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“कई हुनरों का गला घोंट देती है, समाज की अमीरी-गरीबी की दीवार”

सड़कों, फुटपाथों पर हमें प्रतिदिन चलते समय अनेक फटेहाल बच्चे हाथों में कटोरा लिए दिखायी पड़ते हैं। इन्हें देखने के बाद दिलोदिमाग में एक बात आती है कि आखिर इन मासूम बच्चे-बच्चियों का दोष क्या है? जिन्हें दो वक्त की रोटी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है, लोगों के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है।

महलों में सम्पन्न परिवारों में जन्म लेने वाली संतानों में कौन सा विशेष गुण निहित है, जो उन्हें संसार की सारी सुख सुविधाएं मुहैया हैं। झुग्गियों झोपड़ियों की संकरी गलियों में घूमिए और वहां का दृश्य देखिये। इन लाचार बेबस लोगों का क्या कसूर है, जो छोटे-छोटे, टूटे-फूटे मकानों में, संकरी गंदी गलियों में रहने पर विवश हैं। उठे तो सिर छतों से टकराती है, सोना चाहे तो भोजन करने की जगह नहीं बचती। स्थिति यह है कि यदि बारिश ने थोड़ी सी अपनी रफ्तार बढ़ा दी, तो पूरी रात पैरों को मोड़कर किसी कोने में बैठकर रात गुज़ारनी पड़ती है।

सबसे बड़ा ज़ुल्म तो यह है कि यदि इनके यहां संतान रूपी धरोहर का आगमन हो जाये, तो यह स्वयं को कोसने पर विवश हो जाते हैं। इनके पास इतनी भी शक्ति नहीं, विकल्प नहीं कि वह अपनी संतान को उसके सिर पर साया उपलब्ध करा सकें।

तो दूसरी तरफ वे लोग हैं, जिनके पास छते इतनी विशाल हैं कि उन्हें देखते हुए गर्दन अकड़ जाये। घर का क्या कहना घर तो ऐसा कि एक बाथरूम ही कई-कई कमरों का स्थान अपने आप में समा ले। बेडरूम वैसा ही जिसे वास्तव में आप स्वप्न कक्ष कहते हैं।

इन सुख सुविधाओं को देखकर आप महसूस कर सकते हैं कि बहुत से लोग संसारिक स्वर्ग में निवास करते हैं। उनकी उंगलियों के इशारों पर पत्ते हिलते हैं बल्कि दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि हर ईंट उनके हल्के से इशारे पर हिलती डुलती है।

आपने गरीबी की स्थिति में शिक्षा एवं कौशल से परिपूर्ण तमाम दीपकों को बुझते हुए देखा होगा। बहुत से प्रतिभाशाली सक्षम, जो विश्व की नियति परिवर्तित कर सकते थे, अपनी बुद्धिमता एवं पर्याप्त कौशल के बल पर विश्व को अलग-अलग क्षेत्रों में बहुत सी बहुमूल्य उपयोगी वस्तुएं उपलब्ध करा सकते थे, आपने ऐसे बहुत सारे होनहारों को किसी होटल में रेस्तरां में फर्श पर पोंछा लगाते और अपने आंसुओं को रोकते हुए देखा होगा। वहीं दूसरी तरफ अमीर घरानों के सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति अपनी तमाम कमियों खामियों के बाद भी उच्च पद पर विराजमान होते हैं। 

प्रतिदिन हम ऐसे अनेक दृश्य, ऐसी तस्वीरें देखते हैं। अनेक तरह के विचार जन्म लेते हैं। हमारा मस्तिष्क विचारों की अथाह गहराइयों में गोते लगाना आरंभ कर देता है। पीड़ा होती है, मन व्याकुल हो उठता है। फिर हम अपने आपको अपने ह्रदय व मस्तिष्क को यह सोचकर बहलाते हैं कि यह संसार, संसार निर्माता का है। मालिक को अपनी संपत्ति को अपने हिसाब से वितरित करने का पूर्ण अधिकार होता है। उसने संसार का निर्माण किया है वह सबका स्वामी है। वह भली भांति जानता है कि किसके साथ कैसा व्यवहार उचित रहेगा तथा कौन किस चीज़ का पात्र है। वह हमसे पूछेगा, हम उससे प्रश्न पूछने की औकात नहीं रखते।

संसार निर्माता न्याय का वाहक है। उसके निकट हर एक प्राणी का महत्व है। यदि कोई अन्याय करेगा, अपनी शक्ति धन बल का दुरुपयोग किसी को हानि पहुंचाने के लिए करेगा तो निश्चित उस व्यक्ति की उसके वहां पकड़ होगी। प्रलय के बाद उसके दरबार में सब एक ही तराजू में तौले जायेंगे और उसी दिन सही गलत, पात्र अपात्र, निष्ठावान गैरनिष्ठावान, राजा रंक, छोटे-बड़े, काले-गोरे, खूबसूरत बदसूरत सबके सब एक पंक्ति में खड़े कर दिये जायेंगे और प्रत्येक मनुष्य को पूरा-पूरा उसके कर्मों का फल प्रदान किया जायेगा। बस यही सब सोचकर हम अपने को तसल्ली दे लेते हैं।

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