दो अक्षर के इस ‘जंग’ शब्द को कहने में शायद एक सेकंड भी ना लगे मगर यह शब्द कितना भयानक है, इसका अंदाज़ा हमें तब होता है जब हम इतिहास खंगालते हैं। मानव सभ्यता के इतिहास के ज़रिये हम तमाम जंगों के उदाहरण देख सकते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप ने भी ऐसी बहुत सी जंगे देखी हैं। जब हम भारत का इतिहास पढ़ते हैं, तो देखते हैं कि युद्ध से ही नए राज काल का आगाज़ होता था और युद्ध ही उस राज काल के अंत का कारण बनता था।
युद्ध का अंत दर्दनाक होता है
अपने अहंकार और राज्य विस्तार की लालसा में राजा अपने राज्य को युद्ध की अग्नि में ढकेल देते थे, जिसमें हज़ारों और लाखों आम जनता बूढ़े, बच्चे और जवान अपना सब कुछ गवा देते थे।
युद्ध में हारने वाला अपना सब कुछ गवा देता था मगर जीतने वाला भी महज़ जमीन के टुकड़े से ज़्यादा कुछ जीत नहीं पाता था और उसे भी फिर किसी युद्ध में अपना सब कुछ गवाना पड़ता था।
आधुनिक मानव के इतिहास में भी ऐसे बहुत से युद्ध हुए हैं, जिनमें से दो बड़े युद्ध ‘प्रथम विश्व युद्ध’ और ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ आपके सामने हैं। इन युद्धों में करोड़ों लोगों ने अपनी जानें गवा दी।
शिक्षा, स्वास्थ्य और खेल के नए आयाम कई सालों तक बाधित हो गए। नई बीमारियां अपना पैर पसारने लगे और विश्व की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई मगर इस युद्ध में किसी को भी कुछ हासिल नहीं हुआ।
आपके सामने युद्ध के यह चित्र प्रस्तुत करने का मकसद यह बताना है कि युद्ध से कभी कोई मसला हल नहीं हुआ, बल्कि युद्ध खुद में ही मसला बनकर उभरा है।
मीडिया का उन्मादी चेहरा
पिछले कुछ दिनों से टीवी पर एंकर्स युद्ध और उन्माद की भाषा बोल रहे हैं, सूट-बूट पहनकर, बालों में तेल लगाकर और पूरा मेक-अप करके एअर कंडीशन स्टूडियो में बैठ कर ‘मार दो’, ‘काट दो’ और ‘उड़ा दो’ जैसे स्लोगन ऐसे बोल रहे हैं कि युद्ध कोई क्रिकेट मैच हो जिसमें एक स्विंग बॉल डालो और दुश्मन को क्लीन बोल्ड कर दो।
ऐसा करने या कहने से हो सकता है कि न्यूज़ चैनलों की टीआरपी में इज़ाफा हो जाए लेकिन उनका यह रंग जब कुछ सालों बाद आने वाली पीढ़ी इंटरनेट पर देखेगी, तो सोचेगी कि क्या यह पत्रकारिता थी या कुछ और?
सेना पर विश्वास रखना होगा
हालात चाहे जैसे भी हो आपको, हमको और पूरे देश को अपनी सेना और इंटेलिजेंस एजेंसियों पर पूरा भरोसा करना चाहिए। उनके द्वारा लिया गया निर्णय बेहतर होगा, अगर आपको लगता है कि उन्मादी पोस्ट या स्टेटस लगा देने से आप देश सेवा कर रहे हैं, तो निश्चय ही आप गलत हैं और आपको यह धारणा बदलने की ज़रूरत है।
यह देश, गाँधी, नेहरू और कलाम की विरासत है और इस देश को इनकी विचारधाराओं ने ही बनाया है। अगर आप सच में देश सेवा करना चाहते हैं, तो अपनी उन्माद से भरे सोच को छोड़कर इन महापुरूषों के बारे में जानिए।
अगर आप सबको नहीं पढ़ सकते तो कम-से-कम गाँधी को ही पढ़ ही लीजिए, जिनकी झुकी हुई कमर और कांपते पैर जब लाठी के सहारे खड़ी हुई तो अंग्रेज़ी हुकूमत की तोप और बंदूकें मुरझा गई।