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कॉंग्रेस एमएलए दिव्या द्वारा महिला सरपंच को अपमानित करने का मामला

राजस्थान के जोधपुर ज़िले में ओसियां नाम की एक विधानसभा सीट है। ओसियां जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इसी ओसियां सीट से विधायिका हैं, कॉंग्रेस की दिव्या मदेरणा। दिव्या, कॉंग्रेस के दिग्गज नेता महिपाल सिंह मदेरणा की बेटी हैं। भारतीय राजनीति के कई कुख्यात कांडों में से एक, भंवरी देवी कांड के मुख्य आरोपी यही महिपाल सिंह मदेरणा हैं। दिव्या 2018 में ही पहली बार चुनाव लड़ीं और जीती। दिव्या, फिलहाल दुर्व्यवहार की एक घटना की वजह से चर्चा में हैं।

क्या है मामला-

दिव्या मदेरणा। फोटो सोर्स- फेसबुक

पिछले रविवार को खेतसार नाम के एक गाँव में धन्यवाद सभा का आयोजन किया गया। दिव्या इस सभा में बतौर मुख्य अतिथि, शिरकत करने पहुंची थी। ग्रामीण ज़मीन पर बैठे थे और सामने एक टेबल और दो कुर्सियां रखी हुई थीं। उन दो कुर्सियों में से एक कुर्सी पर मुख्य अतिथि यानी विधायिका दिव्या मदेरणा को बैठना था और दूसरी कुर्सी पर उसी खेतसार गाँव की सरपंच, चंदू देवी को बैठना था। भारतीय राजनीति के महिला सशक्तिकरण का यह नज़ारा, वाकई खूबसूरत होता लेकिन इसके पहले कि महिला सशक्तिकरण का यह नज़ारा सबके सामने आए, दिव्या ने चंदू देवी को ज़मीन पर बैठने को बोल दिया।

दिव्या के व्यवहार से चंदू देवी आहत हैं-

इस घटना के बाद से चंदू देवी अवसाद में चली गई हैं और उन्होंने घर से निकलना भी छोड़ दिया है। राजस्थान सरपंच संघ ने दिव्या से माफी मांगने को कहा है। दिव्या ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,

उन्हें पता नहीं था कि चंदू उस गाँव की सरपंच हैं इसलिए उन्होंने, उन्हें नीचे बैठने को बोल दिया। चूंकि चंदू देवी ने घूंघट कर रखा था, तो वह उन्हें पहचान भी नहीं पाई।

तो वहीं चंदू देवी ने कहा,

वह दिव्या के व्यवहार से बेहद आहत हैं। गाँव की प्रथम नागरिक के रूप में हर कार्यक्रम में एक कुर्सी सरपंच के लिए आरक्षित रहती है।

पंचायत व्यवस्था का अपमान-

पंचायत भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है। महात्मा गांधी के सपनों पर चलकर देश ने पंचायती राज का लक्ष्य हासिल किया था। रोचक बात यह है कि जिस राजस्थान में दिव्या ने एक सरपंच का अपमान किया, उसी राजस्थान के नागौर ज़िले में सन् 1959 में देश में सबसे पहले पंचायती राज आया था।

यह वाकई एक खेदपूर्ण घटना है कि किसी महिला जनप्रतिनिधि ने किसी अन्य महिला जनप्रतिनिधि को अपमानित किया है। एक सरपंच की इज्ज़त से पूरे गाँव की इज्ज़त जुड़ी होती है, दिव्या ने ऐसा करके एक बार फिर भारतीय समाज में गैर-बराबरी के ऊपर नई बहस छेड़ दी है।

राजनैतिक परिवार से हैं दिव्या-

दिव्या के पिता महिपाल सिंह मदेरणा फिलहाल जेल में बंद हैं। दिव्या का परिवार, राजस्थान का रसूखदार राजनैतिक परिवार रहा है। दिव्या के दादा पारस राम मदेरणा कॉंग्रेस के पूर्व मंत्री और कद्दावर नेता हैं। इन सब बातों से एक बात तो तय है कि दिव्या को राजनीति में संघर्ष नहीं करना पड़ा। ओसियां उनके परिवार की परंपरागत सीट है, वह भी उसी सीट से चुनी गई हैं।

दलित वर्ग से आती हैं चंदू देवी-

अब ज़रा चंदू देवी के बारे में सोचिए। वह घरेलू महिला हैं, ज़्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हैं और दलित समाज से आती हैं। जब उन्होंने गाँव के सरपंच पद की ज़िम्मेदारी ली होगी, तो बेशक उन्हें यह ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री पद से भी ज़्यादा बड़ी लगी होगी। दिव्या को कम-से-कम चंदू देवी के संघर्षों और जज़्बे का ख्याल रखना चाहिए था। वह खुद भी एक महिला हैं, उन्हें समझना चाहिए कि चंदू देवी पर क्या बीती होगी।

चंदू देवी को दिव्या की तरह सबकुछ थाली में परोस कर नहीं मिला, दिव्या को कुछ नहीं तो इसी बात का ध्यान रखना चाहिए था। अगर चंदू देवी सरपंच नहीं भी होती, तो उन्हें कुर्सी पर बैठने का पूरा हक है। मेरे लिए भारतीय राजनीति का महिला चेहरा अब दिव्या मदेरणा नहीं, बल्कि चंदू देवी हैं। कॉंग्रेस नेत्री दिव्या मदेरणा ने जो किया, बेहद शर्मनाक है। दिव्या जी, चंदू देवी सरपंच ना भी होती तो कुर्सी पर ही बैठती।

बहरहाल, दिव्या ने तो माफी नहीं मांगी है पर आप हमें बताएं कि आपको क्या लगता है?

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