आज आतंकवाद पूरे विश्व मे अपने पैर फैला रहा है। ऐसी स्थिति में यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर इसकी वजह क्या है? क्या इसकी बुराइयों की जड़ धर्म में छिपी है? क्या धर्म ही आतंकवाद के उद्भव का मूल कारण है?
दरअसल, धर्म हमारी पुरातन संस्कृति का एक अटूट हिस्सा रहा है। धर्म ने मानव समाज को एकजुट करने और सांस्कृतिक मान्यताओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह हमारे महत्वपूर्ण त्योहारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मूल धुरी रही है। धर्म ने जहां एक ओर त्योहारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को जोड़ने और एकजुट करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, वहीं दूसरी ओर मानवीय मूल्यों को बनाए रखने में भी इसने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
राम से मर्यादा तो कृष्ण से हमे प्रेम सीखने को मिला, गीता के सार ने मानव को कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं। सवाल यह है कि इसके बावजूद आतंकवाद अप्रत्यक्ष रूप से धर्म से कैसे जुड़ गया?
दरअसल, मेरा मानना है कि इसका मुख्य कारण है धर्म की गलत व्याख्या। राजा राममोहन के अनुसार धर्म त्रुटिहीन नहीं है। व्याख्याकारों ने धर्म की व्याख्या अपने हिसाब से की हैं, जिसकी वजह से धर्म में कई गलत प्रथाएं और मान्यताओं का समावेश हो गया है।
इन मान्यताओं ने अज्ञानता की वजह से पुरातन काल मे अपनी जड़ें जमा ली और आजतक इसका हिस्सा बनी हुई हैं। सती प्रथा, दहेज और तीन तलाक जैसी प्रथाओं का समावेश भी शायद इसी वजह से हुआ है।
आज इन त्रुटियों और बुराइयों को धर्म से निकाल फेंकने की ज़रूरत है। सवाल यह है कि यदि धर्म में स्त्री को जलाए जाने से मोक्ष मिलने का वर्णन हो तो क्या हम पढ़े लिखे लोग सिर्फ इसलिए इसे सही मानेंगे क्योंकि यह धर्म मे लिखा है?
आज ज़रूरत है धर्म की पुन:व्याख्या की जिसमें इंसानियत सर्वेपारि हो। धर्म के कट्टर व्याख्याकार धर्म की गलत व्याख्या कर युवाओं में ज़हर भर रहे हैं। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो वे अपने स्वार्थसिद्द करने के लिए युवाओं का ब्रेनवॉश कर रहे हैं।
ब्रेनवॉश से बचने की ज़रूरत
यकीन मानिए ब्रेनवॉश एक ऐसी युक्ति है, जो मनुष्य की अवधारणा को पूरी तरह बदलकर रख देती है। आजकल यही प्रक्रिया राजनीति का भी महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है।
मुझे लगता है कि असल में धर्म के कट्टर व्याख्याकारों द्वारा धर्म की यह गलत व्याखाएं ही युवाओं में कुंठित मानसिकता का समावेश कर रही हैं क्योंकि यदि धर्म ही पूर्णत: गलत होता तो आज दुनिया में सभी लोग आतंकवादी ही होते।
आज व्यक्ति को स्वयं जागरूक बनना होगा और यह समझना पड़ेगा कि क्या गलत है और क्या सही। आज इंसानियत को कहीं ज़्यादा तवज्ज़ो देने की ज़रूरत है। मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं का खत्म होना पूरे विश्व को शून्य बना देगा।