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बिहार के इस गाँव में लोगों ने चंदा इकट्ठा करके विकसित की सिंचाई की तकनीक

इरीगेशन

इरीगेशन

फरवरी महीने के अंत में ग्राम विकास योजना के काम के सिलसिले में मेरा बघलत्ती गाँव में जाना हुआ। गाँव के दलित टोला भुन्टोली (महादलित समुदाय भुइयां का टोला) में लोगों से बातचीत के दौरान प्रशासन की उपेक्षा झेल रहे लोगों ने अपनी तमाम समस्याओं के बारे में खुलकर बात की।

उनकी समस्याओं और चिंताओं के बीच गाँव के लोगों के मिले-जुले प्रयास से विकसित हो रही सिंचाई व्यवस्था के बारे में भी पता चला। अंग्रेज़ी की कहावत ‘एवरी क्लाउड हैज़ ए सिल्वर लाइनिंग’ का शायद इससे बेहतर उदाहरण मैंने पहले कभी नहीं देखा था। गाँव की लगभग 55 एकड़ सिंचित ज़मीन में से 30 एकड़ की सिंचाई इसी व्यवस्था से की जा रही है।

बघलत्ती गाँव के लोग

करीब 1400 लोगों की आबादी वाला बघलत्ती गाँव (पंचायत- मुसैला), बिहार राज्य के गया ज़िले के मोहनपुर ब्लॉक का एक दलित बहुल गाँव है जो इस क्षेत्र के अधिकांश गाँवों की तरह स्वास्थ्य, शिक्षा और सिंचाई जैसी मुलभूत सुविधाओं के घोर अभाव से घिरा हुआ है।

गाँव में करीब 1200 एकड़ खेती की ज़मीन है, जिसमें से केवल 55 एकड़ ही सिंचित ज़मीन है। सिंचाई के साधन के रूप में गाँव में 15 कुएं और 11 आहर (रेन वाटर रिजर्वायर्स यानि बरसात का पानी जमा करने वाले तालाब) हैं।

सिंचाई के साधनों के बारे में बातचीत के दौरान गाँववासी रामस्वरूप मंडल जी ने बताया कि गाँव में भूजल का स्तर काफी नीचे है, जिस कारण यहां ट्यूब वेल लगाना काफी महंगा है।

सिंचाई के बाकी साधनों के बारे में बताते हुए उन्होंने आगे बताया, सालों पहले गाँव से 15 किमी दूर कनौदी नदी से एक पेन (छोटी नहर) से गाँव के बड़का आहर में पानी आता था, जिससे धान के खेत पट (सींचे) जाते थे। कुछ समय बाद ऊंची जाति के दबंगों ने नहर से गाँव के बीच की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया, अब बरसात में भी गाँव के आहर सूखे रहते हैं।”

मुहाने नदी

मंडल जी ने आगे बताया, “यहां से करीब 800 मीटर की दूरी पर मुहाने नाम की एक बरसाती नदी है, जिस पर ‘लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम’ लगाने के लिए मैंने गाँव के लोगों के साथ मिलकर तमाम सरकारी अधिकारियों और जन-प्रतिनिधियों से बात की। आश्वासन तो काफी मिले लेकिन हुआ कुछ नहीं।”

उन्होंने आगे  बताया कि अब सरकार कुछ नहीं करेगी तो हम यूं ही तो नहीं बैठे रह सकते, एक दशरथ मांझी ने अकेले पूरा पहाड़ तोड़ दिया था और हमारे गाँव में तो सैकड़ों दशरथ मांझी हैं। हमने तय किया कि अब खुद ही कुछ कर दिखाएंगे। गाँव के (भुन्टोली टोला के) लोगों ने चंदा इकठ्ठा किया, श्रमदान किया और एक लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम, एक पोखर और एक चेक डैम बनाया जिसे बेहतर बनाने के प्रयास अभी भी चल रहे हैं।”

गांव के संयुक्त प्रयासों से बनी व्यवस्था के बारे में सुनने के बाद मैंने इसे देखने की इच्छा जताई। ग्रामीणों के संगठित प्रयास से जो सिंचाई की एक नई व्यवस्था बनी है, वह कुछ इस तरह से है-

लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम

2018 में भुन्टोली के लोगों ने लिफ्ट इरिगेशन सिस्टम पर काम शुरू किया और जनवरी 2019 में इसे पूरा किया। इसके लिए नदी के पास शेड में एक 10 हॉर्स पॉवर का बिजली चालित पंप लगाया गया है।

इस पंप से 4 इंच का एक फ्लेक्सिबल पाइप 150 फीट दूर नदी के तल तक जाता है। इस पाइप को नदी तल में बने एक 10 फीट के बोर में बिठाए गए 8 इंच के पीवीसी पाइप से जोड़ा गया है।

पंप से 4 इंच की 3000 फीट की पीवीसी पाइप से गाँव में एक सिंचाई का नेटवर्क बनाया गया है। इस 3000 फीट के पाइप सिस्टम में 4 आउटलेट हैं, इनमें से तीन से अलग-अलग जगहों पर पानी को ज़रूरत के अनुसार निकाला जाता है और चौथे से एक पोखर में पानी भरा जाता है, जिसे मछली पालन के साथ-साथ सिंचाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

ऊपर से बाएं: 10 हॉर्स पॉवर का पंप, ऊपर से दाएं: नदी तल पर बोरिंग और नीचे: पीवीसी पाइप सिस्टम से निकलने वाला आउटलेट

नदी के पास बने पंप शेड में हर वक्त गाँव का एक व्यक्ति मौजूद रहता है जो बिजली की उपलब्धता के अनुसार पंप को चालू करता है। जिस वक्त मैं वहां गया, मदन मांझी मौजूद थे। उन्होंने मुझे इस लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम के बारे में और जानकारी दी।

उन्होंने मुझे बताया कि उनके पास एक 12 हॉर्स पॉवर का डीज़ल पंप भी है जिससे एक और सामानांतर लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम बनाया जा सकता है लेकिन इसके लिए कम-से-कम और 2000 फीट पाइप की ज़रूरत होगी।

तमाम परेशानियों के बाद भी गाँव के लोगों का हौंसला बुलंद है और वे इस सिस्टम को और अधिक विकसित करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। मदन जी अपने प्रयासों को एक पंक्ति में सारबद्ध करते हुए कहते हैं, “हमारा दो उद्देश्य है, एक गाँव में रोटी और दो गाँव में मछली की कभी कमी ना रहे।”

गाँव के इस शानदार सफल प्रयोग को देखकर मन में यह जानने की भी इच्छा हुई कि आखिर लिफ्ट इरिगेशन का ख्याल आया कहां से? मेरी इस जिज्ञासा का जवाब युवा जोगिन्दर मांझी ने दिया।

गाँव के जोगिन्दर ने बताया, “हमारे बाप-दादाओं की असफलताओं से हमने इसे सीखा। करीब 40 साल पहले उन्होंने स्थानीय कुम्हारों से एक हाथ (करीब 1.5 फीट) लम्बी कई नालियां बनवाई और उन्हें खेतों में बिठाया, इन नालियों में एक डीज़ल पंप से नदी से खीचकर पानी डालने की कोशिश की लेकिन यह प्रयास असफल रहा। इनसे सीखते हुए हमने आज का लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम विकसित किया।”

पोखर

लिफ्ट इरीगेशन की ही तरह गाँव के लोगों ने मिलकर 2007 में एक पोखर का निर्माण  शुरू किया, जिसे और बड़ा बनाने के लिए समय-समय पर गाँव के लोग श्रमदान करते हैं। इस पोखर में लिफ्ट इरीगेशन सिस्टम के ज़रिए साल के उन महीनों में पानी जमा किया जाता है, जब बारिश नहीं होती है।

पोखर

गाँव के लोग मिलकर इस पोखर में मछली पालन करते हैं, जिनमें रोहू, मांगुर और स्थानीय पहाड़ी मछली को पाला जाता है। इससे गाँव के लोगों को सस्ते दामों में मछली तो मिलती ही है, साथ ही स्थानीय बाज़ारों में बेचने पर जो आमदनी होती है, उसका इस्तेमाल गाँव में विकास के अन्य कामों में किया जाता है।

चेक डैम

बरसात के समय जंगल से आने वाला पानी पहले सीधा मुहाने नदी में चला जाता था, 2011 में गांव के लोगों ने एक इस पर एक चेक डैम बनाना शुरू किया जिस पर अभी भी काम चल रहा है। यह सुनने में जितना आसान लगता है उतना असल में है नहीं।

चैक डैम

2012 में नक्सलवादी गुट एमसीसी (माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर) के लोगों ने पास के गाँव के रसूखदार लोगों के साथ मिलकर इसे तोड़ दिया था, जिसे गाँव के लोगों ने श्रमदान कर फिर से बनाया। आज यह चेकडैम बघलत्ती गाँव को सिंचाई का एक और विकल्प उपलब्ध कराता है।

सिंचाई की यह पूरी व्यवस्था बघलत्ती गाँव के भुन्टोली के लोगों ने बिना किसी सरकारी मदद के तैयार की है। ज़ाहिर तौर पर इसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है लेकिन 1200 एकड़ की खेती वाले गाँव के लिए यह काफी नहीं है।

हमारे सरकारी तंत्र की अनदेखी और साफ तौर पर अफसरशाही के जातिवादी पूर्वाग्रहों के बीच भुन्टोली के लोगों का यह प्रयास एक मिसाल है, जो साबित करता है कि लोग सरकारों से नहीं सरकारें लोगों से चलती हैं।

सिंचाई के संकट से लोग पार पा भी लें तो शिक्षा और स्वास्थ्य की समस्याएं आज भी बघलत्ती जैसे कई गाँवों में अपने विकटतम रूप में मौजूद हैं। बघलत्ती से निकटतम स्वास्थ्य केंद्र की दूरी 8 किमी है, बिजली दिन में औसतन 10 घंटा ही मिलती है, सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान 3 किमी दूर है। ये सब तो यहां की समस्याओं की एक बानगी भर है।

असल में गाँव के लोग क्या कुछ सह रहे हैं वह एक दिन गाँव घूमकर शायद जाना नहीं जा सकेगा। जनप्रतिनिधियों और अफसरान के कोरे आश्वासनों की कीमत ना जाने असल भारत के कितने लोग चुका रहे हैं और उनका हाल जानने और समझने की फुर्सत शायद “यंग इंडिया”, “डिजिटल इंडिया”, “अलाना इंडिया” और “फलाना इंडिया” के पास नहीं है।

नोट: इस रिपोर्ट को तैयार करने में बघलत्ती गाँव के रामस्वरूप भुइयां और रामस्वरूप मंडल जी का विशेष सहयोग रहा, इनके बिना यह रिपोर्ट तैयार करना मुमकिन नहीं होता। रामस्वरूप भुइयां और रामस्वरूप मंडल पिछले 35 सालों से भी अधिक समय से ‘जन मुक्ति संघर्ष वाहिनी’ के सदस्य हैं और ऐतिहासिक बोधगया आन्दोलन का हिस्सा रहे हैं।


लेखक सिद्धार्थ दिल्ली में रहते हैं और ‘सोसाइटी फॉर रूरल अर्बन एंड ट्राइबल इनिशिएटिव’ (SRUTI) के साथ काम कर रहे हैं।

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