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भारत में दलित महिलाओं के विकास के लिए हमें क्या करना चाहिए?

हम न्यू इंडिया की बात कर रहे हैं, जहां सिर्फ ज़रूरी मुद्दों तक बात रह जानी थी लेकिन अब भी यहां इतनी समस्याएं हैं। हम महिलाओं के आरक्षण की बात कर रहे हैं और यहां भी महिलाओं को दो गुटों में बांट दिया गया है, सवर्ण महिलाएं और दलित महिलाएं। वैसे हम सब महिलाओं की उतनी अच्छी हालत नहीं है परन्तु ‘संयुक्त राष्ट्र’ की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि सवर्ण महिलाओं की तुलना में दलित महिलाएं औसतन 14.6 साल कम जीती हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक दलित महिलाओं की मौत औसतन 39.5 साल की उम्र में ही हो जाती है,जबकि सवर्ण महिलाओं की मौत 54.1 साल में होती है। ये आंकड़े आपको अजीब नहीं लगते? मतलब ऐसा भी होता है, पर क्यों? जहां तक देखा जाता है हमारे देश में इतनी गरीबी है कि दलित महिलाएं ठीक से अपना पालन पोषण नहीं कर पाती जिसके कारण कुपोषण होता है। साफ-सफाई, पानी की कमी और स्वास्थ्य की समस्या भी तो है देश में। कम आय की वजह से अपनी सेहत का खयाल नहीं रख सकते। लोग खाएंगे या अपनी सेहत पर ध्यान देंगे? और सबसे ज़रूरी शिक्षा की कमी। ये बहुत ही गंभीर समस्याएं हैं जिनपर अब ध्यान नहीं दिया गया तो वो दिन दूर नहीं जब महिलाओं की मौत की आयु और भी कम होती जाएगी।

हमारे देश में जातिवाद का विषय तो बरसों पुराना है जो शायद ही कभी खत्म हो सके। आज भी वही पुरानी नीति अपनाई जाती है। दलित समुदाय को जैसे अभिशाप मिला हो कि जो भी अधिकार हैं इनसे आपको वंचित रखना ज़रूरी है। पर क्यों हम खुद महिलाएं ऐसा करती हैं? हमारे घर पर अब काम करने वाली बहनों से हम कैसा सुलूक करते हैं वो सोचिये ज़रा!

हमारे देश में अक्सर ऐसा देखा गया है कि घरेलू कामकाज करने वाली महिलाओं के साथ आज भी जातिगत भेदभाव किया जाता है। हम उन्हें उनकी जाती के नाम पर अपने घरेलू वस्तुओं को हाथ नहीं लगाने देते पर हमें सफाई का काम उनसे ही कराना होता है। आज भी दलितों के बच्चों को पाठशाला जाने से रोके जाने की खबरें आती हैं।

हमारे देश में 70 प्रतिशत दलित हैं पर आज भी ऐसा है कि कुछ पुलिस स्टेशन पर दलितों के साथ गलत व्यवहार किया जाता है, मंदिरों में पूजा करना मना है, दलितों के घर में आज भी चिकित्सा से जुड़े लोग जाना पसंद नहीं करते। दलितों पर अपराध की घटना हमारे देश में बहुत अधिक  है पर उनपर कार्रवाई नहीं के बराबर होती हैं। दलित महिला के बलात्कार की घटना सबसे ज़्यादा होती है पर ये सब मुद्दे कभी सामने नहीं आते, क्यों ?

हम दलितों के अधिकारों की बात भी नहीं करते। उन्हें उनके ही अधिकार से दूर रखते हैं जिनसे हमारे समाज का वर्चस्व कायम रहे।  क्या कभी सोचते हैं ये सब कर के आने वाले उनके बच्चों के भविष्य से हम खिलवार करते हैं? कहना बहुत आसान होता हैं पर उनके लिए  काम करना बहोत मुश्किल है आज भी.

भारत में दलित महिलाओं के विकास के लिए हमें क्या करना चाहिए? बहुत ही महत्ववपूर्ण विषय की इसे कम कैसे किया जाये? जैसा कि मैंने कहा कि जब तक हम कानून या सरकार के कुछ करने का इंतज़ार करें, हमे ही कुछ करना चाहिए।

1) जातिवाद का अंत: बहुत मुश्किल है पर मुमकीन है। जातिवाद के कारण शिक्षा में ही भेद होता है जिसके कारण अशिक्षा बढती है। यहां से हम शुरुआत कर सकते हैं। किसी भी समस्या का हल शिक्षा है।

2) आर्थिक स्थिति में सुधार: यूं तो आर्थिक स्थिति तुरंत सुधार पाना मुमकिन नहीं पर असमानता को कम किया जा सकता है। जहां बहुत सी महिला अशिक्षित होने के कारण मजदूरी का हक भी नहीं ले पाती हैं। इस स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।

3) सरकार  द्वारा बनाई गई नीति: अगर हम चाहें तो उनको पूरा अधिकार दिलवाने की दिशा में प्रयास कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार ने दलित समुदाय के लिए कुछ नहीं किया पर जितना किया उनकी जानकारी ना मिलने से उन सब सुख-सुविधाओं का उपयोग नहीं किया जा रहा है।

4) स्वास्थ्य केंद्र: सरकार ने दलित महिलाओं जैसे माँ और शिशु के लिए पूर्ण आहार देने का नियम बनाया है। जहां-जहां स्वास्थ्य केंद्र हैं गाँव में वहां मुफ्त चिकित्सा प्रदान किया जाता है पर जाति धर्म के आधार पर उन्हें वह भी पूर्ण रूप से नहीं मिल पाता।

5) साफ सफाई पर ध्यान: साफ-सफाई पर धयान देना बहोत जरुरी है। आज-कल जगह-जगह शौचालायों का निर्माण हो रहा है। हर एक गाँव में जिनसे साफ सफाई और महिलाओं को होने वाले दिक्कतों को कम किया जा सकता है।

6) कुपोषण की कमी: सरकार द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर गाँव में हर दलित महिला को पूर्ण रूप से आहार प्रदान हो। चाहे वो मुफ्त हो या उनकी कमाई पर, हमें इस पर ध्यान देना ज़रूरी है।

दलितों के साथ जो भेदभाव हो रहा है उसको अब ना कम किया गया तो हमें कोई हक नहीं कि हम कहें कि हमारा देश हर एक काम में आगे निकल गया। जहां पीछे मुड़कर देखें तो महिलाओं की संख्या और कम होती जाएगी। अपराध और जातिवाद कम हो जाये तो शायद हम उपर दिए गए आंकड़ों को कम कर सकें और महिलाओं की आयु और ज़्यादा बढ़े।

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