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महिला दिवस : क्या एक दिन काफी है ?

महिला दिवस…नाम से समझें तो मतलब निकलेगा महिलाओं का दिन…क्यों जरूरत पड़ी आखिर इस दिन को मनाने की. वैसे कभी सोचा है आखिर पुरुष दिवस क्यों नहीं मनाया जाता है.

आखिर महिला दिवस मनाने के पीछे क्या मानसिकता है. क्या इसके जरिए ये बताने की कोशिश की जा रही है कि दे दिया तुमको एक दिन जाओ जी लो अपनीजिंदगी. इस एक दिन में सारे सपने पूरे कर लो, हंस लो, मुस्करा लो, सारी खुशियां समेट लो. क्योंकि आज के बाद जो कल का सूरज निकलेगा. तुम वही दबी कुचली, दर्द सहती अबला नारी हो जाओगी.

यूं तो आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, खेल, रक्षा, मंनोरंजन, बिजनेस हर जगह महिलाएं पीछे नहीं हैं… इतना ही नहीं महिलाएं तो सिर पर ईंट उठा के बड़ी-बड़ी इमारत बनाने में पुरुषों के साथ बराबरी की हिस्सेदारी निभाती हैं, लेकिन घर के अंदर उनको वही नसीहत मिलती है कि औरत हो मर्द बनने की कोशिश नहीं करो.

हकीकत तो ये है औरतों को मर्द बनने की जरूरत है ही नहीं…वो तो सृष्टि की रचाई सबसे खूबसूरत और मजबूत कृति है. वो एक महिला ही थी जिसने अपने अपमान के बदले महाभारत का युद्ध छेड़ दिया था, लेकिन आज की महिलाओं को क्या हुआ है. अपमान सहती जा रही हैं और उफ्फ भी नहीं करती हैं. घूंघट को शान तो बुर्के को रिवाज बताती हैं.

किसी लड़की के साथ रेप जैसी दर्दनाक घटना होती है, तो लोग खड़े हो जाते लड़की के चाल-चलन को कोसने…और इसमें खुद महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. दुख तो सबसे ज्यादा तो इस बात का है कि पुरुष प्रधान इस समाज के बनाए गए खोखले रिवाजों को कुछ महिलाएं उनका धर्म और कर्तत्व्य समझती हैं… कितनी सारी मांएं होंगी जो अपनी बेटी को ये समझाती हैं कि तुम एक लड़की हो ये बात कभी न भूलना…इसी सोच के चलते कितनी मासूम बच्चियों से उनसे पैदा होने का अधिकार भी छीन लिया जाता है.

तो महिला दिवस पर महिलाओं के अधिकारों के बात करने वालों पहले नन्ही-नन्ही बच्चियों को जन्म लेने का अधिकार तो दो. कॉलेज और ऑफिस जाती लड़कियों को बेखौफ सड़क पर चलने का अधिकार तो दो. बंद कमरों में सिसकती उन चीखों को अपनी बात रखने का अधिकार तो दो. मासूम बच्चियों को बिना डर के जीने का अधिकार तो दो…ये अधिकार दे सकते हो तो दो…वरना ये एक दिन सम्मानित करने का ढोंग न करो.
क्योंकि ये एक दिन बहुत कम हैं. महिलाओं पर बंदिशों के नाम पर इतनी बेढ़ियां लगाईं जा चुकी हैं कि उसे निकालने में एक दिन क्या कई सदियां बीत जाएंगी. तो अगर डरते नहीं हो महिलाओं की काबलियत से तो इन बंदिशों को तोड़ उन्हें खुले आसमान में उड़ने का अधिकार तो दो..

pic credit – Lokmatnews.in

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