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“ज़रूरी है होली में महिलाओं की असहमतियों का सम्मान करना”

होली के दौरान महिलाओं को गलत तरीके से रंग लगाना

होली के दौरान महिलाओं को गलत तरीके से रंग लगाना

उम्मीद करता हूं कि आप सभी ने अच्छी वाली होली खेली होगी। चलिए देर से ही सही लेकिन आप सभी को शुभकामनाएं। यह लेख उन लोगों के लिए बिल्कुल नहीं है, जिन्हें लगता है कि होली के दिन होली के नाम पर हो रहे यौन शोषण पर चर्चा करने से उनके त्यौहार का मज़ा खराब होता है।

एक खुशनुमा होली मैं भी मनाना चाहता हूं लेकिन मुझे तब खुशी होगी जब लोग रंग लगाने के बहाने महिलाओं को गलत ढंग से छूना बंद कर देंगे। आप छूने की बजाए उन्हें गले लगाइए, कोई मनाही नहीं है मगर सहमति और असहमति नाम की चीज़ को नज़रअंदाज़ करना मत भूलिए।

यह बात हम सब जानते हैं कि रंग लगाने के बहाने हर दूसरा पुरुष एक महिला को गलत ढंग से छूता आया है मगर हम स्वीकार नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि हम जिस पुरुषप्रधान समाज में रह रहे हैं वह कभी अपने हीरो पुरुषों को गुनहगार देखना ही नहीं चाहता। यहां यह भी स्वीकारना ज़रूरी है कि इस पुरुषप्रधान समाज में पुरुषों के साथ महिलाओं का भी एक बड़ा तबका शामिल है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

हमेशा से होली के बहाने पुरुषों को रंग लगाने के नाम पर यौन शोषण करने की छूट मिलती आई है। वहीं, महिलाएं जब आपत्ति करें तो उन्हें सुनने को मिलता है, “बुरा न मानो होली है।” अरे भाई, वह रंग लगाने पर नहीं बल्कि होली के नाम पर हो रहे यौन शोषण के लिये बुरा मान रही हैं।

तो बेहतर होगा कि आप उनसे कहें बुरा ना मानो यौन शोषण है। क्यों? शर्म आई क्या? आनी भी चाहिए, यही समाज बनाया है हमने।

दो दिन पहले गोआ का एक वीडियो वायरल हो रहा था। वीडियो में एक लड़का एक लड़की को रंग लगाने आता है, दोनों विदेशी लग रहे थे। लड़की पहले रंग लगवाने में झेंपती है फिर अपनी टी-शर्ट उतारकर रंग लगाने की इजाज़त दे देती है और खुशी से रंग लगवाती है।

इससे यह समझ आया कि लड़की रंग लगवाने से नहीं बल्कि उसके कपड़े खराब ना हो जाए इसलिए झेंप रही थी। मुद्दा वीडियो नहीं, मुद्दा वह कैप्शन है जिसके साथ वह वीडियो शेयर किया जा रहा था। लड़के कैप्शन लिख रहे थे कि मुझे भी गोआ जाना है, इस होली पर सोच रहा हूं मैं भी गोआ चला जाऊं, ऐसी होली और कहीं नहीं मिलेगी।

अब अपनी मॉडर्न सोच को रखिए साइड में और उन कैप्शन्स के पीछे की मंशा को समझने की कोशिश कीजिए। सोचिए कि यह लोग होली के नाम पर करना क्या चाहते हैं। लड़की के बदन को जी भर कर छूना चाहते हैं, जो वह ऐसे नहीं छू सकते।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

वक्त के साथ होली मनाने के तरीकों में बदलाव होते आए हैं। ढोल-नगाड़ों की जगह डीजे ने ले ली है। घर से बाहर निकलकर अब महिलाओं को भी होली खेलने की छूट है। होली के गानों पर पब और पार्टी में भी महिलाएं बेखौंफ थिरकती देखी जा सकती हैं लेकिन सिर्फ इसे ही उनकी आज़ादी का पैमाना ना समझा जाए, क्योंकि इन सब में आज भी एक बात कॉमन है, होली के नाम पर हो रहा यौन शोषण।

जो पहले सिर्फ घर तक सीमित था और अब बाहर भी होने लगा है। स्कूल, कॉलेज, ऑफिस और पार्टी हर जगह रंग लगाने के नाम पर हो रहा लड़कियों के साथ यौन शोषण उसी तरह का है, जैसा आज से 20 साल पहले होता था।

हमने उन्हें होली खेलने के लिए घर से बाहर तो निकाल लिया मगर उन्हें एक सुरक्षित होली हम कब दे पाएंगे? इस सवाल का आज भी इस समाज के पास एक ही जवाब है, “बुरा ना मानो होली है।” इसे थोड़ा करेक्ट कर देता हूं, “बुरा ना मानो यह होली का यौन शोषण है।”

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