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“कॉलेज फेयरवेल में एक पुरुष होकर जब मैंने साड़ी पहनी”

अंशुमन यह तय नहीं कर पा रहा था कि उसे अपने कॉलेज के फेयरवेल में क्या पहनना चाहिए। फिर अंत में जो उसके दिल ने कहा, उसने वही पहना। अंशुमान ने लव मैटर्स इंडिया के साथ उस खट्टी मीठी याद को साझा किया।

विदाई लेकिन मेरे तरीके से

कॉलेज लगभग खत्म हो गया था और अब फेयरवेल होने वाला था। जैसे ही कॉलेज छोड़ने का समय नज़दीक आया, मैं बहुत भावुक हो गया। यह वह जगह थी, जहां से मैंने बहुत कुछ सीखा और मेरे दिल में इस कॉलेज के लिए बहुत सम्मान था। मैं अपने कॉलेज को कुछ अनोखे तरीके से अलविदा कहना चाहता था, इसलिए मैंने वह करने का फैसला किया, जिससे मुझे बहुत प्यार था, साड़ी पहनने का फैसला।

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- Getty

मैंने एक पुरुष के रूप में जन्म लिया है और मेरी पहचान भी पुरुष के रूप में ही है लेकिन मैं अलग-अलग तरह के कपड़े पहनना पसंद करता हूं और खुद को संवारने के लिए कुछ अलग करता हूं, जैसे नाक में रिंग पहनना, नेलपॉलिश लगाना आदि। कॉलेज में मेरे दोस्त और शिक्षक यह बात जानते थे और मेरे ग्रुप में जितने भी लोग थे सब मेरी पसंद का सम्मान करते थे। यहां तक कि सार्वजनिक जगहों पर भी साड़ी पहनकर जाना मेरे लिए काफी रोमांचक होता था।

उस खास दिन वाला उत्साह

फेयरवेल के दिन, मेरे दोस्तों ने साड़ी पहनने में मेरी मदद की। मैंने एक सुंदर, ऑलिव-ग्रीन रंग की साड़ी पहनी थी जो मेरे एक करीबी दोस्त की मां की थी।

मैं बताना चाहूंगा कि साड़ी में मैं बहुत खूबसूरत दिख रहा था और मैं बेहद खुश था। मैं और मेरे दोस्त फेयरवेल में जाने के लिए बहुत उतावले थे और हम सब इसे अपने जीवन का यादगार दिन बनाना चाहते थे। आखिरकार, यह वही जगह थी, जहां मैंने बहुत कुछ सीखा था लेकिन अब यहां से विदा लेने का वक्त आ गया था।

हमने कॉलेज के लिए एक कैब बुक की। कैब में बैठने के करीब 15 मिनट बाद हमारे और कैब ड्राइवर के बीच अजीब तरह की बहस होने लगी। वह मुझे अजीब तरीके से देख रहा था और कह रहा था कि मैं जो कर रहा हूं वो एकदम ‘गलत’ और ‘अप्राकृतिक’ है। हम उससे उलझना नहीं चाहते थे, इसलिए हमने इस बारे में आगे बात ही नहीं की लेकिन उसकी बातों से फेयरवेल का सारा रोमांच ही खत्म हो गया और सबका मूड भी खराब हो गया।

शर्मिंदगी का सामना

हमें इस बात का थोड़ा अंदाज़ा पहले से था कि भीड़ भरे कॉलेज के गेट पर हमें थोड़ी परेशानी हो सकती है। कॉलेज के इन तीन सालों में पहली बार मुझसे कॉलेज गेट पर आईडी कार्ड मांगा गया। गार्ड मुझे करीब पांच मिनट तक घूरता रहा।

इसके बाद मैं मुख्य द्वार से कार्यक्रम स्थल तक पैदल आया, जो परिसर के बिल्कुल दूसरे छोर पर था। मैं लोगों की घूरती निगाहों और हंसी से ऊब गया था। तभी गलियारे से किसी ने तेज़ आवाज़ में मुझे ‘छक्का’ बुलाया, जिसे सुनना वाकई में काफी दुखदायक था।

मैं अपने ऊपर हमले की आशंका से तेज़ चलने लगा, हालांकि लोगों की नज़रें अब भी मेरे ही ऊपर गड़ी हुई थी।

सुरक्षित जगह पहुंच कर राहत मिली

मैं आखिरकार कार्यक्रम स्थल पर पहुंच ही गया, मेरा अपना डिपार्टमेंट जहां मैं खुद को सबसे ज़्यादा सुरक्षित महसूस करता हूं। मैंने अंत में खुद को सहज किया और अपने दोस्तों और प्रोफेसरों के साथ दोपहर का आनंद लिया। उन्होंने साड़ी के लिए मेरी काफी तारीफ भी की।

वह फेयरवेल अब भी मेरी यादों में है। उसके बाद मैं कई कार्यक्रमों में शामिल हुआ लेकिन यह उन सबसे अच्छा था। फिर भी, इसके साथ जुड़ी उस दर्दनाक याद को मैं आजतक भूल नहीं पाया हूं। मैं कभी नहीं भूल सकता कि उस दिन ‘छक्का’ शब्द सुनकर मुझे कितना दुख हुआ था। वह शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजता है।

*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं।________________________________________________________________________________

नोट- लेखक अंशुमान (24 वर्षीय) एक ट्रांसवेस्टिट (विपरीत लिंग के कपड़े पहनने वाले लोग) हैं और दिल्ली में रहते हैं।

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