Site icon Youth Ki Awaaz

“भगत सिंह का राष्ट्रवाद और संघ का राष्ट्रवाद कभी एक क्यों नहीं हो सकता है?”

23 मार्च को शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का शहादत दिवस देशभर में मनाया जाता है। इस दिन हम ही नहीं उनके विचारों के धुर विरोधी दक्षिणपंथी, सांप्रदायिक राष्ट्रवादी भी उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए बाध्य हैं।

तब सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का राष्ट्रवाद और देशभक्ति तथा संघ और भाजपा का सांप्रदायिक राष्ट्रवाद व देशभक्ति एक है या एक दूसरे के विरोधी हैं?

भगत सिंह का राष्ट्रवाद और देशभक्ति किसके हित में है?

भगत सिंह का राष्ट्रवाद, देशभक्ति ब्रिटिश सरकार की गुलामी से देश को आज़ाद कराने व समाजवादी समाज की संरचना में निहित थी। उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में गठित हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी और हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में सोशलिस्ट शब्द जोड़कर नया नाम हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ रखा।

वहीं संघ की राष्ट्र की अवधारणा सांप्रदायिकता पर आधारित है। यह विभाजनकारी मनुवादी जाति व्यवस्था पर आधारित राष्ट्र है। इसके शीर्ष पर सामंती ताकतें विराजमान थीं, जो पूरी तरह ब्रिटिश साम्राज्य के आधार स्तम्भ थे।

जबकि भगत सिंह का राष्ट्रवाद और देशभक्ति 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और उसकी साझी विरासत में नौजवानों, किसानों के संघर्षों में निहित है। साम्राज्यवाद विरोधी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की चेतना और समाजवादी आधार पर समाज की संरचना, जिसमें मानव द्वारा मानव के शोषण का उन्मूलन किया जाये। यह था भगत सिंह का राष्ट्रवाद।

कैसा है भाजपा और संघ का राष्ट्रवाद

आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विश्वविद्यालयों को राष्ट्रवाद से विमुख होकर अराजकता का अड्डा बता कर बंद कर रहे हैं। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान क्रान्तिकारियों के खिलाफ गवाही देने वाले, माफीनामे लिखने वाले और आज़ादी के तुरन्त बाद आज़ादी आन्दोलन के प्रमुख नेता महात्मा गांधी की हत्या करने वालों का राष्ट्रवाद असल में देशी-विदेशी पूंजीपतियों, उद्योगपतियों और साम्राज्यवाद का सेवक है। इनका राष्ट्रवाद कागज़ पर बने देश के नक्शे से शुरू होकर अम्बानी, अडानी, माल्या की ड्योढ़ी पर जाकर खत्म हो जाता है।

इनके राष्ट्रवाद में ना छात्र है, ना नौजवान, ना ही मज़दूर-किसान। आज जब विश्वविद्यालयों से क्रान्तिकारी जनपक्षधर, समाजवादी व्यवस्था की मांग करने वाला राष्ट्रवाद भगत सिंह के विचारों से लैस है, वहीं देशी विदेशी पूंजीपतियों की सांठगांठ से चलने वाला तंत्र जब राष्ट्रवाद के नाम पर सारे भ्रष्टाचार व घोटालों को छिपाने की कोशिश कर रहा हो, ऐसे वक्त में भगत सिंह के विचारों को समझने की आवश्यकता और ज़रूरी हो जाती है।

देश की वर्तमान स्थिति के बीच भगत सिंह के विचारों की ज़रूरत

इस समय हमारा देश कॉरपोरेट परस्त सांप्रदायिक भाजपा सरकार की गलत नीतियों से जूझ रहा है, इसमें करोड़ों लोग बेरोज़गारी और भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। भारत की दो तिहाई जनसंख्या मज़दूरों, किसानों छोटे व्यापारियों की है, उनको पूंजीपतियों और सरकार की मिली भगत की लूट ने पस्त कर दिया है।

गरीबों के जनधन खाते खोलवाकर उसमें 15 लाख भेजने और काला धन वापस लाने के नाम पर नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। दो करोड़ प्रतिवर्ष का वादा करके आई मोदी सरकार रोज़गार के मुद्दे पर चुप होकर बुलेट ट्रेन की लफाज़ी करती रही और बड़े-बड़े उद्योगपति देश की बैंकों से हज़ारों करोड़ का कर्ज़ लेकर फरार होते जा रहे हैं।

बैंकों व एलआईसी में जनता की गाढ़ी कमाई का जमा धन घोटाले और कर्ज़ में लूटा जा रहा है और आम जनता को सांप्रदायिकता की घुट्टी पिलाकर देश को सामप्रदायिक दंगों में बेरोज़गारी और तंगहाली से पीड़ित युवाओं को झोंकने का षडयन्त्र लगातार जारी है। चौकीदार चोर के मुकाबले मैं भी चौकीदार का नारा लगाया जा रहा है।

ऐसे में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की विचारधारा और उनका समाजवादी दर्शन हम युवाओं का पथ प्रदर्शन कर सकता है। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने कहा था

जब गतिरोध की स्थित लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है, तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वो हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रान्तिकारी चेतना पैदा करने की ज़रूरत होती है, अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता है। लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियां जनता को गलत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती हैं, इससे इंसान की प्रगति रुक जाती है और उसमें गतिरोध आ जाता है। इस परिस्थिति को बदलने के लिए यह ज़रूरी है कि क्रान्ति की चेतना ताज़ा की जाए, ताकि इंसानियत की रूह में हरकत पैदा हो।

आज के दौर में जब गतिरोध की स्थित ने लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ रखा है, समाज की सभी नियंत्रणकारी चोटियों पर रूढ़िवादी प्रतिक्रियवादी ताकते मज़बूती से जमी हुई हैं। ऐसे कठिन समय में हम इंसानियत की रूह में एक बार फिर से हरकत पैदा करने के लिए सभी बहादुर, स्वाभिमानी, इंसाफ पसंद और प्रगतिशील नौजवानों का आहवान करते हैं, जो सच्चे अर्थों में युवा हैं। जो आंगन की मुर्गी की तरह फुदकने की बजाय तूफानों में गर्वीले गरुड़ की तरह उड़ान भरने का साहस रखते हैं।

नौजवानों, किसानों को इस वक्त भगत सिंह के समाजवादी विचारों और उनके सपनों को पूरा करने के लिये आगे आना चाहिए।

Exit mobile version