Site icon Youth Ki Awaaz

“शशि थरूर के ट्वीट पर बीजेपी और मीडिया में चिल्लाहट क्यों?”

शशि थरूर

शशि थरूर

जब से सत्ता में बीजेपी आई है सोशल मीडिया पर हिन्दू धार्मिक उन्माद की एक बाढ़ सी आई हुई है। “गर्व से कहो कि हम हिन्दू हैं” और “भारत एक हिन्दू राष्ट्र है” या “देशद्रोही पाकिस्तान चले जाओ” जैसे स्लोगन आपको अनेक जगहों पर पढ़ने को मिल जाएंगे। ऐसे में पाठकों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि निष्पक्ष भाव से लिखे गए इस लेख को उसी भाव से पढ़ें और अपनी राय भी ज़रूर दें।

30.01.2019 को खबरों के लिए जब टेलीविज़न खोला तब हर न्यूज़ चैनलों पर सिर्फ शशि थरूर के एक ट्वीट पर डिबेट हो रही थी, तब मैंने भी उस ट्वीट को पढ़ा और मुझे कुछ गलत नहीं लगा।

शशि थरूर का ट्वीट। फोटो साभार: Twitter Account Sashi Tharoor

इतनी सी बात पर बीजेपी की परेशानी तो दिख ही रही है और उससे भी ज़्यादा मीडिया परेशान है। मीडिया शशि थरूर मामले को उछालकर लोगों के ज़हन से बेरोज़गारी वाले मसले को हटाना चाहती है।

सबसे पहले जानें बाबासाहब अंबेडकर के बारे में

बाबासाहब अंबेडकर ने हिन्दू धर्म तथा हिन्दू समाज को सुधारने, समता तथा सम्मान प्राप्त करने के लिए तमाम प्रयत्न किए, परन्तु सवर्ण हिन्दुओं का ह्रदय परिवर्तन ना हुआ। उल्टे उनकी निंदा करते हुए उन्हें हिन्दू धर्म विनाशक तक कहा गया।

उसके बाद उन्होंने कहा था कि हमने हिन्दू समाज में समानता का स्तर प्राप्त करने के लिए हर तरह के प्रयत्न और सत्याग्रह किए लेकिन सब निरर्थक सिद्ध हुए। हिन्दू समाज में समानता के लिए कोई स्थान नहीं है।

अंबेडकर। फोटो साभार: Getty Images

हिन्दू समाज का यह कहना था कि मनुष्य धर्म के लिए हैं जबकि अंबेडकर का मानना था कि धर्म मनुष्य के लिए है। अंबेडकर ने कहा कि ऐसे धर्म का कोई मतलब नहीं जिसमें मनुष्यता का कुछ भी मूल्य नहीं हो। जो अपने ही धर्म के अनुयायिओं को धर्म शिक्षा प्राप्त नहीं करने देता, नौकरी करने में बाधा पहुंचाता है, बात-बात पर अपमानित करता है और यहां तक कि पानी तक नहीं मिलने देता, ऐसे धर्म में रहने का कोई मतलब नहीं है।

अंबेडकर ने हिन्दू धर्म त्यागने की घोषणा किसी भी प्रकार की दुश्मनी व हिन्दू धर्म के विनाश के लिए नहीं की थी बल्कि उन्होंने इसका फैसला कुछ मौलिक सिद्धांतों को लेकर किया जिनका हिन्दू धर्म में बिल्कुल तालमेल नहीं था।

1927 के अंत में सम्मेलन में अंबेडकर ने जाति भेदभाव और छुआछूत को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए प्राचीन हिंदू पाठ और मनुस्मृति की सार्वजनिक रूप से निंदा की और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं।

25 दिसंबर 1927 को उन्होंने हज़ारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को ‘मनुस्मृति दहन दिवस’ के रूप में अंबेडकर वादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है।

बीजेपी में खलबली क्यों

अब सवाल यह उठता है कि बाबासाहब अंबेडकर जिन्होंने हिन्दू धर्म की आलोचना की थी, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, राम और कृष्ण पर विश्वास नहीं करते थे और ना ही उनकी पूजा करते थे, तो क्या बीजेपी बाबासाहब अंबेडकर को सम्मान नहीं करती? क्या उनके बनाए संविधान को नहीं मानती? अगर करती और मानती  है, तब एक छोटे से ट्वीट पर इतनी चिल्लाहट क्यों?

ऐसे भी कुम्भ में बीजेपी के नेता डूबकी कम और सेल्फी लेते हुए हंसी मज़ाक ज़्यादा कर रहे थे। जब आस्था को दिखावा करने लगेंगे तब ऐसे सवाल ज़रूर उठेंगे। यहां पर मीडिया को भी ज़रूरी है कि वह बेरोज़गारी के आंकड़ों, अन्ना के आंदोलन और रोज़गार पर बात करे।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। फोटो साभार: Getty Images

मीडिया हुकूमत के दलाली पर लगी हुई है। हिन्दू राष्ट्र जैसे विवादित विषय पर व्यर्थ की ऊर्जा बर्बाद करने की बजाय उसे हिन्दुओं को संगठित करने में लगाना चाहिए।

हिन्दू धर्म में निहित जात-पात के भेदभाव वाली सबसे बड़ी बीमारी को जड़ से खत्म करने की ज़रूरत है ताकि देश में अमन और शांति कायम रहे। देश में विदेशी निवेश आने के लिए उचित माहौल बनाने और राष्ट्र का सर्वांगीण विकास करने के लिए यह अति आवश्यक है।

Exit mobile version