदुओ और मुसलमानों का रुख।

किताब पढ़ने के बाद दाखिल की गई RTI का जवाब

पहले बात करते हैं भारत सरकार के रुख की, किसकी सरकार थी इसमें फसे बिना, पहले इस RTI जो मैंने इस किताब को पढ़ने के बाद सितंबर के अंत मे लगाई थी। इसका जवाब देखिये आप खुद समझ जाएंगे कि अब तक की हर सरकार क्या कितना निराशाजनक व्यवहार रहा इस मुद्दे पर। बांग्लादेश में हो रहे अत्याचार पर भारत सरकार के पास किसी भी प्रकार का डाटा तक उपलब्ध नहीं है।। देखिये हर इन्फॉर्मेशन के लिए एक ही जवाब है “NOT READILY AVAILABLE IN OUR PUBLIC RECORDS” लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जो भारत की सरकारें पाकिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर UN में हो-हल्ला मचाती रहती हैं वे बांग्लादेश में हो रहे अत्याचार पर चुप क्यों हैं।

इसका एक ही कारण समझ में आता है कि बांग्लादेश से हमारे कूटनीतिक रिश्ते अच्छे हैं इसलिए जो गलत हो रहा है उसको भी नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन RTI के मिले रिप्लाई में मेरे लिए अचंभे वाली बात यह रही कि ना तो इंडियन हाई कमीशन ऑफ चिटगांव और ना ही मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स के पास ये रिकॉर्ड तक नहीं है कि एम्बेसी ने बांग्लादेश सरकार और माइनॉरिटी कमीशन को इस मुद्दे पर कितने पत्र लिखे और अपना विरोध जताया। खैर यही राजनीति है देश की रैलियों में भाषण कुछ और अंदर असली खेल कुछ और।

दूसरी बात करते हैं भारतीय हिंदुओ और मुसलमानों के रुख पर। पहले बात करते हैं भारतीय हिंदुओ की- आम जनता तो चलिए इस मुद्दे पर बहुत जानती ही नहीं है लेकिन जो अतिवादी हिन्दू संगठन अपने आपको हिंदुओं का मसीहा बताते हैं उन्होंने भी कभी इस मुद्दे को व्यापक रूप में नहीं उठाया, जबकि पाकिस्तान को वो इसी मुद्दे पर कोसते नहीं थकते। उनका ऐसा करना उनकी तत्कालीन राजनीति के लिए तो ठीक है लेकिन इसके दीर्घकालीन परिणाम बुरे होंगे, क्योंकि अगर आपके दोनो तरफ ऐसे धार्मिक चरमपंथी राज्य पनप गएं तो भविष्य में भारत को इसके दुष्परिणाम भुगतने ही होंगे।

अब बात करते हैं भारतीय मुसलमानों की, हिंदुस्तान या दुनिया के चरमपंथी मुसलमानों को तो किसी और माइनॉरिटी पर हो रहे अत्याचार से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनको तो पूरी दुनिया पर खलीफा का शासन स्थापित करना है। इसलिए जितने भी देशों में चरमपंथी मुस्लिम मौजॉरिटी में हैं वहां धीरे-धीरे उन्होंने हर प्रकार की माइनॉरिटी को लगभग खत्म कर दिया है या उनका गुज़ारा मुश्किल हो चुका है (एक-दो अपवादों को छोड़कर)। जो भारत के सामान्य मुसलमान हैं उनको भी लगभग इस मुद्दे पर कोई मतलब नहीं है और जिनको मतलब है भी उनकी संख्या इतनी कम है कि ना के बराबर है। हाल ही में रोहिंग्या वाले मुद्दे पर ये सब खुलकर सामने भी आ गया कि कहां क्या चल रहा है।

तो कुल मिलाकर ना तो हिन्दुस्तान की जनता को, ना ही सरकार को और ना ही किसी राजनीतिक दल को इस मुद्दे पर कोई फिक्र है। सरकार अपने अच्छे रिश्तों के कारण दबाव में रहती है, राजनीतिक दलों को वोट बैंक की खिचड़ी से ही फुर्सत नहीं है और हम यानी जनता पाकिस्तान को कोसकर अपने आपको शांत करते रहते हैं। जौन एलिया ने एक शेर कहा था जो यहां बिल्कुल फिट बैठता है तो लगे हाथ पढ़ते चलिये,

ये पूछतीं हैं वक़्त से खुद्दार पस्तियाँ
जिस ने हमें फ़रेब दिया है, वो कौन है ?
किस ने किया है क़ौम के ज़ख्मों को बे-वक़ार
जिस ने हमें ज़लील किया है, वो कौन है ?

अंत में ऐसे हिम्मती संपादक “सलाम आज़ाद” के बारे में भी जान लीजिए, क्योंकि मुस्लिम चरमपंथी मुल्कों में ऐसे लोग कम बचे हैं।

सलाम आज़ाद का जन्म 10 जुलाई 1964 को धामला के बिक्रमपुर,बांग्लादेश में हुआ था। लेखक अब तक 48 किताबे बांग्ला,अंग्रेज़ी और हिन्दी में लिख चुका है। आज़ाद इकलोते ऐसे बंगलादेशी लेखक हैं जिनहोने टैगोर पर लिखा और उनकी किताबों को विश्व भारती ने प्रकाशित किया है। लेखक पिछले 6 सालों से भारत में ही रह कर लेखन कार्य करते हैं।

आप इस किताब को पढ़िए और इस किताब को खरीदने के लिए आप वाणी प्रकाशन की वेबसाइट पर देख सकते हैं या इस लिंक की मदद ले सकते हैं।


फोटो आभार- Youtube स्नैपशॉट

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