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“आर्थिक गैरबराबरी को दूर करने का बेहतर विकल्प है, दो अलग आर्थिक वर्गों के बीच शादी”

मेरे एक मित्र हैं, जो शादी के योग्य हो चुके हैं और अब अपने लिए जीवन-साथी तलाश रहे हैं। निश्चित रूप से इस तलाश में उनके परिवार की मुख्य भूमिका है और मेरे अजीज़ होने के नाते उन्होंने अक्सर मुझे भी इस कार्य में अपने साथ रखा है। इसके अलावा मेरी एक अन्य खास मित्र हैं, ताल्लुकात पारिवारिक है और उनके लिए भी उचित वर की तलाश जारी है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि मेरे करीब होने के बावजूद भी मैंने इन दोनों में से किसी से भी यह नहीं पूछा कि आपने प्रेम क्यों नहीं किया या फिर प्रेम-विवाह क्यों नहीं कर रहे हैं। यह तथ्य यहां गौण है कि दोनों के पास लव-मैरिज का विकल्प था। मैं यहां केवल अरेंज-मैरिज की बात करूंगा।

मित्र (पुरुष) मेरे कॉरपोरेट दुनिया से ताल्लुक रखते हैं और हाल ही में कार्यरत हुए हैं। एक तरफ मित्र, जहां बेहद स्थिर हैं और उनका परिवार अच्छा है तो दूसरी तरफ पारिवारिक संपत्ति (ज़मीन-प्लॉट वगैरह) लगभग शून्य ही है। वहीं, मेरी दूसरी मित्र (लड़की) चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित हैं और अपनी निजी प्रैक्टिस कर रही हैं। उनको कार्य करते हुए लंबा समय हो चुका है, तो वहीं पारिवारिक संपत्ति में भी कोई कमी नहीं है। अब इनको भी विवाह करना है। कुल मिलाकर इन दोनों विभिन्न पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के लिए वर-वधू की तलाश अब जारी है।

मेरे समक्ष जब इनके विवाह की बात आई तो मुझे लगा दोनों में से किसी की शादी में कोई दिक्कत नहीं आने वाली है, क्योंकि दोनों ही अपनी-अपनी जगह ठीक-ठाक हैं। शुरू में मित्र (पुरुष) के लिए काफी रिश्ते आए लेकिन कहीं बात ना बनी।

मुझे इसके पीछे के मूल कारणों को जानने की उत्सुकता हुई, तो पता चला कि उनको अधिकतर लड़कियां ऐसी मिली थीं, जिनका करियर काफी स्थिरता और परिपक्वता प्राप्त कर चुका था। ऐसी लड़कियां और उनके परिजन किसी ऐसे लड़के पर दांव लगाने के लिए राज़ी नहीं थे, जिसका करियर अभी एक आकार ले ही रहा है। ऐसे में मैंने मित्र को सलाह दी कि वह क्यों ना ऐसी लड़कियां भी देखें जिनका करियर प्रोफाइल उनके प्रोफाइल से मैच खाता हो या फिर कोई घरेलू लड़की भी तो देखी जा सकती है।

मित्र ने जवाब दिया कि उनकी आर्थिक शक्ति विशुद्ध घरेलू लड़की से विवाह की इजाज़त नहीं दे रही है। अब उनकी तलाश उनके ही समकक्ष किसी लड़की के लिए तेज़ हो गई। इस दौरान उनको अनेक ऐसी लड़कियां मिलीं जो पारिवारिक स्थिति के चलते विशुद्ध घरेलू जीवन ज़रूर बिता रही थी लेकिन काफी संभावनाशील भी थी। उनको बस एक ऐसे प्रगतिशील जीवनसाथी की ज़रूरत थी, जो उनके सामने आए अवसरों को लपकने में उनकी मदद करे लेकिन मेरे मित्र यह दांव खेलने को भी राज़ी नहीं थे। बावजूद इसके कि वह खुद बेहद साधारण पृष्ठभूमि से संबद्ध थे, उनको उसी पृष्ठभूमि की कन्या को पत्नी बनाने से परहेज़ था।

कमोबश कुछ ऐसी ही स्थिति मेरी दूसरी मित्र (लड़की) की थी। उनके पास रिश्तों के तो ढेर थे लेकिन लड़कों की प्रोफाइल मैचिंग वाली नहीं थी। कई लड़कों का करियर तो काफी आगे जा चुका था लेकिन फिर भी वे सामाजिक-आर्थिक हैसियत में मेरी मित्र की पारिवारिक स्थिति के सामने कुछ नहीं थे।

इनमें कई लड़के तो ऐसे थे, जो काफी स्थिर और संभावनाशील थे और निश्चित तौर पर वे आगे कुछ अच्छा ज़रूर करते लेकिन मेरी मित्र के परिजनों को तुरंत ही खुद जैसी स्थिति में होने वाला वर चाहिए था। जब यह बात मुझ जैसे करीबी दोस्तों के संज्ञान में आई तो मुझे हैरानी कतई नहीं हुई लेकिन फिर भी एक दो रात मुझे नींद नहीं आई। लगा कि कुछ छूट रहा है, कुछ है जो बेतहाशा भाग रहा है। उसे पकड़ना ज़रूरी है, उसको अंधाधुंध दौड़ से बचाना ज़रूरी है।

अगले कुछ रोज़ मैं नियमित दिनचर्या के तहत उठता और ऑफिस जाता। रास्ते में जाते हुए मैंने नाहक ही गौर किया कि किस तरह भीड़ में एक स्पष्ट विभाजन बना हुआ है। हम एक लक्ष्य को लेकर रोज़ घर से निकलते हैं कि हमें किस तरह से और ज़्यादा पैसे कमाने हैं। एक दूसरे को देखकर हमारी यह तृष्णा और ज़्यादा बढ़ रही है।

एक बहुत अच्छी करियर प्रोफाइल का लड़का और उसका परिवार साधारण लड़की से शादी नहीं करना चाहते। कई बार कुछ अच्छी मेहनती लड़कियां पारिवारिक-आर्थिक कारणों से पीछे रह जाती हैं। उनको हाईफाई करियर प्रोफाइल का लड़का नहीं मिलता। यही हाल उन लड़कों का भी है, जो मेहनती हैं लेकिन किसी कारणवश पीछे छूट गए हैं लेकिन उनको भी शादी की शुरुआत घरेलू लड़की से करनी पड़ती है। ऐसा कम ही होता है कि उनको कोई उच्च आर्थिक स्तर की लड़की वर के रूप में मौका दे। यहां कुछ अपवाद होंगे, जिनसे कुछ फर्क नहीं पड़ता। सामान्यतः यही स्थितियां हैं।

इससे समाज का पहले से सम्पन्न वर्ग वैवाहिक संबंधों से अपनी क्रय शक्ति में और इज़ाफा कर लेता है और पहले से संघर्षरत वर्ग के हिस्से में और भी ज़्यादा संघर्ष जुड़ जाते हैं। इससे क्रय संबंधी विषमताएं साफ देखी जा सकती हैं। सामाजिक-आर्थिक विभाजन का रास्ता तैयार होता है।

बदलते भारतीय समाज के परिपेक्ष्य में एक अटपटा सा ही सही लेकिन यह विचार मन में जगह बनाता है कि अगर दो विभिन्न आर्थिक वर्गों के बीच भी वैवाहिक संबंध सामान्य स्तर पर जुड़ते तो कितना बेहतर होता। परिणामस्वरूप सामाजिक विभाजन की बजाए हम सामाजिक संतुलन की ओर आज बढ़ रहे होते।

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