Site icon Youth Ki Awaaz

#Bebaak_Bol

मेरी माँ हमेशा मुझे रात को जागने,जग के ऐसी बातों को सोचने,जिनका कोई समाधान नहीं और जिन से मेरा लेना देना तो है ही नहीं उप्पर से उन विषयों पर ऐसे आर्टिकल लिखने जिनसे मुझे देश-द्रोही,कम्युनिस्ट,ढोंगी,सेकुलर सुनने को मिले,लोग गलियां दें, बहुत डांटती हैं। पर उनको कौन समझाए आज तक का इतिहास रहा है कि मेरे देश का हर अच्छा काम आधी रात को,या उसके बाद ही हुआ है चाहे श्री कृष्णा का जन्म हो,या बहुप्रतीक्षित स्वंत्रता का मिलना हो, चाहे GST लागु करना हो,चाहे नोटबंदि हो,चाहे दोनों सर्जिकल स्ट्राइक हों, तो मै कोनसा साधारण बच्चा हूँ ?
हाँ तो अब आते हैं अपने देश के इस नए कीर्तिमान पर जो 26 feb. रात इसी समय हमने स्थापित किया, हर भारतीय के दिल को जो ठंडक इस सर्द मौसम में पहुंची है उसका अंदाज़ा उस आग से लगाया जा सकता था जो सबके अंदर 14 feb से ही धधक रही थी जिस में ऑनलाइन जंग से लेकर सड़को पर लोगों के जुलूस-पुतला जलना और भी न जाने कितने काम आक्रोश में आकर हम करते चले गए क्युकी हमे अपने गुस्से को पालना नहीं आता या यूँ कहें कि हम  कुछ और कर भी नहीं सकते थे अपनी देशभक्ति दिखाने को, ये भी कहा जा सकता है कि जो वास्तव में किया जाना चाहिए था,जिस से समस्या का जड़ से समाधान होता, उस ओर हमने न ही ध्यान दिया और न ही कोशिष की, क्युकी हमे चाहिए था बदला।लो मिल गया.. अब तो हम सब बहुत खुश हैं… सच बताऊ खुश तो मै भी बहुत हूँ, मन तो मेरा भी कर रहा है की हमारी सेना की तारीफों के पुल बाँध दू सरकार की हिम्मत के गुणगान गाती घूमूँ मगर इस बात को फ़िलहाल बस ये कह कर समाप्त करती हूँ, कि भारत की विराट सेना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि 125 करोड़ लोगों का आत्मबल पूरी दुनिया से लोहा लेने के लिए काफी है और ऐसे नाज़ुक मोके पर वर्तमान सरकार द्वारा लिया गया ये कदम देश की आकांक्षाओं पर खरा उतरने वाला भी है और राजनैतिक इच्छाशक्ति को दर्शाने वाला भी, यंहा सभी राजनैतिक दल भी बधाई के पात्र हैं कि वो इस समय अपना दलगत नजरिया छोड़ कर पिछली बार की भांति सबूतों की मांग करने में नहीं लगे बल्कि हम एक राष्ट्र की भांति संगठित हुए खड़े हैं,जँहा जनता-सत्ता-पक्ष-विपक्ष सेना और सीमा हर जगह से बस भारत माता की जय ही सुनाई पड़ रही है।। किसी कवी की पंक्तियाँ हैं कि :- 
” यदि किसी लोलुप नज़र ने हमारी मुक्ति को देखा तो 
उठेगी तब प्रलय की आग कि जिस पर छार सोई है 
यह न समझो कि हिंदुस्तान की तलवार सोई है ” । । 
अब आते हैं घटना के दूसरे पक्ष पर कि आखिर हमने ये क्यों किया? क्या सिर्फ इसलिए की हमारी जनता 40 के बदले 400 की मांग कर रही थी? क्या जनता कुछ भी बोलेगी तो हम कर देंगे? शयद लोकतंत्र में ये सही भी हो मगर ये भी सत्य है कि bheed के विवेके नहीं होता, उसमे भावावेश होता है भावनाये होती हैं संवेदनाएं होती हैं जिनको कंही भी घुमा कर कुछ भी करवाया जा सकता है ठीक वैसे ही जैसे कश्मीर में घुसपैठिये वंहा की आवाम को उकसाते हैं भारत के खिलाफ, और जनता भड़क जाती है .. वैसे ही जैसे हमें उकसाया जा रहा था हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर और कई लोग यंहा भी भड़क गए चलो कम से कम इन भटके हुए लोगो को तो शांति मिली…  इसका परिणाम क्या हुआ? हमारी सीमाओं पर लगातार भरी मात्रा में गोलीबारी हो रही है । पाकिस्तान ने खुली चुनौती दे दी है कि हम भी जवाब ज़रूर देँगे। मीडिया में तो मानों आग ही लग गयी है दोनों मुल्को के हालातो को युद्ध के कगार पर लने वाली ये मीडिया ही है और अभी भी इनको चैन नहीं। क्युकि अगर हम ऑफिसियल बयान देखें तो उसमे कंही ये नहीं है कि हमने पाक पर हमला किया या सर्जिकल स्ट्राइक की, ये मात्रा एक *”मिशन बालाकोट : गैर मिलिट्ररी ऑपरेशन”* था मतलब हमने बस आतंकी ठिकानो को अपना निशाना बनाया है और आतंक को समाप्त करने के अपने पुरातन संकल्प को निभाते हुए एक कदम लिया है । मगर इतनी छोटी सी बात को तिल का ताड बना दिया इस मीडिया ने और बात चली गयी पाकिस्तान के ईगो पर और जब बात ईगो पर आजाये तो दिमाग की बत्ती तो बुझ ही जाती है फिर घनघोर अँधेरे में सही गलत कुछ नहीं दीखता। हम से बदला लेने की जगह अगर आज पाकिस्तान हमारे साथ खड़ा हो कर बोलता कि “स्वागत योग्य कदम है आपका,अपन दोनों मिल कर आतंककवाद को निस्तेनाबूत करेंगे [जैसा की पाक कई भाषणों में बोलता आया है] तो कोई विरोध ही नहीं होता बल्कि शयद उसकी चौतरफा वाहवाही होती हमारे रिश्ते भी सुधर जाते एक और काम था जो पाकिस्तान कर सकता था वो था “क्रेडिट लेना” बोल देता कि हमने ही तो कहा था आप से कि जैश-इ-मुहम्मद का ठिकाना यंहा है हमारे इस इलाके में, हमने ही आपकी पूरी व्यस्था की थी। हहहहहह मज़ा ही आ जाता फिर तो।।।।। क्या भाईचारा होता।। ओह्हू सोच कर ही कितना आनंद आरहा है मगर छोड़ो उनमे कहा इतनी अक्कल रखी। मेरे जो कुछ पकिस्तानों मित्र हैं वो माफ़ करें आज तो मौका है तो मै 4oka तो लगाउंगी ही आप चाहो तो आईडिया ले सकते हो मगर अब कोई फायदा नहीं क्युकी आपके आला कमान इतना कुछ बोल चुके हैं की अब ये बात करने का समय गया। 
अब आते हैं तीसरे पक्ष पर जो हुआ सो अच्छा हुआ अब कोशिष ये करनी है कि जो हो वो भी अच्छा ही हो। पहिले एक बार ज़रा ये तय कर लेते हैं कि ये चूहा बिल्ली की लड़ाई हमें कब तक खेलने हैं ? मतलब 70साल तो हो गए ऐसे ही लड़ते-लड़ते, युद्ध भी हो चुके,वार्ता करने की भी कोशिषे हुई, मगर न तो चूहा बिल से बहार निकल रहा न बिल्ली घात लगा कर उस पर लपकना बंद kr रही और इस में नुकसान हो रहा है उस घर के लोगो को जिसको ये लोग अखाडा समझे बैठे हिन् 40-400-500-1000 कहा तक बढ़ाना है ये गिनती? कितने घर उजाड़ने का सपना देखे बैठे हैं हम? समाधान की बात कब करेंगे? समाधान के रस्ते पर कब चलेंगे? सस्ती लोकप्रियता से ऊप्पर कब उठेंगे? 370 कब ख़त्म करेंगे? कश्मीर के लोगो को अपना भाई-बहिन जैसे कब समझेंगे? कब हम उनलोगों के लिए इतने रास्ते खोलेंगे कि उनको आतंकियों की तरफ देखने की ज़रूरत ही न पड़े? कहते हैं प्यार नफरत को हरा ही देता है और भारतवासी तो जड़-चेतन-पर्वत-नदी, सब से प्यार करते हैं मानवतावादी संस्कृति के पुरोधा हैं फिर क्यों मुह्हबत से कश्मीर को नहीं जीत लेते? क्यों बन्दूक की नोक अड़ाये हैं वँहा? कब तक हम बस विदेशों से अपनी तारीफ में 3-4 ट्वीट ले कर खुश होंगे? उन तारीफ करने वाले देशो को एक टेबल पर बैठा कर पाकिस्तान से सीधे दो टूक बात कब करेंगे? कब हम संयुक्त राष्ट्र संघ से उसका बहिष्कार करवाएंगे? कब हम जनमत संग्रह की कही गयी स्थितियां बनवाने में कामयाब होंगे? आखिर कब होगा वो सबेरा जब कश्मीर धरती का स्वर्ग बनेगा? कब जन्नत जाने की इच्छा रखने वाले लोग काश्मीर में आएंगे,भारत की भूमि को व बलिदानियों को नमन करेंगे? कब होगा कि किसी फौजी की पोस्टिंग कश्मीर में होने पर उसके घरवाले रात भर चैन से सोयेंगे? कब होगा जब वंहा की शासन व्यस्था वंहा के लोग खुद चुनेंगे और बाकी राज्यों की भांति वंहा भी विकास की लहार दौड़ेगी? अंतराष्ट्रीय दवाब-आंतरिक कसावट-सीमा की चाकचौबंद व्यस्था, कि कोई परिंदा भी पर न मार सके- देश के भीतर बैठे गद्दारो की पहिचान और उनका अंत, आखिर कब होगा? या फिर कभी नहीं होगा…… क्युकि शयद हम चाहते ही नहीं कि ये समस्या कभी ख़त्म हो नहीं तो हम अपनी देशभक्ति कहा दिखाएंगे? पाकिस्तान की रोज़ी-रोटी ही कश्मीर के नाम पर चलती है मगर हमें भी तो बस बदला ही दिखता है, खून का बदला खून.. सही भी है.. लो बदला…और फिर अब उनके बदले के लिए तैयार रहो…फिर से हम सड़को पर आएंगे और फिर हमारा जवाबी हुम्ला होगा…लोग लिखेंगे… आने वाली पीडियां पढेंगी… और उनके सामने भी लोग यूँही मरेंगे…. क्युकि हम समाधान नहीं ढूंढ रहे बदला ले रहे हैं….
बहरहाल इस चिंतित+ भटकी हुई+ भ्रमित हिन्दू + एक तथाकथित सेकुलर” की ओर से सबको बधाई और सद्बुद्धि की अनंत कामनायें।

“Balshree” Aadya Dixit
Brand Ambassador of Beti Bachao Beti Padhao.
Student Union President of K.R.G. college.

Exit mobile version