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“मेरी बेटियां कोई चीज़ नहीं है, जिनको मैं दान दे दूं”

हर्षा बताती हैं कि उसके पिता की बदौलत किस तरह उनकी बहन की शादी उनके शहर में चर्चा का विषय बन गई। तो चाय की प्याली और रस लेकर इत्मीनान से बैठकर पढ़िए हर्षा की बहन की अनोखी शादी का यह किस्सा। (27 वर्षीय हर्षा दिल्ली हाई कोर्ट में वकील हैं और उनकी बहन निष्ठा एक डॉक्टर हैं।)

आपका उद्देश्य क्या है?

मेरी माँ एक स्कूल टीचर थी और अक्सर सुबह जल्दी घर से निकल जाती थी। इसके बाद पापा मेरी और मेरी बड़ी बहन की देखभाल करते, हमारे लिए नाश्ता बनाते, टिफिन पैक करते और यहां तक कि हमारे बालों में कंघी भी करते थे।

मेरा बचपन बिहार के एक रूढ़िवादी और छोटे से शहर बक्सर में बीता। मैं बचपन से ही बहुत शरारती और चंचल स्वभाव की लड़की थी। घर के अंदर हम दोनों बहुत बेपरवाह थे और हमारे ऊपर किसी तरह की बंदिशें नहीं थी। हम दोनों बहनें सिर्फ अपने करियर पर ध्यान दे रहे थे। मेरे पापा एक सरकारी वकील थे और जब मेरे रिश्तेदार उनसे हमारे बारे में पूछते तो वह कहते कि मेरी बेटियों ने सिर्फ शादी करके बच्चे पैदा करने के लिए जन्म नहीं लिया है बल्कि उनके जीवन का एक उद्देश्य है और वे उसे पूरा करने में जुटी हैं। वो जब शादी करना चाहेंगी तो किसी भी जाति, वर्ग या लिंग के पार्टनर को चुनने के लिए स्वतंत्र होंगी।

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- Youtube

सच में, विश्वास नहीं हो रहा ना? लेकिन यह सच है। जब मेरी बहन, जो कि एक डॉक्टर है उसने जब शादी करने का फैसला किया, तो मेरे माता-पिता खुश हुए। जीजू और उनका पूरा परिवार हमारे जैसा ही खुले विचारों वाला था।

ज़रा हट कर

जब मेरी बहन की शादी का दिन नज़दीक आया तो पापा ने समारोह से पहले कोर्ट में शादी का रजिस्ट्रेशन कराने का सुझाव दिया। उन्होंने शादी के लिए आर्य समाज मंदिर का चुनाव किया।

वह यह भी नहीं चाहते था कि कोई पंडित कर्मकांड करे। क्यों? क्योंकि वह कभी समझ नहीं पाये कि सिर्फ एक उच्च जाति के ब्राह्मण को ही विवाह कराने का अधिकार क्यों था? किसी और जाति के व्यक्ति को क्यों नहीं?

जीजू का परिवार मेरे पापा के फैसले से बहुत प्रभावित हुआ। उन्होंने पुराने, अतार्किक रीति-रिवाज़ों को पीछे छोड़कर इस फैसले का स्वागत किया लेकिन हम देसी शादी के मज़े लेने से चूकने वालों में से नहीं थे। संगीत, मेहंदी, हल्दी, शॉपिंग से लेकर, अपनी बहन की शादी में हमने खूब धमाल मचाया।

हम सभी चाहते थे कि दीदी अपनी शादी को जीवनभर याद रखे। पापा ने शादी के निमंत्रण कार्ड से सच में इसे खास बना दिया।

शादी वाला कार्ड

मुझे आज भी वह पल याद है जब हम सबने पहली बार शादी का कार्ड देखा। आमतौर पर ज़्यादातर कार्ड्स भगवान के आशीर्वाद की लाइनों से शुरू होते हैं लेकिन इसके विपरीत मेरी बहन की शादी का कार्ड एक अनोखे शीर्षक से शुरू हुआ था, ‘जाति दहेज मुक्त शादी’।

कार्ड में उल्लेख किया गया था कि मेरे माता-पिता कन्यादान (लड़की को दूल्हे को देने वाले पिता की रस्म) नहीं करेंगे। कार्ड में यह भी कहा गया था कि हमारी बेटी कोई चीज़ नहीं है, जिसको हम दान दे दें।

कार्ड पढ़कर हमारी आँखों में आँसू आ गए। खुशी के आंसू। मुझे आज शायद पहली बार पिता की वो बात समझ आयी थी जब वो हमें बताया करते थे कि जीवन में कोई ना कोई उद्देश्य होना चाहिए। मेरी बहन की बिना कन्यादान की शादी और अनूठा निमंत्रण कार्ड हमारे शहर बक्सर में कई महीनों तक चर्चा का विषय बना रहा।

यह सिर्फ मेरी दीदी के लिए ही नए जीवन की शुरुआत नहीं थी, बल्कि कई ऐसे मेहमानों के लिए भी थी, जिन्होंने इसके बारे में पहले कभी नहीं सोचा था। इससे अगर किसी भी पिता का अपनी बेटी के प्रति नज़रिया बदलता है, तो फिर उनके जीवन का उद्देश्य भी सफल हो जाए। सच कहा ना?

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राइटर- Kiran Rai

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