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“डियर पेरेन्ट्स, सरकारी स्कूल उतने बुरे नहीं हैं जितना आप सोचते हैं”

विद्यालय

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अगर आप पैसे वाले नहीं हैं तो जल्द बन जाइए क्योंकि अगर आप अमीरों की श्रेणी में नहीं आएंगे तो आने वाली पीढ़ियों का सुनहरा भविष्य सरकारी स्कूलों के ईर्द-गिर्द ही रहेगा। ऐसे में कई दफा आपको शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है। क्यों? सही बात है ना?

क्या आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारा धनी होना ज़रूरी है? क्योंकि बच्चे का पूरा जीवन उसकी स्कूली शिक्षा पर निर्भर है। वह अपने करियर का चुनाव करने में भी तभी सक्षम होगा जब उसे सभी बातों का ज्ञान प्रारम्भ से हो। खैर, इन सवालों से आपका भी कई दफा सामना होता होगा।

क्या अंग्रेज़ी माध्यम ही सबकुछ है?

क्या एक बच्चे को अच्छी शिक्षा सिर्फ प्राइवेट और अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों से ही मिल सकती है? अगर वह एक हिंदी माध्यम या यूं कहें कि एक सरकारी हिंदी माध्यम स्कूल से पढता है, तो क्या वह एक अच्छा इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, वैज्ञानिक, एक अच्छा खिलाड़ी या पत्रकार बनने का सपना पूरा नहीं कर पाएगा?

फोटो साभार: सोशल मीडिया

जैसे एक बच्चे के जन्म के बाद उसका मुंडन संस्कार एक ज़रूरी प्रथा है, वैसे ही आजकल बच्चे का शहर के सबसे बड़े किसी प्राइवेट अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में दाखिला दिलाना भी एक ज़रूरी प्रथा सी बन गई है।

नकारात्मक छवि बदलनी पड़ेगी

क्या वाकई सरकारी स्कूलों का हाल इतना बुरा हो गया है या इन प्राइवेट स्कूलों का बाहरी दिखावा अभिभावकों को इतना आकर्षक लगता है कि उनको अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने में शर्म महसूस होती है। यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी शहर के किसी बड़े प्राइवेट स्कूल की तलाश में रहते हैं।

2014-15 की एमएचआरडी (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में साक्षरता दर 67.06% है। राजस्थान में कुल 27,291 माध्यमिक और 11,179 उच्च माध्यमिक विद्यालय हैं। वहीं, राजस्थान के 13,694 सरकारी सेकेन्ड्री स्कूलों में 11,48,076 बच्चे पंजीकृत हैं जबकि 13495 प्राइवेट स्कूलों में यह संख्यां 12,15,755 है।

सीनियर सेकेन्ड्री स्कूलों की बात करें तो 4724 सरकारी स्कूलों में 5,74,929 और 6,455 प्राइवेट स्कूलों में 8,71,069 बच्चे पंजीकृत हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि प्राइवेट स्कूलों की तरफ अभिभावकों की दिलचस्पी अधिक है।

सरकार के प्रयास

इन कुछ योजनाओं का मकसद बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य देना, सरकारी स्कूलों की तरफ बच्चों और अभिभावकों को प्रेरित करना रहा है मगर सरकार इन योजनाओं से ऐसा करने में कोई सफलता अर्जित नहीं कर पाई है।

क्या कारण है कि सरकारी स्कूलों में कम ट्यूशन फीस या मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ पोष्टिक दूध, आहार और हर स्तर पर परखे हुए अध्यापकों के होते हुए भी अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में ही अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है?

जब तक पूरे देश में एक जैसा एजुकेशन सिस्टम नहीं बनेगा तब तक इन प्राइवेट और सरकारी स्कूलों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। हर सरकारी स्कूल से पढ़ा हुआ बच्चा खुद को एक प्राइवेट स्कूल से पढ़े हुए बच्चे के सामने कम आंकेगा।

स्कूली शिक्षा बच्चे के विकास का आधार है। अगर नींव ही कच्ची रह जाएगी तो इस देश का विकास कैसे होगा? देश का विकास सभी लागों के विकास से संभव है। केवल विकसित लोगों की तरक्की से देश के विकास का स्तर नहीं मापा जा सकता है।

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