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“मोदी सरकार का मज़ाक है, किसानों को 17 रुपये रोज़ाना का वादा”

कल्पना करें, किसान अस्तित्व में ना हो तो कौन देगा अन्न? कैसे पहुंचेगा आपकी रसोई तक अन्न? कौन बढ़ाएगा आपकी डाइनिंग टेबल की शोभा? किसान अन्नदाता है, अन्न देता है और अन्न जीवन देता है। यानी जीवन दाता भी किसान ही हुआ। अब जीवन दाता ही शोषित है, बर्बाद है, खस्ता हाल में है तो शहरों में बैठे लोगों का क्या होगा? हमें शुक्रिया अदा करना चाहिए कि किसान इतनी पीड़ाओं में होने के बाद भी मेहनत करता है, जिससे हमारी रसोई तक खाने के लिए अन्न पहुंच पाता है।

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- Getty

हमारे देश में इसी अन्नदाता यानी जीवन दाता की हालत यह है कि कर्ज़ और अन्य परेशानियों के कारण वर्ष 1995 से लेकर वर्ष 2014 तक 2,96,438 किसानों ने आत्महत्या कर ली। ये किसान व्यवस्था का शिकार हुए, ऐसी व्यवस्था जहां उपेक्षा की जाती है और घोषणाओं के नाम पर मज़ाक। केंद्र सरकार का अंतरिम बजट 2019-2020 भी ढकोसले से ज़्यादा कुछ नहीं लगता। किसानों के लिए की गई घोषणाएं भी एक मज़ाक से ज़्यादा कुछ नहीं हैं।

बजट में कहा गया है कि दो हेक्टेयर से कम ज़मीन वाले किसानों को हर साल 6 हज़ार रुपए मिलेंगे। एकबारगी यह घोषणा किसानों के हित में लगती है। लगता है जैसे किसानों की दुखती नब्ज़ पर हाथ रख दिया गया है लेकिन गहराई से सोचने पर सवाल उठता है कि क्या यह घोषणा वाकई किसानों के लिए हितकारी है?

17 रुपये रोज़ाना से किसानों का कौन सा भला हो जाएगा?

घोषणा सुनने में जितनी लुभावनी लग रही है उतनी ही चिंता में डालने वाली भी है। 6 हज़ार रुपए हर साल मिलेंगे, हर साल मिलने वाले 6 हज़ार रुपए को रोज़ाना खर्च के हिसाब से देखें तो 17 रुपए रोज़ आता है। अगर एक किसान के घर में कम-से-कम दो सदस्य भी हैं तो यह घोषणा ढकोसला साबित हो जाती है।

बाज़ार में एक प्याली चाय की कीमत भी 10 रुपए है, ऐसे में दो लोग भी चाय नहीं पी सकते हैं, एक टाइम की खाने की थाली की तो दूर की बात है। गौर फरमाने की बात यह है कि एक थाली की कीमत भी 50 रुपए से ऊपर है, ऐसे ज़माने में 17 रुपये रोज़ाना से किसानों का कौन सा भला हो जाएगा।

मोटे अनुमान के मुताबिक कर्ज़ में दबे किसान तब तक आत्महत्या करते रहेंगे जब तक उनके कर्ज़ कम नहीं हो जाते। चिंता की बात यह भी है कि जहां किसानों को 6 हज़ार रुपए से लुभाने की कोशिश की गई है तो वहीं कर्ज़माफी से जुड़ी कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई। छोटे स्तर पर भी अगर कर्ज़माफी की जाती तो यह कहा जा सकता था कि किसानों को राहत मिल गई लेकिन लोकलुभावने वादे और घोषणाओं से तो यही साबित होता है कि ऐसी घोषणाएं दुखते तार छेड़ने के अलावा कुछ नहीं कर सकती।

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