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“जिन्हें हम जन-प्रतिनिधि बनाते हैं, वे हमें भगवान क्यों लगने लगते हैं?”

राजनीतिक रैली

राजनीतिक रैली

हमें बचपन से हमारे परिजनों, आस-पड़ोसियों, दोस्तों, रिश्तेदारों और अध्यापकों के मुंह से यही बात सुनने को मिलती है, “राजनीति बड़ी खराब होती है, शरीफ लोग राजनीति से दूर रहते हैं।”

मेरे बचपन से अब तक के सफर में यह बातें ना जाने कितनी बार सुनने को मिली। इस देश के आम मध्यमवर्गीय इंसान को ‘राजनीति’ शब्द सुनते ही अजीब सी घबराहट होती है और यही घबराहट देश-समाज की अघिकांश समस्याओं का कारण है।

फोटो साभार: pixabay

“तुम्हें राजनीति करनी है तो करो, मुझे इन सब में ना ही घसीटो तो बेहतर है।” जब आप किसी से कहेंगे कि आपके साथ गलत हुआ, अन्याय हुआ है तो आपको ऊपर लिखा वाक्य सुनने मिल जाएगा।

राजनीति के मायनों को समझना होगा

लोगों का राजनीति से परहेज़ मेरे लिए तो चिंता का विषय है। अधिकतर लोगों का मानना है कि चुनाव में खड़ा होना, वोट डालना, भाषण देना, धरना-प्रदर्शन करना, खून-खराबा, छल कपट-करना, झूठे वादे कर वोट बटोरना, पैसों का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार ही राजनीति है।

कुछ मायनों में उनकी यह धारणा राजनीति के व्यावहारिक पक्ष को देखते हुए सही प्रतीत होते है लेकिन सभी के लिए यह जानना ज़रूरी है कि असल में राजनीति है क्या?

फोटो साभार: Getty Images

दो या दो से अधिक लोगों का आपस में जुड़ना ही राजनीति है। दो लोगों के बीच बातचीत, सहमति-असहमति एक राजनीतिक परिस्थिति को जन्म देती है। मतलब निजी जीवन भी राजनीति से भरा हुआ है। मामला चाहे निजी हो या सार्वजनिक, उसमें तार्किक और सोचा-समझा निर्णय लेना या तर्कसंगत राय रखना ही राजनीति है।

राजनीति से परहेज़ क्यों?

आपके निजी जीवन के अधिकतर निर्णय राजनीतिक निर्णय होते हैं, फिर राजनीति से परहेज़ कैसा? हर चुनाव में नियमित रूप से वोटर होते हुए भी हम यह आत्मसात नहीं कर पा रहे कि सरकार हमें चलानी है। वोट डालकर हम एकमात्र राजनीतिक कर्तव्य से पांच सालों के लिए मुक्त हो जाते हैं और अपने जीवन के बड़े और महत्वपूर्ण निर्णय दूसरों के हाथों में छोड़ देते हैं।

चुने हुए प्रतिनिधियों से सवाल करना हमें अपराध लगता है। हमने जिन्हें चुनकर हमारे हितों की रक्षा के लिए संसद और विधानसभाओं में भेजा है, वे हमें भगवान लगने लगते हैं। हम उनकी अर्चना करने लगते हैं, हिसाब मांगना तो भूल ही जाइए।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

ऐसे में सामने वाला भी हमारे गैर-राजनैतिक व्यवहार का भरपूर फायदा उठाता है और राजनीति नाम की संस्था में गंद फैलाता है। व्यावहारिक राजनीति में नज़र आने वाली गंदगी भी हमारी ही देन है क्योंकि ना तो हम अपने नेताओं से सवाल पूछते हैं और ना ही जवाब की अपेक्षा रखते हैं।

नेता को भगवान मत मानिए

अपने नेता को भगवान मान लेना अपने हितों की अनदेखी करना है। जब तक हम सरकारों की जवाबदेही तय नहीं करेंगे, तब तक विकास संभव नहीं है।

आप शिक्षक हैं लेकिन शिक्षा के मुद्दों पर लड़ना आपको पसंद नहीं, बच्चों को सरकारी विद्यालयों में अच्छी शिक्षा ना मिले तो आप उनको निजी विद्यालयों की ओर मोड़ देंगे, यथास्थिति स्वीकार कर लेंगे। सरकारी दफ्तरों में मनचाहा भ्रष्टाचार होता है लेकिन उसे राष्ट्रीय शिष्टाचार समझकर आप नज़रअंदाज़ कर देंगे।

फोटो साभार: Getty Images

हर क्षेत्र की राजनीति में भी गैर-ईमानदार लोगों की कमी नहीं है लेकिन राजनीति को अछूत बनाकर अगर हम किसी का नुकसान कर रहे हैं तो वह हम खुद ही हैं। राजनीति से अपने आप को अलग करना गैर ज़िम्मेदार और बेईमान लोगों को हमारे जीवन के महत्वपूर्ण फैसले लेने की खुली छूट देना है। जीवन को बेहतर बनाने के लिए सवाल उठाना बेहद ज़रूरी है।


 

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