होलिका दहन का बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाने की परंपरा तो सदियों से चली आ रही है। जो त्यौहार जाति, संप्रदाय और धर्म आदि के भेद को भुलाकर परस्पर प्रेम और सद्भाव लेकर आता हो, वैसे शुभ दिन पर आप अपने अंदर की मानवता को त्याग कर आदमखोर का रूप धारण कर लें, तो यह शर्मनाक है।
यहां तक कि एक झुंड द्वारा सिर्फ इस आधार पर आपके घर में घुसकर आप पर हमला कर दिया जाता है, क्योंकि आप किसी और मज़हब से होते हैं। कोई भी एक झुंड आकर यह तय करेगा कि आपके बच्चे इस देश की ज़मीन पर खेलेंगे या पाकिस्तान की ज़मीन पर?
रोज़ी रोटी के चक्कर में इंसान अपना घर छोड़ने को मजबूर होता है। चाहे छात्रों की बात करें या मज़दूरों की, कोई भी व्यक्ति अपना घर इतनी आसानी से नहीं छोड़ना चाहता है। हर कोई अपने माता-पिता के बीच में रहना चाहता है। हर कोई अपने घर की छांव में रहना चाहता है मगर पेट की मजबूरी बहुत बड़ी मजबूरी होती है।
साजिद के साथ यह कैसी नाइंसाफी
कितना बेबस और बेसहारा होगा साजिद जो अपने छ: बच्चों व पत्नी के साथ अपने घर से मीलों दूर एक अनजान शहर की खाक छान रहा होगा। वह साजिद जिसकी ना जाने कितनी नस्लें इसी हिन्दुस्तान की ज़मीन पर दफन होंगी लेकिन आपने तो बस हिंदुत्व की ठेकेदारी जो ले रखी है, आप तो तालिबान की राह पर हिंदुत्व बचाने निकले हैं।
अब तो यह आप तय करेंगे कि साजिद के बच्चे क्रिकेट हिन्दुस्तान में खेलेंगे या पाकिस्तान में। फिर यदि कोई आपकी इस ओछी हरकत का विरोध करेगा, तो आप अपने लठैत गिरोह के साथ उसके घर में घुसकर मारपीट व लूटपाट करेंगे और हद तो तब हो गई जब समाज मूकदर्शक बन कर यह सब देखता रहेगा। पड़ोसी तमाशबीन बने खड़े रहेंगे लेकिन कोई आपको बचाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाएगा।
हिन्दुत्व के ठेकेदारों की उग्रता खतरनाक
हिंदुत्व के इन नए ठेकेदारों को आखिर यह अधिकार किसने दिया? इनके अंदर कानून का कोई भय है भी या नहीं, यह लोकतंत्र में विश्वास रखते भी हैं या नहीं, इस पर संशय है। इस समाज को आखिर क्यों फर्क नहीं पड़ता है जब किसी इंसान को भीड़ के सामने पीट-पीटकर मार दिया जाता है। अब ऐसी घटनाएं किसी को झकझोरती तक नहीं हैं। क्यों पिछले 5 सालों से इन चीज़ों को आम बात का दर्ज़ा दे दिया गया है?
मौजूदा परिस्थितियों में इस बात को याद रखने की ज़रूरत है कि अगर हम यूं ही खामोश रहें, तो वह दिन दूर नहीं जब यह उग्र भीड़ हमलोगों के साथ भी ऐसा व्यवहार ही करेगी।
चुप्पी तोड़नी होगी
यदि अभी कोई दिलशाद किसी ग्राउंड में क्रिकेट नहीं खेल सकता तो कल इस लिस्ट में आपके बच्चे का नाम भी शामिल हो सकता है। आज धर्म के नाम पर लिंचिंग करने वाले लोग कल जाति के नाम पर लिंचिंग करेंगे और आप तब भी मूकदर्शक बन कर देखते रहेंगे।
इसलिए यह ज़िम्मेदारी आपकी भी है, जब कोई असामाजिक तत्व ऐसी कोई भी हरकत करे जो मानवता को शर्मसार करने वाली हो, तो आप विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद करें ताकि वे आगे से ऐसी चीज़ें करने के लिए हिम्मत ना जुटा पाएं।
खैर, यह बातें कहकर क्या फायदा, क्योंकि आप तो मॉब लिंचिंग करने वालों को अपना आइकॉन बनाकर बैठे हैं। अगर यही हिन्दुस्तान है, जहां जानें इतनी सस्ती हो जाएं और समाज मूकदर्शक बन कर हत्यारों को हीरो बना बैठे, तो घबराइए मत आप इस देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
इस देश की साझी विरासत को दफन कर रहे हैं। इस देश के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं। फिर आप राष्ट्रप्रेमी नहीं हो सकते क्योंकि भारत जैसे देश के बेटे धर्म, रंग, जाति और नस्लों में ना बंटकर भारतीय रहें तो बेहतर है।
ज़ुल्म पर खामोश रहना ज़ुल्म करने जैसा ही है। इसलिए अपने अंदर के उस राक्षस को दफन करिये और मानवता का सबूत दीजिए। इस देश की दूसरी बड़ी आबादी को यह विश्वास दिलाइए कि आपकी हिफाज़त हमारा कर्तव्य है। हम इसका पालन करेंगे और पूरी निष्ठा व ईमानदारी के साथ इन असामाजिक घटनाओं का विरोध करेंगे।