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लोकतंत्र या तानाशाही

लोकतंत्र की हत्या कर  स्थापित करके क्या देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका, व्यवस्थापिका को पूरी तरह से अपने नियंत्रण कर जनता को बड़े सपने दिखाकर एक सोची समझी रणनीति के तहत गुलाम बनाने में प्रयासरत है।  इसके  कुछ उदाहरण इतिहास में पहली बार तीन जजों को प्रेस कांफ्रेंस करना, दो पत्रकारों का नौकरी से साथ धोना, सवाल पूछने वाले छात्रों को देशद्रोही साबित कर खुद को स्वघोषित राष्ट्रवादी बनाना, नोटबंदी से कितने लोगो के नौकरी चली गयी लेकिन साहब के पास जवाब नही है, अपनी ही पार्टी से बड़े बुजुगो को टिकट नही देना, व्यापारी वर्ग को विशेष लाभ साथ ही किसानो के साथ सौतेलापन करना, १५ लाख का वायदा करना, क्या लोकशाही से परे नही है।

संविधान हमेशा  सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए प्रतिबन्ध है। जनता के लिए आपने क्या कार्य लिए, ५ साल का ट्रैक रिकॉर्ड क्या है या ये चुनाव देश में अंग्रेजो  की विभाजनकारी  नीति की बुनियाद पर लड़ा जाने वाला है, इस ऑटोमेशन के दूर में सरकार के पास युवा रोजगार के लिए क्या प्लान है, या पकोड़ा बेचकर ही जीवन यापन होगा। जुमले बाजी करके सेना के काम पर अपनी सरकार टैग लगाकर, शहरों के नाम बदल कर कब तब जनता को गुमराह करेंगे।

केवल कुछ विशेष लोगो को अपना इंटरव्यू देना, करन थापर से दूर करना (सवालों से बचना), आज देश में जो माहौल बना हुआ है, भाई भाई को धर्म के नाम पर बाटने की जो राजनीति की जा रही है, अपनी राजनीतिक रोटियां सेककर नेता अपने राजनीतिक जीवन को जरूर पंहुचा दे, लेकिन इससे देश का भला कभी नही हो सकता। आज निःसन्देह विपक्ष खुद को साबित करने में नाकाम हो रहा है, लेकिन कही विपक्ष की एक्जुटता, वर्तमान सरकार को महगी ना पड जाए।

किसान मजबूर होकर आत्महत्या कर रहे हो, वहां की सरकार के पास किसानों की मदद के लिए तो पैसे नहीं है लेकिन जन संवाद के नाम पर प्रधानमंत्री को बुलाकर सरकारी खर्च पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया गया, सरकार अब अपने कार्यकाल के अंतिम पड़ाव पर है, और इसकी कार्यशैली से यह स्पष्ट हो गया है कि आगामी चुनावों में इस सरकार को बड़ी चुनौती मिलने वाली है। जनता उनसे पिछले चुनावों में किए वादों का हिसाब मांगेगी, जनता उनसे सवाल पूछेगी, लेकिन उनके पास जवाब नहीं होंगे।

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