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“एक लड़की के अकेले रहने के फैसले का स्वागत कब करेगा यह समाज?”

लड़की की प्रतीकात्मक तस्वीर

लड़की की प्रतीकात्मक तस्वीर

मेरे ज़हन में एक सवाल है जो मैं इस लेख के ज़रिए आपके साथ साझा करना चाहती हूं। एक टीनएज लड़की जो काफी समय से घर से दूर रह कर पढ़ाई कर रही हो, यह ज़रूरी हो गया है कि उसका कोई बॉयफ्रेंड हो और अगर वह अपने आस-पास के लड़कों से बात ही ना करे तो उसे “खड़ूस” की संज्ञा देना उचित है?

मुझे तब ऐसा महसूस हुआ जब हाल ही में मेरी एक फ्रेंड ने मुझे अपना किस्सा सुनाया। अभी कुछ दिन पहले उसने फेसबुक प्रोफाइल अपडेट करते हुए उसमें कुछ कैप्शन ऐड किया। कैप्शन पुराने गाने की दो लाइन्स थीं। उस पर उसके एक फ्रेंड ने उसे प्राइवेट मेसेज किया, “तू तो इश्क में पड़ गई।”

उसके इंकार करने पर फ्रेंड ने जो रिप्लाई किया वह काफी झकझोर कर रख देने वाला था। उसके मित्र ने यह कहा कि तू 24 साल में किसी की ना हो पाई, तो अब बचा ही क्या है तेरे जीवन में?

यह बात कहीं ना कहीं कचोट रही थी कि क्या एक लड़की का अव्वल रहकर पढ़ाई करना और कॉलेज में मस्ती ना करना उसे किसी अलग ही वर्ग में रखता है? उसकी छवि एक खड़ूस के तौर पर पेश की जाती है।

अब इसके ही एकदम उलट यदि एक लड़की अव्वल दर्जे़ की पढ़ाई ना करे, लड़कों से भी ज़्यादा बात करे तब उसे कैरेक्टरलेस या चरित्रहीन कहना भी इन लोगों के लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी।

इस फेमिनिज़्म के ज़माने में भी लड़कियों के चरित्र का मूल्यांकन करना और उसे अच्छी तरह से केवल 2 मिनट में परिभाषित करना बहुत सरल है। हमें सोचना होगा कि क्या लड़कियों के लिए चली आ रही इस स्टीरियोटाइप सोच का अंत कभी संभव है?

आज भी एक लड़की को अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए लड़के का होना ज़रूरी है? अगर आज भी वह अकेले रहने का फैसला करे तो उसे लोगों की उपहास और तानों के बीच ही रहना पड़ेगा।

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