वो लड़की
जो तुम्हारी परिभाषा में नहीं बंधी
ख्यालात पंक्षियों की तरह हैं उसके,
हसीन नहीं है वो
सांवली रंग की हसीना देखी है क्या कभी,
वो लड़की
जिसकी उंगलियों के बीच फंसी सिगरेट
तुम्हारी संस्कृति पर खतरा है,
हवा में तैरते धुएं के छल्ले
तुम्हारे एकाधिकार पर हमला है,
वो लड़की
जिसकी खिलखिलाहट के मायनों में
तुम्हें उमंग नहीं बेशर्मी दिखती है,
जिसका दिया हर सही जवाब,
उसकी बेड़ियों पर चोट करता हुआ लगता है तुम्हें,
वो लड़की
कुछ वैसी ही लड़की
देखा है मैंने उसे
पढ़ा है उसके चेहरे को
उन छोटी आंखों में
फैला है समुंदर
ठहराव भी है और उसके गर्त में तूफान भी
वो हसीन है अपनी हर अदा में
शायद सिर्फ मुझ जैसे लोगों की नज़र में
वो उड़ती है बेखयाली में
वो खिलखिलाती है
वो लड़ती भी है, जब सवाल सिर्फ उसपर होते हैं
वो गिरती भी है फिर खड़ी होती है
मैंने देखी है उसकी हिम्मत
पढ़ता हूं उसके चेहरे को
वो लड़की
हां, वैसी ही
जो बस एक आम लड़की है
और तुम वही दम्भ के पोषक समाज।