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“क्या चुनाव की वजह से 200 प्वॉइंट रोस्टर पर नर्म है सरकार का रवैया?”

13 प्वॉइंट रोस्ट के खिलाफ प्रदर्शन

13 प्वॉइंट रोस्ट के खिलाफ प्रदर्शन

किसी भी देश के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास का आईना उसके विश्वविद्यालय होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी देश की ज़मीनी सच्चाई की असल दास्तां उसके विश्वविद्यालय बयां करते हैं।

एक देश अपने नौजवानों को विश्वविद्यालयों में जितनी सहजता से उच्च शिक्षा प्रदान करता है, उससे यह पता चलता है कि देश की सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की बुनियाद कितनी मज़बूत है।

अफसोस हमारे देश के बारे में सैंपल सर्वे कुछ अलग ही तस्वीर पेश करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक आज भी भारतीय विश्वविद्यालयों में 95% शैक्षणिक पदों पर बस मुट्ठी भर लोगों का कब्ज़ा हैं

वहीं, अगर बात विश्वविद्यालय के सर्वोच्च पदों की हो, जैसे- कुलपति, डीन, प्रिंसिपल, प्रोफेसर, फिर यह % बढ़कर 99% पर पहुंच जाता है। इसे भयावह हालत नहीं तो और क्या कहा जाए।

भागीरथी प्रयास ने दिलाया था हक

संविधान सभा में काफी बहस के बाद जब 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ तो उसमें स्पष्ट लिखा गया कि भारतीय संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार और उसे आगे बढ़ने का उचित अवसर देता है मगर दु:ख की बात है कि संविधान में प्रावधान होने के बावजूद 1997 में अनुसूचित जाति और जनजाति की उच्च शिक्षण संस्थानों में नियुक्ति सुनिश्चित की गई।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

मंडल आयोग की सिफारिश और सड़क से संसद तक संघर्ष एवं न्यायिक बाधाओं को झेलने के बाद 2007 में अन्य पिछड़े वर्ग को हिस्सेदारी दिया जा सका। उस पर भी नियुक्ति करने वाली एजेंसियां कुंडली मार कर बैठी रही और हर उस हथकंडे को अपनाया जिससे इन तबके के लोगों को आगे बढ़ने से रोका जा सके।

13 प्वाइंट रोस्टर बहुसंख्यकों का हक मार रही है

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा लेक्चरर और प्रोफेसर नियुक्ति के लिए 200 प्वाइंट रोस्टर की जगह बनाए गए नए 13 प्वाइंट रोस्टर तैयार करने के पीछे यूजीसी का तर्क समझ से परे है।

किन परिस्थितियों में केंद्र सरकार ने इसे पहले से लागू किया? फिर जब विरोध शुरू हुआ तो उसे न्यायालयों में भी चुनौती दी, जहां उसकी कमज़ोर दलीलों के कारण न्यायालय देश के बहुसंख्यक लोगों के खिलाफ गई।

इन सबके बीच 7 मार्च को पीएम आवास पर हुई कैबिनेट बैठक में 13 प्वॉइंट रोस्टर को पलटकर 200 प्वॉइंट रोस्टर नियम लागू करने के लिए अध्यादेश को मंजूरी मिल गई है।

सरकार अपनी अस्पष्ट मंशा के कारण अपनी ही संस्थाओं और लोगों द्वारा बुने गए चक्रव्यूह में फंसती नज़र आ रही है। जब सरकार खुद ही साढे 49% आरक्षण का अनुसरण करती है फिर कैसे 13 प्वाइंट रोस्टर लागू करने को तैयार हो गई?

क्या इस मामले में केंद्र सरकार को उचित समय पर उचित सलाह नहीं मिली? या सरकार कुछ प्रभावी लोगों के दबाव में है जिसके कारण बहुसंख्यक आबादी के अधिकारों को नज़रअंदाज़ करने से भी गुरेज़ नहीं कर पा रही है?

क्या है 13 प्वॉइंट रोस्टर?

अभी तक यूनिवर्सिटी या कॉलेज की नौकरियों के लिए यूनिवर्सिटी या कॉलेज को ही एक इकाई माना जाता था। साथ ही इन भर्तियों के लिए 200 प्वॉइंट रोस्टर प्रक्रिया की व्यवस्था थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि रिज़र्वेशन अब विभाग के आधार पर लागू किया जाए।

इस रोस्टर के तहत जो नियुक्तियां आएंगी उसके तहत शुरुआती तीन पद अनारक्षित, चौथा ओबीसी को, फिर 5वां और 6ठा अनारक्षित, 7वां पद अनुसूचित जनजाति को, 8वां फिर से ओबीसी को, 9वां, 10वां, 11वां अनारक्षित, 12वां ओबीसी को, 13वां फिर से अनारक्षित और 14वां पद अनुसूचित जनजाति को दिया जाएगा।

जानकारों का कहना है कि इस तरह से रिज़र्वेशन लागू किया गया तो ज़्यादा से ज़्यादा 30% तक ही रिज़र्वेशन का फायदा मिल पाएगा जबकि केंद्र सरकार की नौकरियों में एससी-एसटी-ओबीसी के लिए 49.5% रिज़र्वेशन का प्रावधान है।

विरोध के कारण

इस नियुक्ति प्रणाली के तहत आरक्षण लागू होने के बाद कभी भी 49.5% आरक्षण लागू नहीं हो पाएगा। सबसे पहली दिक्कत तो यह है कि विश्वविद्यालय की जगह विभाग को इकाई माना गया है, जबकि ऐसा बहुत कम होता है कि किसी भी विभाग में एक साथ 13 या उससे ज़्यादा नियुक्ति आए।

ऐसे में अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी को कम-से-कम चार, एससी वर्ग को सात और एसटी वर्ग को तो 14 नियुक्तियां निकलने तक इंतज़ार करना होगा। जबकि इसी दौरान 10 अनारक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग के लोगों की नौकरी सुनिश्चित हो चुकी होगी। इसके अलावा उनके लिए ऊपर से 10% आरक्षण अलग मिलेगा।

क्या था 200 प्वॉइंट रोस्टर?

इस निर्णय से पहले केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षक पदों पर नियुक्तियां पूरी यूनिवर्सिटी या कॉलेज को इकाई मानकर होती थी। इसके लिए संस्थान 200 प्वॉइंट का रोस्टर प्रक्रिया अपनाते थे। इसमें एक से 200 तक पदों पर रिज़र्वेशन कैसे और किन पदों पर होगा, इसका क्रमवार ब्यौरा होता था।

इस सिस्टम में पूरे संस्थान को इकाई मानकर रिज़र्वेशन लागू किया जाता था, जिसमें 49.5 फ़ीसदी पद रिज़र्व और 59.5% पद अनरिज़र्व होते थे। हालांकि अब इसमें 10 फीसदी आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग का आरक्षण भी शामिल होगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: सोशलल मीडिया

यूनिवर्सिटी के सभी विभागों के पदों को A से Z तक एक साथ 200 तक जोड़ लिया जाता था। इसके बाद क्रम के अनुसार पहले 4 पद सामान्य, फिर ओबीसी, फिर एससी/एसटी इत्यादि के लिए पदों की व्यवस्था थी।

इस व्यवस्था में सामान्य पदों की जगह आरक्षित पदों से भी नियुक्तियों की शुरुआत हो सकती है और अगर किसी श्रेणी में नियुक्ति नहीं होती है तो उस पद को बाद में, बैकलॉग के आधार पर भरा जा सकता था।

इस हिसाब से 200 प्वॉइंट रोस्टर फॉर्मूले में क्रमवार सभी तबकों के लिए पद 200 नंबर तक तय हो जाते हैं लेकिन 13 प्वाइंट रोस्टर में ऐसा नहीं है।

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