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कन्हैया कुमार को बेगूसराय में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा?

Kanhaiya kumar

पिछले एक-दो सालों में देश की राजनीति में एक बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिला है। राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर एक साथ कई नए चेहरों का पदार्पण हुआ। एक ओर गुजरात में जिग्नेश मेवानी और हार्दिक पटेल जैसे नेताओं का उदय हुआ, तो वहीं दूसरी ओर जेएनयू से निकले स्टूडेंट लीडर्स की भी आवाज़ राष्ट्रीय राजनीति के गलियारों में गूंजी। कन्हैया कुमार, शेहला राशिद और उमर खालिद जैसे स्टूडेंट लीडर्स युवाओं के नए “यूथ आइकॉन” बनकर उभरें।

कन्हैया कुमार की लोकप्रियता और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी बढ़ती दखल-

फोटो सोर्स- फेसबुक

इन सबके बीच जिस छात्रनेता ने सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोरी, वह हैं कन्हैया कुमार। कन्हैया कुमार 2015 में एआईएसएफ के प्रत्याशी के रूप में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए थे। 12 फरवरी 2016 को कन्हैया को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कन्हैया पर भारतीय दण्ड विधान की धारा 120 (बी) और 124 (ए) के तहत देशद्रोह और आपराधिक योजना बनाने का आरोप लगा। 9 फरवरी 2013 को संसद पर हमले के आरोप में अफज़ल गुरु को फांसी पर चढ़ा दिया गया था और कन्हैया पर आरोप लगा कि इस फांसी के विरोध में उन्होंने देशद्रोही नारे लगाएं।

हालांकि, कन्हैया ने इस बात को सिरे से नकार दिया, यहां तक कि मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई कि नारे वाला वीडियो डॉक्टर्ड था या आम भाषा में कहें तो फेक था।

राष्ट्रीय स्तर पर मोदी विरोध का प्रतीक-

इस मामले के बाद कन्हैया का नाम राष्ट्रीय राजनीति में खूब उछला। उन्हें ना सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाने लगा बल्कि मोदी विरोधी लहर के प्रतीक के रूप में भी देखा जाने लगा। कन्हैया को देशभर में अलग-अलग जगहों पर राजनैतिक विमर्शों में बुलाया जाने लगा। राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी कन्हैया का साथ दिया और कहा कि जो भी भाजपा के खिलाफ होगा, वह उसे समर्थन देंगे।

इसी साल मकर-सक्रांति के अवसर पर तेजस्वी कन्हैया के साथ आए थे और कहा था कि जो भी भाजपा के खिलाफ बोल रहा है, उस पर मुकदमा हो रहा है। हमारे लोगों के साथ ऐसा ही हो रहा है। यहां उन्होंने ‘हमारे लोगों’ में कन्हैया को भी शामिल कर लिया था।

कन्हैया के महागठबंधन में जाने के आसार-

फोटो सोर्स- यूट्यूब

इससे पहले लालू भी कन्हैया से मिले थे। कन्हैया ने उनके पैर छुए थे और आशीर्वाद भी लिया था। तब वामपंथ के एक बड़े धड़े ने कन्हैया का विरोध किया था क्योंकि लालू के चहेते और सीवान से पूर्व सांसद शहाबुद्दीन पर तत्कालीन जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या का आरोप है।

इस प्रकरण के बाद से ही लोग अटकलें लगा रहे थे कि कन्हैया अगर लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो महागठबंधन या तो उन्हें टिकट देगा या उन्हें समर्थन देते हुए उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगा।

बागी बेगूसराय का बागी युवा-

कन्हैया बेगूसराय के बीहट गाँव से आते हैं। लोकसभा जाने के लिए उन्होंने अपने गृह ज़िला बेगूसराय सीट को ही चुना। पिछले साल बेगूसराय से सांसद भोला सिंह की मौत हो गई थी, उसके बाद से यह सीट खाली है। कन्हैया पिछले साल से ही बेगूसराय में अपनी उम्मीदवारी का ताल ठोक रहे हैं। उन्होंने ज़िले के अंदर कई बार जनसम्पर्क अभियान और छोटी-मोती जनसभाएं भी की, जिनमें वह मोदी और नीतीश पर हमलावर रहें।

भूमिहार वोट बैंक की ‘पॉलटिक्स’-

बेगूसराय जनसंख्या के हिसाब से बिहार का एक बड़ा लोकसभा क्षेत्र है। यहां का जातिगत ढांचा कुछ इस प्रकार है कि ज़िले में साढ़े चार लाख से ज़्यादा भूमिहार, ढाई लाख के लगभग मुसलमान, दो लाख कुर्मी-कुशवाहा और डेढ़ लाख यादव वोटर हैं। पिछली बार यह सीट भाजपा के खाते में गई थी और यहां से भोला सिंह जीते थे। भोला सिंह भाजपा में भूमिहारों के बड़े नेता हुआ करते थे। राजद यहां से मुस्लिम उम्मीदवार उतारती रही है पर अब तक राजद का माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण यहां कोई कमाल नहीं दिखा पाया है। कारण है भूमिहारों का एकमुश्त वोट बैंक।

बिहार में भूमिहार जाति का झुकाव अभी राष्ट्रवादी लहर की ओर है। भाजपा ने कन्हैया कुमार के खिलाफ इस सीट से अपने ‘फायरब्रांड’ लीडर गिरिराज सिंह को मैदान में उतारा है। 2014 में गिरिराज सिंह नवादा से सांसद चुने गए थे। 2019 लोकसभा चुनाव में अपनी सीट बदल दिए जाने से गिरिराज पार्टी आलाकमान से नाराज़ भी बताए जा रहे हैं। कन्हैया को सीपीआई ने अपना उम्मीदवार बनाया है और इसका समर्थन सीपीआई (माले) और सीपीएम ने किया है। वामदलों के एक साथ आने से कन्हैया की ताकत बढ़ी है।

वामपंथ की राजनीति का ‘पोस्टर ब्वॉय’-

फोटो सोर्स- फेसबुक

इस बीच पिछले महीने कन्हैया को जेएनयू से पीएचडी भी अवॉर्ड हो गई। कन्हैया भूमिहार युवाओं के पढ़े-लिखे तबके का निर्विवाद प्रतिनिधि भी माने जाने लगे हैं। ऐसा कदम स्वागत योग्य इसलिए भी है क्योंकि बिहार में युवा और पढ़े-लिखे लोग राजनीति में कम ही आते हैं और ऐसे में अगर कन्हैया बेगूसराय सीट से अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं तो उनका समर्थन वहां की जनता को करना चाहिए।

कन्हैया को वामपंथ की राजनीति का ‘पोस्टर ब्वॉय’ माना जाने लगा है। उन्हें महागठबंधन से भी समर्थन की उम्मीद थी पर महागठबंधन ने यहां से राजद के तनवीर हसन को टिकट देने की बात कही है। तनवीर पिछला चुनाव लगभग सत्तर हज़ार मतों से हार गए थे।

महागठबंधन के साथ ना आने के मायने-

शुक्रवार को देर शाम जब तेजस्वी यादव समेत अन्य नेताओं ने महागठबंधन की सीटों की घोषणा की तब लोगों को उम्मीद थी कि कन्हैया कुमार के खिलाफ महागठबंधन अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगा पर हुआ इसके ठीक उलट। इसका एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि तेजस्वी कन्हैया के बढ़ते कद से परेशान हो गए हैं।

कन्हैया के लिए महागठबंधन का यह फैसला अच्छा और बुरा दोनों है।

कुल मिलाकर बेगूसराय में जहां कन्हैया और गिरिराज में सीधे-सीधे मुकाबला हो सकता था, वहां महागठबंधन ने आकर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। एक अहम सवाल यह भी है कि क्या कन्हैया का समर्थन ना करके महागठबंधन ने फिर से दलगत राजनीति को ज़्यादा महत्त्व दे दिया है?

महागठबंधन का बिखराव-

महागठबंधन एक ओर जहां पूर्व में ‘भाजपा भगाओ, देश बचाओ’ के नारे पर ज़ोर दे रहा था, वहीं अब इसकी सभी पार्टियां अलग-थलग नज़र आ रही हैं। सपा-बसपा और त्रिनमूल कॉंग्रेस पहले ही महागठबंधन से किनारा कर चुकी हैं। साल की शुरुआत में जहां तेजस्वी यादव को बिहार में महागठबंधन का नेता माना जा रहा था तो अब रालोसपा के साथ आ जाने के कारण उपेंद्र कुशवाहा भी अपनी दावेदारी पेश करने में जुट गए हैं।

कन्हैया से अलग होकर महागठबंधन ने मोदी के विरोध में एक बुलंद आवाज़ को खो दिया है। हालांकि कन्हैया ने कहा है कि बेगूसराय के अलावा सभी सीटों पर सीपीआई महागठबंधन का समर्थन करेगी।

इन सब कारणों से बेगूसराय की लोकसभा सीट अब एक हॉट सीट बन चुकी है। पूरे देश की नज़र इस सीट पर है। अब यह देखना वाकई रोचक होगा कि वोट कन्हैया को ज़्यादा पड़ते हैं या भाजपा और महागठबंधन के उम्मीदवार को? खैर, यह तो बेगूसराय की जनता तय करेगी। फिलहाल आप हमें बताएं कि आपको क्या लगता है?

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