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“होलिका दहन महिलाओं, संविधान और कानून के खिलाफ है”

होलिका दहन

होलिका दहन

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता स्थापित करता है। भारतीय संविधान में जो अधिकार पुरुषों को दिए गए हैं, वे तमाम अधिकार महिलाओं के लिए भी हैं।

खैर, इस बात में कोई शक नहीं है कि आज भी भारतीय समाज संवैधानिक मूल्यों और नियमों से कम, समाज द्वारा स्थापित किए गए कुछ बातों के आधार पर चलता है।

आज जब कोई महिला इसी समाज द्वारा निर्धारित परिधि को पार करती है, तब उसे ना सिर्फ ताने मिलते हैं बल्कि कई दफा शोषण भी किया जाता है।

होलिका दहन शर्मनाक

आमतौर पर भारत के किसी ना किसी हिस्से में प्रत्येक दिन महिला को सजीव रूप से समाज या परिवार द्वारा जला देने की घटना आम है।इतना होने के बाद आज भी प्रतीकात्मक रूप से स्त्री को जलाया जाता है। समाज द्वारा स्त्रियों के शोषण करने हेतु कई नियम बनाए गए हैं।

प्रत्येक वर्ष भारतीय समाज (खासकर उत्तर भारत) एक स्त्री को प्रतीकात्मक रूप से जलाकर यह संदेश देता है कि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें जल्या भी जा सकता है और इसका मनोवैज्ञानिक असर यह होता है कि अकसर स्त्रियों को मार देने की घटनाओं में जलाकर मार देने की घटनाएं अधिक होती हैं।

आंकड़े परेशान करने वाले

वर्ष 2016 में जारी ‘नैश्नल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो’ के मुताबिक महिलाओं पर हिंसा के देशभर में 3,38,954 मामले दर्ज़ किए गए, जो 2015 के  3,29,243 मामले के मुकाबले 2.9% ज़्यादा थे।

महिला अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश का उच्च स्थान था, जहां 49,262 मामले दर्ज़ किए गए। पश्चिम बंगाल 32,513 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। यहां पति और रिश्तेदारों द्वारा शोषण के 1,10,378 मामले दर्ज़ किए गए, जिनमें पश्चिम बंगाल 19,302 मामलों के साथ प्रथम स्थान पर रहा।

पति और रिश्तेदारों द्वारा शोषण के ही संदर्भ में 13,811 मामलों के साथ राजस्थान दूसरे और 11,156 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर था।

2016 में महिलाओं पर यौन शोषण के कुल 84,746 मामले दर्ज़ किए गए। इनमें महाराष्ट्र में 11,396, उत्तर प्रदेश में 11,335 और मध्य प्रदेश में 8717 अंकित थे।

अपहरण के मामले में उत्तर प्रदेश अव्वल

महिलाओं के अपहरण के मामलें में उत्तर प्रदेश सबसे शीर्ष पर रहा। वर्ष 2016 में कुल 64,519 मामले दर्ज हुए, जिनमें उत्तर प्रदेश में 12,994 मामले, महाराष्ट्र में 6170 और बिहार में 5496 मामले अंकित किए गए। बालात्कार के सबसे ज़्यादा मामले देश के हृदय ‘मध्यप्रदेश’ में दर्ज़ किए गए।

मध्यप्रदेश में सबसे ज़्यादा बलात्कार के मामले

सम्पूर्ण देश में बालात्कार के कुल 38,947 मामलों में अकेले मध्यप्रदेश में 3882 रेप के केस अंकित किए गए। जबकि उत्तर प्रदेश में 4816 और महाराष्ट्र में 4189 पाए गए।

2015-16 के दौरान किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक 15-49 बर्ष के बीच लगभग 30% विवाहित भारतीय महिलाओं ने कम-से-कम एक बार वैवाहिक हिंसा का सामना किया।

बलात्कार की घटनाओं को राजनीतिक शह

2018 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव और जम्मू के कठुआ में बलात्कार के जघन्य मामले देखे गए। इन मामलों में पूरी दुनिया ने यह देखा कि किस प्रकार सत्ताधारी दल से जुडे़े लोग बलात्कारियों के समर्थन में सड़क पर उतर आए, यहां तक कि कठुआ के बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा मार्च निकाला गया, जो कि शर्मनाक है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक छात्रा जब विद्यालय से लौट रही थीं, तब उसे ज़िदा जला दिया गया। हरियाणा के जींद में 15 साल की लड़की के साथ दरिंदगी की गई। वहीं, पानीपत में 11 साल की बच्ची से रेप के बाद हत्या और शव के साथ 4 घंटे तक बलात्कार किया गया।

पिंजौर के पास 10 साल की लड़की से 50 साल के उसके पड़ोसी ने रेप किया। फरीदाबाद में ऑफिस से लौट रही लड़की को अगवा कर कार में 2 घंटे तक गैंगरेप किया गया।

आग लगाकर जलाने के मामले

एनसीआरबी के आंकडों के मुताबिक वर्ष 2015-16 में आग लगाकर जलाने की कुल 17,700 घटनाएं हुई, जिनमें 10925 (62%) महिलाएं थी। जनगणना 2011 के अनुसार देश में स्त्री-पुरूष अनुपात 948 है। अर्थात प्रति 1000 पुरुषों पर 943 लडकियां हैं। सबसे खराब अनुपात हरियाणा राज्य का था, जहां प्रति 1000 लड़कों पर केवल 879 लडकियां हैं।

‘नैश्नल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो’ के आंकड़े आंख खोलने के लिए काफी हैं। ऐसे में परम्परा के नाम पर प्रत्येक वर्ष महिला का प्रतीकात्मक दहन कितना जायज़ है?

भारतीय समाज को इस परम्परा पर अब विमर्श करना चाहिए कि वह 21वीं सदी में भी इस मानवता विरोधी कृत्य को जारी रखेगा या बंद कर देगा? इस प्रकार कहा जा सकता है कि एक महिला का प्रतीकात्मक दहन संविधान और कानून के खिलाफ है।

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