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“पुलवामा हमले के लिए पूरे मुसलमान समुदाय को गाली देना और भी शर्मनाक है”

14 फरवरी की रात को जब जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बारे में पता चला, मन व्यथित हो गया और क्रोधित भी। 44 जवानों के शहीद हो जाने की खबर मानवीय संवेदना को झकझोरने के लिए काफी थी। इसके साथ ही व्यक्तिगत परेशानियां औचित्यहीन लगने लगी।

मैं खुद को उन इंसानों में पाता हूं, जो समाज में चल रही घटनाओं से बहुत जल्दी और ज़्यादा प्रभावित होते हैं। संवेदनशील होना जीवित इंसान होने की एक ज़रूरी शर्त है। उन जवानों के परिवार वालों पर क्या बीत रही होगी यह सोचकर ही कलेजा कांप उठता है। आतंकी संगठनों तथा उसके सरगनाओं को किस मानसिकता से तैयार किया जाता है, यह सोचकर ही घिन आने लगती है। कौन? क्यों? कब? कैसे? जैसे सवाल मन अशांत कर देते हैं, नींद गायब हो जाती है।

हालांकि मेरा मानना है, “A person should be logical and Rational rather than being sentimental and emotional”, पर अब यह भी समझ आने लगा है कि सेंटिमेंटल और इमोश्नल होने से बच पाना शायद ही किसी संवेदनशील इंसान के लिए संभव हो पाए।

मेरी नज़र सरकार द्वारा उठाये गए कदमों और दिए गए वक्तव्यों पर थी। मोदीजी को सुनकर अच्छा लगा कि पक्ष और विपक्ष दोनों इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां ना सेके, सेना को कार्रवाई करने की इजाज़त दे दी गयी है। पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस ले लिया गया है। चूंकि सारा खेल अवधारणा का होता है तो इस कदम का फायदा बस यह होगा कि सरकार ने कुछ किया यह अवधारणा लोगों में बनेगी।

सोशल मीडिया पर मुस्लिमों के खिलाफ फैलाई जा रही है नफरत

फेसबुक, ट्विटर हर तरफ सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा दिखने लगा, लोगों ने मुसलमान समुदाय के खिलाफ ज़हर उगलना शुरू कर दिया। यह सब देखकर थोड़े समय बाद मैंने खुद को मोबाइल से अलग कर लिया परंतु आंख बंद कर लेने से सच्चाई नहीं बदल जाती। मन की अशांति रात भर कायम रही और अभी भी है।

हमें यह समझना चाहिए कि सेना का जवान हम सबकी सुरक्षा के साथ-साथ देश की एकता और अखंडता बनी रहे इसलिए ही खड़ा होता है। न्यूज़रूम का नाम वॉर रूम रखकर इन मसलों पर अनाप सनाप बहस करना कहां तक सही है? किसी एक समुदाय के खिलाफ कुछ भी लिखकर या कहकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करना भी कतई जायज़ नहीं है।

अगर हम व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी में पढ़ना बंद कर इतिहास और वर्तमान को ढंग से पढ़ें और समझे तो अब्दुल कलाम हमें अपवाद नहीं लगेंगे। हज़ारों मुसलमानों को देश के लिए जीते मरते देख पाएंगे आप। लाखों का देश प्रेम आपको आसपास ढूंढने पर ही मिल जाएगा। मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर यह बहुत आसान है, आतंकवाद पर कई सटीक और सही जानकारी प्रोफेसर मोहम्मद तर्कों के साथ दे जाते हैं, जवानों में मरा एक मुसलमान भी मुझे आसानी से दिखाई देता है, कैंडल मार्च निकालते हुए मेरा मित्र इमरान दिख जाता है, अख्तर रात को कॉल पर बात करते हुए पाकिस्तानियों को उतनी ही गालियां देती है, जितनी मैं देना चाहता हूं, वह भी उतना ही दुखी और आक्रोशित जान पड़ती है जितना कि मैं।

मैं धर्म का चश्मे से देखकर इन ईमानदार और सच्चे मुसलमानों के साथ दगा नहीं कर सकता। आप भी देश की एकता और अखंडता का ख्याल तहे दिल से रखें, साथ ही देश की विविधता और सेकुलरिज़्म का आनंद उठाए।

________________________________________________________________________________फोटो प्रतीकात्मक है।

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