Site icon Youth Ki Awaaz

“महिलाओं के जननांगों के इर्द-गिर्द ही गालियां क्यों दी जाती हैं?”

बिक गई है Govt.

बिक गई है Govt.

कुछ रोज़ पहले रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार करते हुए मैं और मेरा तीन साल का बेटा कहानियां सुन रहे थे। इसी बीच अचानक से शोर हुआ और दो-तीन लोग आपस में लड़ने लगे।

ऐसा लग रहा था कि सामान इधर-उधर होने की वजह से वे चिल्ला रहे थे। खैर, वे चिल्ला ही नहीं रहे थे बल्कि एक-दूसरे को माँ-बहन की गालियां देने में भी लगे हुए थे। दिमाग एकदम झनझना गया।

ट्रेन आने के बाद अपनी सीट पर बैठी ही थी कि थोड़ी देर में सीट को लेकर दो लोग आपस में माँ-बहन की गाली देना शुरू कर दिए। कसम से चिल्लाने का मन कर रहा था। साथ में बच्चा ना होता तो अच्छा खासा सुना देती।

खैर, पुलवामा अटैक के बाद तो व्हाट्सअप और ट्वीटर के ज़रिये एक-दूसरे को माँ-बहन की गालियां देने की बाढ़ सी आ गई है। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है जब लोग राष्ट्र और देशभक्ति के नाम पर माँ-बहन और बेटी को बीच में लाकर गालियां दे रहे हैं।

देशभक्ति यह कभी नहीं कहती कि समाज के किसी भी वर्ग को (खास तौर पर महिलाओं) को टारगेट करो और गाली दो। आप कहीं भी सुनने पर पाएंगे कि सारी गालियां औरतों को लेकर ही बनी हुई हैं, विशेष तौर पर जननांगों को लेकर।

एक कार्यशाला के दौरान नारीवादी कार्यकर्ता कमला भसीन जी की एक वीडियो दिखाई गई थी जिसमें वह कह रही थीं कि दुनिया की सभी औरतों का जीवन उनके दोनों जांघों के बीच जननांगों में समेट दिया गया है। इज्ज़त आबरू सब कुछ।

मुझे भी ऐसा लगता है कि परिवार और समाज की इज्ज़त भी उसी जननांगों में रख दिया गया है, चाहे भड़ास निकालो, खुशियां मनाओ या यौनिक सुख पाओ। साली, रंडी, वैश्या और रखैल सब महिलाओं पर ही बने हैं। यह जाने बगैर कि इसमें किस शब्द की उत्पत्ति कहां से और क्यों हुई है।

आर्ट प्रैक्टिशनर भगवती प्रसाद कहते हैं, “हमें बचपन से ही इस तरह की माँ-बहन की गाली सुनने की आदत हो जाती है। पड़ोस बाज़ार और घर में यह इतना सामान्य हो गया है कि हमने इस पर कभी सवाल उठाया ही नहीं। यह हमारी परवरिश की देन है।”

जनरेशन की ट्रेनिंग ही ऐसी हुई है। हमें (पुरुषों को) बचपन से ही इस तरह ट्रेनिंग मिलती है कि गाली देकर हमने कोई तीर मार लिया है। डिसेंट लुक वाला लड़का यदि गाली देकर बात करता है तो सब कहते हैं, हाउ कूल! कभी हमने सोचा ही नहीं कि ये गाली किसको लेकर और किस पर बनी हुई है और क्यों बनी है।

जब हम बड़े होते हैं, हमें तब एहसास होता है कि हम क्या बोल रहे हैं फिर वह आदत में ऐसे शामिल होता है कि खुद में अजीब लगता है। ऐसा एहसास भी इसलिए हुआ क्योंकि आपके इर्द-गिर्द अब कुछ महिलाएं भी हैं जो आपकी माँ बहन के अलावा दोस्त भी हैं।

गुस्सा एक भाव है जो सभी को आता है मगर गुस्से में गाली निकालना और वह भी महिला सूचक शब्दों के साथ तो कतई जायज़ नहीं हैं। कितनी पत्नियों ने, कितनी माओं ने, कितनी बहनों और कितनी महिला दोस्तों ने हर उस आदमी को रोका होगा जो स्त्री सूचक गाली का इस्तेमाल करते हैं।

वंचित समुदाय के हक के लिए बेबाक अपनी राय रखने वाले पत्रकार अनिल चमडिया कहते हैं, “स्त्री सूचक गाली को तत्काल बंद किया जाए और इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाए। जिस प्रकार जाति सूचक शब्द बोलने पर पाबंदी है, वैसे ही स्त्री सूचक गालियों पर भी संज्ञान लेने की ज़रूरत है और सिर्फ महिला संगठन ही नहीं बल्कि सभी को अभियान चलाना चाहिए “#नो_तेरी_माँ_की।”

जेंडर और यौनिकता जैसे विषयों पर सामुदायिक रेडियो में काम करने के बाद जो एक समझ बनी उसके बाद लगता है कि कोई माँ-बहन की गाली इसलिए देते हैं क्योंकि माँ और बहन (घर की महिलाओं) को घर की इज्ज़त माना जाता है।

महिलाओं की यौनिकता पर घर और समाज की सारी इज्ज़त का दारोमदार होता है। ऐसे में झगड़े में सामने वाले को चोट पहुंचाने का सबसे आसान ज़रिया है। भाई-बहन और माँ-बेटे के रिश्ते को यौनिकता से जोड़ते हुए गाली देना अब लोगों की आदतों में शुमार हो चुका है।

लोग बड़ी आसानी से कह देते हैं, “मैं तेरी माँ या बहन के साथ ऐसा कर दूंगा वैसा कर दूंगा।” शायद इसके पीछे कभी यह सोच रही हो कि महिलाओं के पास सिर्फ योनि (यौनिकता) है जिस पर ‘दाग’ लगा दो फिर बचता ही क्या है।

सामुदायिक रेडियो से लंबे समय से जुड़ी और जेंडर जैसे विषय को कला के माध्यम से प्रस्तुत करने वाली फिल्म मेकर एकता मित्तल कहती हैं, “एक खास वर्ग ही इसका इस्तेमाल करता है। यह वर्ग जो हर वक्त गुस्से में रहता है और दूसरे वर्ग को दबाने की चेष्टा करता है। यह सिर्फ पावर का खेल है।”

किसी पुरुष को दर्द देना हो तो बस औरत के जननांग के साथ जोड़ दो। पुरुष के पास यौनिकता के साथ-साथ ताकत, हिम्मत और रुतबा सब कुछ है। किसी भी एक चीज़ को कम कर दो वह गाली हो जाता है। जैसे- कुत्ता या गीदड़ (ताकत के सन्दर्भ में), हरामखोर यानि मुफ्त का खाने वाला, (आर्थिक सन्दर्भ में) और अंत में नामर्द (यौनिकता के सन्दर्भ में)।

इस विषय पर सामुदायिक रेडियो के साथ अच्छा खासा अनुभव के साथ वंदना कहती हैं, “यहां हम कहते हैं माँ-बहन को गाली दी जा रही है मगर इसमें भाई और बेटा भी तो शामिल है। क्या यह गाली दोनों को नहीं दी जा रही है?”

बकौल वंदना, “बात यह है कि पुरुष की यौनिकता के साथ इज्ज़त नहीं जुड़ी है, इसलिए हमें लगता है कि गाली सिर्फ महिला को दी जा रही है। अगर कोई लड़का यह कह रहा है कि मैं तेरी माँ या बहन के साथ ऐसा कर दूंगा तो उसमें वह उस महिला के साथ खुद को भी तो जोड़ रहा है मगर उसकी यौनकिता के साथ घर की इज्ज़त नहीं जुड़ी है, इसलिए यहां भी हमें लगता है कि गाली सिर्फ महिला को दी जा रही है।”

खैर, मुझे थोडा भी आश्चर्य नहीं लगता जब मैं कई महिलाओं को भी माँ-बहन की गाली देते देखती हूं। कुछ स्टूडेंट्स और जूनियर्स से बातचीत करने पर पता चला कि उनके फ्रेंड सर्किल में कुछ लड़कियां हैं जो माँ-बहन की गालियां देती हैं।

वह बोल्ड दिखना चाहती हैं, लड़कों में अपनी जगह बनाना चाहती हैं और लड़के भी उन्हीं के साथ बातचीत बढ़ाते हैं कि इसे कोई प्रॉब्लम नहीं है, यह तो अपने टाइप की है। ऐसी लड़कियों को वे साहसी, निडर और बेबाक समझते हैं।

यह समझने की ज़रूरत है कि इन चीज़ों की शुरुआत कहां से हो रही है। यदि घर से हो रही है तो वहां पर पाबंदी लगाने की ज़रूरत है।

पिछले कुछ दिनों में इन गालियों ने अपनों के बीच में ज़हर बोया है। पूरे महिला समूह को निशाना बनाया गया है। बस अब बहुत हुआ, आपको ज़्यादा गुस्सा आ रहा है और आप कुछ नहीं कर सकते, तो मत कीजिए। किसने बोला कुछ करने को?

देशभक्ति यही कहती है कि अपना काम ईमानदारी से कीजिए। देशभक्ति के बीच किसी भी देश की माँ-बहन को गाली में ना लाएं। आप इससे सहमत हैं तो आज ही कहिए, “#नो_तेरी_माँ_की।”

Exit mobile version