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क्यों मौसम और बिचौलियों के बीच पीसता रह जाता है रामलाल जैसा किसान?

सभी कहते हैं कि भारत में किसानों की हालत बहुत खराब है पर उनकी तकलीफें समझना आसान नहीं है। उनका तो दर्द ऐसे है कि सारे नेताओं के भाषण भी कम पड़ जाएं। चलिए आज खुद किसान बनकर उनकी समस्या स्वाभाविक रूप से समझते हैं।

समझ लीजिये मेरा नाम रामलाल है, जो एक छोटा किसान है। खरीफ की फसल बोने का समय आ गया है और रामलाल फिर से तैयारियों में जुट गया, ताकि इस बार फसल अच्छी पाकर वह कुछ फायदा कमा सके। उसके पास बीज, खाद और सिंचाई के लिए पैसे तो है ही नहीं। अब क्या करे?

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- Getty

गाँव में आसपास कोई बैंक भी नहीं है, लोन लेने के लिए। कुछ पता भी नहीं है कि लोन की प्रक्रिया क्या है। उसने सोचा कि अपने ही गाँव के लाला से कर्ज़ ले लिया जाए। वह जान पहचान का है और पैसा भी जल्दी मिल जाएगा। उसने लाला से बैंक से 10 गुना ब्याज पर कर्ज़ ले लिया। सरकार ने पता लगाया है कि इस बार बारिश अगस्त में अच्छी होगी, इसलिए फसल उसी समय सबसे ज़्यादा उगाई जाए।

रामलाल चल दिया बीज और खाद लेने पर यह क्या, सरकार की सब्सिडी वाली खाद के लिए तो जमकर कतार लगी हुई है। हुआ यूं कि इस बार ज़िले में खाद की सप्लाई मांग से कम हुई है, जिसके कारण किसानों को लाइन में लगना पड़ रहा है। कइयों को तो सस्ती खाद मिली ही नहीं और कुछ को महीनों लग गए नंबर आने में।

चलो, रामलाल को बड़ी मशक्कत के बाद खाद मिल ही गई। बीज भी वह ले ही आया। छोटा किसान है, तो ट्रैक्टर तो है नहीं, तो बैल से ही मेहनत करनी होगी।

अचानक पता चला कि सरकार की बारिश की भविष्यवाणी में गलती निकली और अगस्त में ज़्यादा बारिश नहीं होने वाली है। फसलें तो सभी किसानों ने बो दिए। अब क्या करे? सिंचाई के लिए गाँव में पानी है नहीं, पंप वगैरह के भी पैसे नहीं है और फिर बिजली का बिल भी तो आएगा। यहां मुनाफे का ठिकाना है नहीं पर फसल काटने के लिए कितना पैसा लग रहा है। क्या करे, पानी नहीं दिया तो सारे किए कराए पर ही पानी फिर जायेगा। उसने लाला से और कर्ज़ लिया और सिंचाई की व्यवस्था की।

अब जो खाद लाये थे, उसे भी डालना है पर रामलाल को पता ही नहीं है कि खाद कितनी मात्रा में डालनी है और किस तरह से डालनी है। खाद की मात्रा मिट्टी की उर्वरता और फसल पर निर्भर करती है। रामलाल ने बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के बेहिसाब  खाद डाल दी। इससे कुछ कैमिकल रामलाल के शरीर में भी चले गए, उसकी तबियत खराब हो गयी और कुछ दिन अस्पताल में रहकर आना पड़ा। खर्चा हुआ सो अलग। बाल बाल जान बची।

इतनी मुसीबतों के बाद आखिर में फसल काटने का समय आ ही गया। उसने फसल काटी और उसे तहखाने में जमा कर दिया। साथ में यह भी पता चला कि हर साल बेहिसाब खाद डालने से मिट्टी की उर्वरता कम हो गयी है और फसल जितना अनुमान था, उससे कम हुई है। इसके बाद भी सोचा कि चलो जो मिला वो ही सही।

अब सरकार ने घोषणा की कि सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ा दिए गए हैं। रामलाल खुश हो गया पर बाद में जब सरकार ने मूल्य निकाला तो वह तो बाज़ार भाव से बहुत कम आया। रामलाल ने सोचा कि सरकार को बेचने की बजाय बाज़ार में ही जाकर बेचे ताकि अच्छा  मूल्य मिल सके, चाहे थोड़ी और मेहनत करनी पड़े।

रामलाल के पास ना कोई ट्रांसपोर्ट गाड़ी थी ना ही उसके किराए के पैसे। उसी तरह, धान को ज़्यादा दिन रखने के लिए वेयरहाउस ना उसके पास था और ना ही गाँव में। उसने तय किया कि धान आज ही बेच देगा, ताकि रात को वापस ना लाना पड़े, वरना सब सड़ जायेगा और वापस लाने के लिए किराया लगेगा वो अलग।

वो पास के शहर की मंडी गया पर समस्या यह थी कि उसे अच्छे से यह नहीं पता कि बाज़ार में सही भाव क्या चल रहा है? कितना ज़्यादा मूल्य मिल सकता है? आधा दिन मंडी में यही पता करने में चला गया। कुछ समय मंडी की सरकारी कार्रवाई और एक शुल्क देने में चला गया।

किससे बात करे, कहां पता करे? अचानक उसे एक बिचौलिया मिला। उसने उसे अच्छा दाम दिलाने की बात कही और उसे एक मंडी के व्यापारी के पास ले गया। बहुत देर सौदा चला। रामलाल को जल्दी थी, क्योंकि धान आज ही बेचना था। शाम हो गई, कुछ खास मूल्य नहीं मिल रहा था। पता चला कि जो फसल उसने बोई थी, उसके दाम अचानक से गिर गए।

क्या है कि वो फसल आसपास के सभी किसानों ने भी बोई थीं, इसके कारण मूल्य गिर गया। अब किसानों को बाज़ार के बारे में तो पता नहीं होता ना कि कौन सी फसल बोनी चाहिए। अब मूल्य तो MSP से भी कम रह गया। अब सरकारी दफ्तर में धान  बेचने में और भी दिन लग जायेंगे। उसने अपनी फसल 5 रुपए/किलो में बेच दी, जिसकी लागत 15 रुपए थी। खास बात यह है कि आम लोगों को वो धान 12 रुपए में ही मिलेगा, क्योंकि बिचौलिये का कमीशन और व्यापारी का मुनाफा भी उसमें शामिल होगा।

इस तरह रामलाल मायूसी के साथ गांव लौट गया। अब लाला के कर्ज़ का क्या होगा? ब्याज मिलाकर रकम बहुत बढ़ गई। सब कुछ उसे दे दिया तो खाएंगे क्या? उसके बच्चे, पत्नी और माँ-बाप का क्या होगा? मिट्टी की उर्वरता भी कम हो गयी है, तो अगली फसल में भी कुछ दम नहीं होगा।

फिर भी उसने लाला को अगली फसल के कर्ज़ के लिए मना लिया और सोचा भगवान की दया से इस बार बारिश अच्छी होगी। वह लग गया अगली रबी की फसल बोने।

इसी तरह किसान का तो सबकुछ भगवान भरोसे ही है। साल दर साल कर्ज़ बढ़ता जाता है और भगवान की दया नहीं होती है। अब कर्ज़ चुकाने के लिए अंत में किसान या तो ज़मीन बेचते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं। सिर्फ मुश्किल से 30% किसान बैंक से लोन लेते हैं। लगभग 90% किसान रामलाल जैसे कम ज़मीन वाले ही हैं। कृषि के हर कार्य में हर कदम पर कितनी अनिश्चितता है।

कौन सा व्यापार इससे ज़्यादा रिस्की हो सकता है, जहां धान उगाने वाले को ही खाना ना मिले। यह तो कुछ नहीं है, कभी बाढ़ या सूखा आ गया तो फसल काटने से पहले ही बर्बाद हो जाती है। इतना सब पढ़ने के बाद भी हम उनकी हालत नहीं समझ सकते हैं, क्योंकि जिस पर बीतती है सिर्फ वह ही जानता है। कुछ ऐसा ही होता है, तभी सबसे ज़्यादा किसान आत्महत्या करते हैं इस देश में। अपनी जान सबको प्यारी होती है पर जब स्थिति ही ऐसी आन पड़े, जब कोई सहारा ना हो, तब इंसान हार मान ही लेता है।

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