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“असंख्य रंग रूप में प्रेम हमारे जीवन का हिस्सा है”

वेलेंटाइन डे

वेलेंटाइन डे

सुना है वैलेंटाइन सप्ताह चल रहा था जब हर दिन कोई ना कोई अलग डे मनाया जा रहा था। अब यह सब संबंधवाद की परंपरा है या बाज़ारवाद की, यह आप सोचते रहो।

खैर, हर दिन के नाम पढ़ के हमको तो ऐसा लग रहा है जैसे ब्याह के लिए रिश्ता पक्का करने जाओ तो पहले मिठाई ले जाओ, बात आगे बढ़े तो लेन-देन का प्रस्ताव पारित हो, फिर प्रस्ताव पास हो तो भैया गले मिल लो सब जन फिर …

फिर क्या लगन धाराओ, हल्दी, तेल पूजन दिन, मातृ पूजन दिन और ब्याह मतलब वैलेंटाइन डे। अब सच में शादी के बंधन कैसे टिके जब बाज़ारवाद हर साल वैलेंटाइन सप्ताह को एक पैकेज के रूप में ऐसे परोस रहा है, जैसे प्यार और रोमांस की सारी अनुभूति इस एक सप्ताह में ही मिलेगी।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

बाकी के पूरे साल तो सिर्फ अत्याचार, व्यभिचार, मुकदमा और तलाक ही बाज़ारों में मिलेगा। वेलेंटाइन बाबा की पुण्यतिथि को प्यार और व्यभिचार के जश्न के रूप में मनाकर उनके बलिदान की भर्त्सना हो रही है या सम्मान।

अगर सम्मान है तो भी किसी की मृत्यु पर श्रद्धांजलि दी जाती है या फिर उस दिन प्यार के नाम पर किसी भी हद तक गिर जाना, जबरन प्रेम प्रस्ताव देना, ना माने तो एसिड अटैक, बलात्कार और ब्लैकमेलिंग जैसे हथकंडो को अपनाना।

वैसे आज कल युवाओं में जोश है, वे स्वतंत्र और बालिग हैं। उन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी है फिर प्यार और जंग में सब जायज़ है का तकियाकलाम भी है। ऐसे में अधकचरा ज्ञान क्यों? क्योंकि अभिव्यक्ति की आज़ादी तो है मगर ज़रूरी मुद्दों पर खुलकर बात नहीं होती।

प्रेम को ही लीजिए, क्या इस मुद्दे पर अभिभावक से खुलकर बात होती है? नहीं ना? ऐसे में किशोरावस्था से पहले ही बच्चे प्यार का मतलब टेलीविज़न से समझते हैं। जैसे- दिखने में जो अच्छा लगे, हाथ पकड़ ले, गले लग जाए और किस्स कर ले तो प्यार हो जाता है लेकिन क्या यह सब लक्षण खुशी का इज़हार करने में नहीं दिखते???

कौन बताए कि प्रेम रंगहीन, स्वादहीन और सुगंधहीन पानी की तरह हौले-हौले बहता हुआ एहसास है जो जन्म से मृत्यु तक हमारी सांसों के साथ उम्र के हर पड़ाव पर अपनी आवश्यकताओं के अनुसार रंग, स्वाद,और सुगंध की मिलावट करने पर सुखद अनुभूति देता है।

एहसास का ना कोई रंग और ना ही स्वरूप फिर भी असंख्य रंग रूप में प्रेम हमारे जीवन का हिस्सा है। प्रेम से ही परिवार और संसार में हर सजीव-निर्जीव का अस्तित्व है। प्रेम की अनुभूति परम् का मार्ग है और परम प्रेम की प्राप्ति विभिन्न इच्छाओं से मुक्ति है।

फोटो साभार: Getty Images

प्रेम एक योग साधना की तरह है जो हर पल हर जगह हर किसी से ठीक वैसे ही जैसे हमारी हर सांस की पूर्णताही जीवन की पूर्णता का आधार है मगर अफसोस आज प्यार दो देह का आकर्षण, उनका मिलन, उनके विरह की वेदना और विवाह में बंधने तक का सफलता पूर्वक तय किया सफर मात्र है।

कैसे बताऊं कि यह सब तो रंगमंच और फिल्मी पर्दे के कलाकार हर दिन करते हैं जिसे देखकर हम भी प्यार की कल्पना करने लग जाते हैं। यह सब दिखावा और छलावा मनोरंजन के रंग का एक हिस्सा है, प्रेम नहीं है। जिस प्रेम की अनुभूति में जीवन खत्म हो जाता है, उस प्रेम को एक लेख और एक दिन में बता पाना मुश्किल है मेरे लिए।

हां, यह अलग बात है कि आजकल प्यार का वास्तविक अर्थ तो किसी परफ्यूम, शैम्पू, बाइक और पान-मसाला के ऐड समझा रहे हैं जिसे अनजाने में हर बच्चा बचपन से ही देख और समझ रहा है। बड़ा होकर प्यार की अभिव्यक्ति क्या होगी, उसके लिए हम सभी अंदाज़ा लगा सकते हैं। फिलहाल वैलेंटाइन डे (पुण्यतिथि) पर वैलेंटाइन बाबा के चरणों में हमारी तरफ से दो पुष्प समर्पित हैं।

शालिनी सिंह, एंकर-ऑल इंडिया रेडियो (लखनऊ)

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