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“आपका अति राष्ट्रवाद देशप्रेम नहीं, देश को नुकसान पहुंचाने की प्रक्रिया है”

क्या राष्ट्रवाद के नाम पर अति उत्साहित होना सही है। आप राष्ट्रवादी हो सही हैं मगर अति राष्ट्रवादी होना सही नहीं है। राष्ट्रवाद तो कभी नहीं कहता है कि आप किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाओ, तोड़-फोड़ करो या फिर आगजनी की घटना को अंजाम दो।

अगर हम राष्ट्रवाद का चोला पहनकर इस तरह के कृत्य को अंजाम देते हैं, तो हम राष्ट्रवादी नहीं हैं। राष्ट्रवादी अपने ही राष्ट्र की संपत्ति को, चाहे वह निजी हो या सार्वजनिक नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। उसके अपने ही सिद्धांत यह सब करने की आज्ञा नहीं देते। अगर वह राष्ट्रवादी होने के साथ ज़िम्मेदार नागरिक है, तो वह दूसरों को भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से रोकेगा। अगर नहीं रोकता है तो भी वह राष्ट्रवादी नहीं हो सकता।

एक राष्ट्रवादी के तौर पर आपका कर्तव्य क्या है?

फोटो प्रतीकात्मक है। फोटो सोर्स- Getty

राष्ट्रवादी कभी नहीं चाहेगा कि उसके देश में मौजूद किसी भी व्यक्ति अथवा संपत्ति को नुकसान हो। एक सच्चा राष्ट्रवादी अपने देश की संपत्ति की सुरक्षा करेगा। वह अपने सामने किसी भी व्यक्ति को, किसी भी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाने देगा।

जम्मू के गुज्जर नगर में 14 फरवरी को पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद 15 फरवरी को जो कुछ भी हुआ, वह राष्ट्रवाद के नाम पर मेरी नज़र में एक धब्बा है। यह अति उत्साही राष्ट्रवादियों की घटिया कोशिश थी, जिसमें वाहनों को तोड़ा-फोड़ा गया उसे आग के हवाले किया गया। आखिर नुकसान किसका हुआ, अपने ही राष्ट्र का। उसके बाद लगे कर्फ्यू में सभी व्यापारिक संस्थान बंद रहे। व्यापार नहीं हो पाया। नुकसान किसका हुआ, राष्ट्र का। शिक्षण संस्थान बंद रहे, नुकसान किसका हुआ, राष्ट्र का ही नुकसान हुआ।

जिस भी तरह से आप सोच सकते हो, उससे राष्ट्र का ही नुकसान हुआ। तो क्या एक राष्ट्रवादी होने के नाते आपको यह शोभा देता है कि आप राष्ट्र को नुकसान पहुंचाओ। नहीं, एक सभ्य नागरिक और राष्ट्रवादी को यह किसी भी कीमत पर शोभा नहीं देता है। अगर राष्ट्रवादी हो तो राष्ट्रवाद को सही मायनों में समझो कि आखिर राष्ट्रवाद है क्या? और राष्ट्रवादी हो तो आपका कर्तव्य क्या है?

सड़कों पर आपका तोड़फोड़ राष्ट्रवादी होने का सबूत नहीं है

पुलवामा में जो कुछ हुआ वह पूरे देश को झकझोरने वाली घटना है। यह एक अपूरणीय क्षति है, जो 42 जवान भारत ने खोए हैं, उनकी भरपाई नहीं हो सकती है। एक जवान को तैयार करने से लेकर उसके जीवन पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। एक इंसान के तौर पर भी देखा जाए तो यह मानव जीवन अमूल्य है, इसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती है।

एक फौजी का शहीद होना भी देश के लिए भारी क्षति है और पुलवामा में तो 42 शहीद हुए हैं। यह देश के लिए भयावाह क्षति है। पुलवामा हादसे ने हमें करोड़ों का नुकसान पहुंचाया, ऊपर से आप लोग राष्ट्रवादी बनकर आ गए सड़कों पर, वाहनों को जला दिया, तोड़ दिया, फोड़ दिया। इससे आपने राष्ट्रवादी होने का सबूत नहीं दिया बल्कि आपने देश को और नुकसान पहुंचाने की कोशिश की।

दुश्मन ने आपके रक्षकों को शहीद करके देश को नुकसान पहुंचाया और आप बदला लेने की मांग लेकर सड़कों पर उतरे और तोड़-फोड़ करके खुद अपने देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। फर्क क्या रहा दुश्मनों और आपके बीच में? आप राष्ट्रवाद के नाम पर उपद्रवी हो।

दुश्मन हमेशा कुछ भी करता है तो वह सोच समझ कर करता है। सबसे पहले जिसे चोट पहुंचानी हो, उसकी नब्ज़ को टटोलता है। बर्दाश्त करने की क्षमता पहचानता है और उसके बाद ही रणनीति के तहत चोट देता है। वही पुलवामा में भी हुआ। हो सकता है कि जम्मू के सांइस कॉलेज के हॉस्टल में 12 फरवरी को हुई देशविरोधी नारेबाज़ी भी उसी रणनीति का हिस्सा हो। पहले वहां भड़काया और फिर पुलवामा में अटैक करके दोहरी चोट दे दी।

इस घटना को इसलिए जोड़ रहा हूं क्योंकि 14 फरवरी को पुलवामा हमले के बाद कुछ कश्मीर से ऑपरेट होने वाले सोशल मीडिया अकाउंट से कंमेंट्स आए थे कि यह जम्मू के सांइस काॅलेज की घटना का बदला है। दुश्मन ने अपनी रणनीति के तहत आपको पटखनी दी है। हमला भी आप पर हुआ और सड़कों पर भी आप उतरे। बाज़ार भी आपके बंद हुए और सब्जियां और अन्य ज़रूरी सामान के लिए भी आपको ही परेशान होना पड़ा। हर चीज़ तो आपको ही झेलनी पड़ी दुश्मन की रणनीति के तहत भी और आपकी अपनी कमज़ोरियों या यूं कहें कि आपकी अति राष्ट्रवादी सोच के कारण पैदा हुई समस्या के कारण भी।

मैं आपके राष्ट्रवादी होने का विरोध नहीं कर रहा हूं। मैं भी आपकी तरह ही राष्ट्रवादी हूं। मुझमें और आपमें फर्क है थोड़ा। आप अति राष्ट्रवादी हो और मैं राष्ट्रवादी होने के साथ ज़िम्मेदार नागरिक भी हूं। आप राष्ट्रवादी बनिए लेकिन अति राष्ट्रवादी नहीं। आपका अति राष्ट्रवादी वाला रवैया आपको ही नुकसान पहुंचाएगा।

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