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नफरत फैलाने वाली बयानबाज़ी का सहारा क्यों ले रहे हैं राजनेता?

भारत के सभी राज्यों और क्षेत्रों में यह आम बात है कि किसी प्रसिद्ध व्यक्ति को गाली दो और सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करो। यह कथन किसी एक व्यक्ति या नेता पर आधारित नहीं है। देश में छोटे से छोटे और बड़े से बड़े नेताओं का यही हाल है।

आपको याद होगा कि 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने कॉंग्रेस को इतना कोसा कि देश की जनता को यह यकीन हो गया कि कॉंग्रेस से अच्छा शासन और प्रशासन नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर दे सकते हैं। साथ ही कॉंग्रेस द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार से निजात दिला सकते हैं लेकिन क्या नरेंद्र मोदी को जनता ने जिस वजह से चुना था वह कोई ऐसा काम कर पाए?

अब आइये राज्य स्तर पर ओवैसी भाइयों और गिरिराज सिंह के साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान की बात करते हैं, ये वही नाम हैं जो हर वक्त देश में ऐसे बयान देते हैं, जिनसे देश की जनता के बीच आपसी भाईचारे पर प्रभाव पड़ता है। सांप्रदायिक बयानबाज़ी के लिए यह लोग मीडिया चैनलों में लोकप्रिय हैं, देश तो छोड़ो यह लोग बयानों में अमेरिका, पाकिस्तान और चीन तक को कई बार युद्ध हरा चुके हैं और बॉर्डर पर पीछे धकेल चुके हैं।

अब उन नेताओं की भी सुन लीजिए जिनकी कोई नहीं सुनता। अब जब बात निकली ही है तो भाजपा के उन नेताओं का ज़िक्र ना करना भेदभाव होगा जो हाल ही में चर्चा में हैं।

जी हां, केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े आजकल अपने बयान को लेकर चर्चा में हैं। समाज में किसी को गाली देकर ही चर्चा नहीं बटोरी जाती बल्कि देश की जनता में ज़हर घोलकर भी यह काम बखूबी किया जा सकता है। बस यही काम हेगड़े ने किया और एक ऐसा बयान दिया जिससे एक समुदाय में रोष तो दूसरे में भय पैदा हो सके।

नितिन गडकरी भी इस मामले में पीछे नहीं हैं

नितिन गडकरी। सोर्स- Getty

भाजपा सरकार में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का बयान भी मीडिया में छाया हुआ है। यह बेवजह नहीं है, क्योंकि भाजपा में गडकरी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताया जाने लगा है और शायद गडकरी भी इसी में लगे हुए हैं। तभी तो उन्होंने देश की जनता से झूठे वादे करने वाले नेताओं को नसीहत देते हुए कहा, “इतने ही वादे किए जाने चाहिए जितने पूरे किये जा सकें अन्यथा झूठे वादे करने वालों को जनता मारती भी है”।

इस बयान के बाद सीधे तौर पर तो भाजपा को इससे जोड़कर देखा जा रहा था क्योंकि भाजपा में जुमलेबाज़ी का अधिक चलन है और वास्तविकता से कोई सम्बंध नहीं है। भाजपा के प्रवक्ताओं ने इस बयान को कॉंग्रेस पर फिट कर दिया। बयान का मतलब सभी समझते हैं और यह भी समझते हैं कि गडकरी सीधे तौर पर प्रधानमंत्री को टारगेट कर रहे हैं। इस बयान के बाद गडकरी की प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी से अटकलों का बाज़ार और गर्म हो गया और अमित शाह सहित नरेंद्र मोदी के लिए समस्या उत्पन्न होना तय है।

एक और राज्य स्तर के नेता जिनका संबंध गुजरात से है, जीतू वाघनी यह गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, इन्होंने तो हद ही कर दी, इन्होंने राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी को कह डाला कि यह कमांडो घेरे में पैदा हुए और वहीं दूध पिया। इन साहब से कोई यह पूछ रहा है क्या कि राहुल-प्रियंका कहां पैदा हुए?

खैर, यह तुच्छ सोच और घटिया राजनीति के कुछ उदाहरण थे जो पेश किए। कोई इनसे पूछे कि उनका मुकाबला राहुल-प्रियंका से है कि उनके बचपन से। राजनेता राजनीति करता है मगर उसमें भी थोड़ा लॉजिक और थोड़ा लिहाज़ होता है।

सिर्फ भाजपा नहीं कॉंग्रेस भी है बराबर की हिस्सेदार

राज बब्बर। फोटो सोर्स- फेसबुक

इस मामले में केवल भाजपा ही दोषी नहीं है, कॉंग्रेस भी बराबर की हिस्सेदार है। समय-समय पर कॉंग्रेस नेता भी मानवता की हदों को पार करते रहे हैं। इनमें मुख्य तौर पर हाल ही में हुए मध्यप्रदेश चुनाव प्रचार का ज़िक्र करते हैं, जहां कॉंग्रेस नेता राज बब्बर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां की उम्र की तुलना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुपये की गिरावट से कर दी। कॉंग्रेस को इसके लिए आलोचना का सामना करना पड़ा।

बहरहाल, यह बदज़ुबानी किसी बदगुमानी की वजह से नहीं है बल्कि यह केवल गुमनामी को मिटाने और मीडिया में छाने के लिए है, इसलिए राजनेताओं की परिभाषा सेवा या राजनीति नहीं बल्कि अब इनकी परिभाषा बदज़ुबानी, गलत बयानी और मीडिया में जगह बनानी है।

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