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“झारखंड की विपक्षी पार्टियां भाजपा विरोध के अलावा जनता पर ध्यान क्यों नहीं देती?”

हेमन्त सोरन और बाबुला मरांडी

हेमन्त सोरन और बाबुला मरांडी

झारखंड में देशी-विदेशी पूंजीपतियों द्वारा जल-जंगल-ज़मीन की आक्रामक लूट और न्याय व संविधान पर हमले के खिलाफ सामाजिक संगठनों व जन संगठनों ने लगातार मोर्चा लिया है।

कई प्रकार के आंदोलन और अभियान चलाने के साथ दमन का मुकाबला भी किया है। जनता की आकांक्षाओं को मज़बूती से बुलंद किया है। केन्द्र व राज्य सरकारों के खिलाफ जनता के पक्ष से असली विपक्ष की भूमिका भी निभाई है।

भाजपा विरोधी संगठनों को जनता के हितों का ध्यान रखना होगा

भाजपा विरोधी कोई भी मोर्चा असली विपक्ष-जनसंघर्ष की शक्तियों को इग्नोर कर नहीं बन सकता है। असली विपक्ष-जनसंघर्ष की शक्तियों को छोड़कर बनने वाले भाजपा विरोधी मोर्चा के पास भाजपा-आरएसएस को निर्णायक शिकस्त देने की ताकत नहीं हो सकती है।

हेमन्त सोरेन। फोटो साभार: सोशल मीडिया

भाजपा विरोधी मोर्चा-गठबंधन के जनपक्षधर व लोकतांत्रिक चरित्र के लिए ज़रूरी है कि यह जन-संघर्षों की ऊर्जा व ताकत से लैस हो। मोर्चा-गठबंधन का आधार जनता का सवाल और नीति हो।

इसके बगैर भाजपा विरोधी कोई भी मोर्चा भाजपा-आरएसएस को सत्ता के साथ-साथ ज़मीनी स्तर पर बेदखल नहीं कर सकता है।

लोकसभा चुनाव के लिए सियासत तेज़

आगामी लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी राजनीतिक माहौल गर्म हो रहा है। मुख्य विपक्षी राजनीतिक पार्टियां भाजपा को हराने के नाम पर महागठबंधन बनाने और सीट बंटबारे को लेकर उठा-पटक कर रहे हैं।

गठबंधन के बीच जनता का सवाल गायब

वर्तमान में विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के नेता सामाजिक संगठनों एवं जनांदोलनों के साझा मंच पर मंचासीन ज़रूर हो रहे हैं लेकिन सभी विपक्षी पार्टियां झारखंड के जनता के सवालों व नीतियों से बच रहे हैं।

सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों के साझा मंच से ये विपक्षी पार्टियां ऐसा माहौल और दबाव बना रहे हैं कि मानो सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों को भाजपा को हराने की पूरी ज़िम्मेदारी हो।

ऐसे वक्त वर राज्य की जानता को यह समझना होगा कि सूबे और केन्द्र में जो भाजपा की सरकार है, वह इन्हीं क्षेत्रिय दलों की गलतियों का परिणाम है।

वहीं, दूसरी तरफ ये विपक्षी पार्टियां और उनके नेता अपने-अपने निजी स्वार्थ को प्राथमिकता देते हुए एक-एक सीट के लिए आपस में छीना-झपटी कर रखे हैं, मानो उनके लिए भाजपा को हराना प्राथमिकता नहीं है।

इन सबसे अलग इधर सामाजिक संगठन और जनांदोलन विपक्ष द्वारा महागठबंधन के अंदर सीट के इस बंदर बांट का खेल देखने के लिए मजबूर बने हुए हैं।

सामाजिक संगठनों को सामने आना होगा

हमलोगों ने झारखंड भ्रमण के दौरान हासिल तथ्यों के आधार पर यह पाया कि आगामी लोकसभा चुनाव में आरएसएस-भाजपा जैसी फासीवादी, पूंजीवादी, जन-विरोधी और सामाजिक न्याय विरोधी ताकतों को हराने के लिए झारखंड में सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों के बगैर कोई सशक्त मोर्चा-महागठबंधन नहीं बन सकता है।

खूंटी और गोड्डा लोकसभा सीट पर स्वतंंत्र प्रत्याशी

इन चार-पांच सालों में खूंटी और गोड्डा में भाजपा द्वारा सबसे ज़्यादा दमन और लूट हुआ है। इसलिए हमलोगों का मानना है कि सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों को सिर्फ मूकदर्शक नहीं बने रहना चाहिए बल्कि तमाम ज्वलंत जन-सवालों को चुनाव का एजेंडा बनाने और आगामी लोकसभा चुनाव में खूंटी और गोड्डा लोकसभा सीट पर अपने चुनाव लड़ने की तैयारी करनी चाहिए।

विपक्षी पार्टियों को भी यह दो सीटों (खूंटी और गोड्डा) पर सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों के लोगों को स्वतंत्र रूप से प्रत्याशी बनाकर अपने जनपक्षधर होने की मिशाल पेश करनी चाहिए।

बाबुलाल मरांडी। फोटो साभार: Getty Images

खूंटी और गोड्डा लोकसभा सीट सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों को देना झारखंड में आरएसएस-भाजपा के खिलाफ सड़कों पर लड़ रहे जनता को सम्मान देना जैसा होगा।

गोड्डा लोकसभा सीट सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों को देने से महागठबंधन के अंदर काँग्रेस और जेवीएम के बीच चल रहे नूरा कुश्ती और रस्साकसी को भी विराम मिलेगा।

इससे महागठबंधन के सेहत पर भी अच्छा असर पड़ेगा तथा जनता के बीच भाजपा के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने का एक मज़बूत संदेश भी जाएगा।

इस लड़ाई में झारखंडी जनता भाजपा के खिलाफ अपने आप को मज़बूत और ताकतवर भी महसूस कर पाएगा और भाजपा विरोधी मोर्चा भी ताकतवर होगा।

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