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“अर्धसैनिक बल के जवानों की मांगों पर सरकार कब विचार करेगी?”

सीआरपीएफ के जवान

सीआरपीएफ के जवान

14 फरवरी 2019 का वह दिन जब जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों ने सीआरपीएफ के काफिले पर कायराना हमला किया और अर्ध सैनिक बल के 40 से ज़्यादा जवान शहीद हो गए।

इस घटना को विस्तार से बताना ज़रूरी नहीं है क्योंकि सभी दोस्तों ने टीवी चैनलों और अखबारों में देखा-पढ़ा होगा। पाकिस्तान में बैठे अलग-अलग आतंकवादी गुट निरंतर भारत सरकार के दावों की धज्जियां उड़ाते हुए ऐसी घटनाओं को अंजाम देते रहे हैं।

फोटो साभार: ANI Twitter

क्या हमने कभी सोचा है कि अर्ध सैनिक बल किसे कहते हैं? 13 दिसंबर 2018 को काफी संख्या में अर्ध सैनिक बल के पूर्व जवान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली आए थे। उन मांगों का क्या हुआ?

क्या यह सरकार से नहीं पूछना चाहिए? इन अर्ध सैनिकों की मांगों के मद्देनज़र सरकार ने क्या कदम उठाए? खैर, सरकार नहीं बताएगी और ना ही न्यूज़ चैनल वाले इस बात को उठाएंगे क्योंकि सरकार को अपनी राजनीति चमकानी है और मीडिया को पैसे कमाने हैं।

सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, बीएसएफ, एसएसबी, आरएएफ और आरपीएफ आदि अर्ध सैनिक बल की श्रेणी में आते हैं। विडम्बना देखिए कि ये ना तो पूर्ण रूप से सेना के और ना ही पुलिस के हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि उससे क्या फर्क पड़ता है।

चलिए इस बारे में आपको बता ही देते हैं। सेना की तुलना में इनके जवानों को बहुत कम सुविधाएं, बजट और हथियार आदि मिलते हैं। सेना की तुलना में इनकी सर्विस कंडीशन भी बहुत खराब हैं। इनको शहीद होने पर भी सम्मान नहीं मिलता, जो मिलना चाहिए।

क्या हमको, आपको या किसी भी राजनीतिक दल को इस दुःख की घड़ी में राजनीति करनी चाहिए? जिस दिन सीआरपीएफ के जवानों की जान गई, उसके अगले दिन ही पीएम मोदी का झांसी में एक समारोह था जहां उन्होंने जनता से वोट मांग लिया।

प्रधानमंत्री जी ने बोला कि देश के विकास और नए भारत के लिए आप आने वाले दिनों में भी मुझे और मज़बूती से आशीर्वाद दीजिए। यह कौन सा आशीर्वाद है जो आपको चाहिए?

आपने जवानों के परिवारों के बारे में सोचने की ज़हमत भी नहीं उठाई और झांसी में आशीर्वाद लेने पहुंच गए। आपने 24 घंटे भी नहीं बीतने दिए, आखिर क्यों?

साक्षी महाराज की हंसी शर्मनाक

दूसरी तरफ पुलवामा हमले में ही शहीद हुए अजित कुमार आज़ाद जी की अंतिम यात्रा में साक्षी महाराज हंसते हुए नज़र आते हैं। उसके बाद हाथ भी हिलाते हुए दिखाई पड़ते हैं।

यह सब क्या है? उन्हें यह समझना चाहिए कि वो भाजपा का कोई रोड शो नहीं था जो वह हाथ हिला रहे थे बल्कि वह शहीद जवान की अंतिम यात्रा थी।

मनोज तिवारी ‘साक्षी महाराज’ से एक कदम आगे

वहीं, भाजपा के सांसद मनोज तिवारी का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है क्योंकि जब देश शहीद जवानों की शहादत में गमगीन था, उसी वक्त वह ठुमके लगा रहे थे।

शहीदों के परिवार वालों का जब-जब मन में ख्याल आता है, तब-तब आंख भर आती है और दिल रोने लगता है। देश की जनता उन शहीदों के परिवार के साथ खड़ी है। देश के हर कोने और हर शहर में हज़ारों लोग सड़कों पर कैंडल मार्च और श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

यह कैसी राजनीति

शहीद जवानों की शाहदत पर ऐसी राजनीति करना शर्म की बात है। देश की जनता को समझना चाहिए कि ये राजनेता आपके दिलों के साथ खेलते हुए आपको मूर्ख बना रहे हैं। जो लोग मूर्ख बन जाते हैं वे सोशल मीडिया पर भद्दी और गंदी माँ-बहन की गालियां निकालते हैं।

पत्रकार को गालियां

एनडीटीवी के रविश कुमार ने अपने फेसबुक पोस्ट पर कुछ स्क्रीन शॉट पोस्ट करते हुए बताया कि पुलवामा आतंकी हमले की रिपोर्टिंग के बाद किस प्रकार से युवाओं ने उन्हें गंदी-गंदी गालियां दी हैं। उन युवाओं को कोई मतलब नहीं है कि देश में क्या हो रहा है।

इन सबके बीच कुछ न्यूज़ चैनलों द्वारा पुलवामा हमले के बाद भड़काऊ रिपोर्टिंग की जा रही है जिससे यह साबित होता है कि वे पैसा चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ने वाले हैं।

एक बहुत अच्छी पंक्ति व्हाट्सअप पर आई थी। देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों को नमन करते हुए आपसे शेयर कर रहा हूं।

गीली मेहंदी रोई होगी छुपकर घर के कोने में,

ताज़ा काजल छूटा होगा चुपके-चुपके रोने में।

जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आंगन में,

शायद दूध उतर आया हो बूढ़ी माँ के दामन में।।

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