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12 साल की उम्र में बाल विवाह के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाली रिज़वाना

रिज़वाना

रिज़वाना

As told to Kumar Prince Mukherjee:

“हमारे समाज में कई ऐसी रिवायते हैं, जो आज के दौर में भी खासकर कम उम्र में ही लड़कियों पर थोप दी जाती है। कम उम्र में लड़कियों की शादी करा देना उन्हीं रिवायतों में से एक है। हमारे समाज द्वारा लड़कियों के लिए एक ऐसा तानाबाना बुना गया है, जहां बेहद कम उम्र में किसी लड़की के लिए अगर सबसे ज़रूरी चीज़ है तो वह शादी ही है।

बाल विवाह के खिलाफ भी मेरी लड़ाई इन्हीं चीज़ों के इर्द-गिर्द है। मैं मराठा मंदिर, मुंबई सेन्ट्रल में रहती हूं लेकिन मेरा पैत्रृिक गाँव बिहार के दरभंगा में है। हमने जबसे होश संभालना शुरू किया, तब से लेकर अब तक लड़कियों के संदर्भ में घर, परिवार, दोस्त और समाज के अंदर एक खास किस्म की मानसिकता देखी और वो यह कि लड़की है, इसकी जल्दी शादी करवा दो, अरे-अरे! लड़की होकर लड़के से कैसे बात कर रही है।

मतलब हमें एक ऐसा सामाजिक परिवेश परोसकर दे दिया गया है, जहां ज़िन्दगी तो मेरी है लेकिन समाज द्वारा थोपी हुई रिवायतों का बोझ अपने सिर पर लेकर चलने की अपेक्षा यह समाज हमसे करता है।

ऐसा नहीं है कि बाल विवाह के खिलाफ मैंने यूं ही आवाज़ बुलद करना शुरू कर दिया। इसकी शुरुआत तब हुई जब मेरी उम्र 14 साल की थी और मेरी एक कज़िन बहन की शादी घर और रिश्तेदारों ने जबरदस्ती कराने की कोशिश की। मेरी कज़िन सिस्टर पर लगातार दबाव बनाया जाने लगा। उसे तमाम तरह की बातें कही गईं कि तुम शादी कर लो, यही उम्र होती है शादी की, एक लड़की का सपना उसके पति के साथ ही होता है, जैसी तमाम चीज़ें उसके ज़हन में डालने की कोशिश की गई।

मुझे जब इसकी भनक लगी तब मैंने मेरे कज़िन के परिवारवालों को तमाम तरह की बातें बोलकर उनपर दबाव बनाने की कोशिश की। मैं बस यही सोच रही थी कि किसी तरह से उसकी शादी ना हो क्योंकि हमने पहले ही पता कर लिया था, एक तो लड़का सही नहीं था और दूसरा उसकी शादी मर्ज़ी के खिलाफ हो रही थी।

हमलोगों में ऐसा बोला जाता है कि लड़की अभी 14 की हुई तो इसकी अब शादी करवा दो। खैर, मैं चाह रही थी कि किसी भी तरह से मेरी कज़िन की शादी ना हो। मैंने कज़िन की फैमिली को फोन करके उनपर पुलिस का दबाव भी बनाया लेकिन मेरी मेरी कोशिश सार्थक नहीं हुई और आखिरकार उसकी शादी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ करा दी गई।

इतने विरोध के बाद कज़िन की शादी हुई और सबसे हैरानी की बात यह है कि पढ़ने और खेलने की उम्र में उसे बच्चा पैदा करने के लिए दबाव बनाया गया, जिसका परिणाम यह है कि आज की तारीख में वह दो बच्चे की माँ है। इतनी कम उम्र में बच्चा पैदा करना यानि शरीर को कितना नुकसान पहुंचाना होता है, यह करने की आवश्यकता नहीं है।

मेरी कज़िन को केवल ज़बरदस्ती शादी के लिए ही मजबूर नहीं किया गया बल्कि उसे ठीक से पढ़ने भी नहीं दिया जाता था। उसकी फैमिली तो दरभंगा में थी लेकिन शादी से पहले उसे काम करने के लिए मुंबई भेजा गया था। मेरी कज़िन की शादी तो हो गई लेकिन बाल विवाह के खिलाफ जो मेरी लड़ाई है, उसकी शुरुआत भी इसी घटना के साथ हुई।

यह मत खा, वह मत खा, बाहर मत बैठ और सिर पे दुपट्टा ले जैसी चीज़ें तो हमें हर रोज़ सुनने को मिलती थीं। हमारी फैमिली में परिस्थियां तो हमारे खिलाफ थी ही लेकिन साथ ही साथ समाज के लोगों का नज़रिया और भी तंग था। मेरी कज़िन की कहानी जानने और समझने के बाद हमने तय किया कि अब इस दिशा में काम किया जाए।

इसी कड़ी में हमें ‘हमारे फाउंडेशन’ संस्था के बारे में जानकारी मिली, जिन्हें हमने कम उम्र में लड़कियों की जबरन शादी कराने के कई मामले बताए और उन्होंने हमें बताया कि ऐसी चीज़ों के लिए लड़ाई कैसे लड़ी जाती है।

एक लड़का अगर अपनी लाइफ में कुछ भी करे तो सही है लेकिन जब बात हम लड़कियों की होती है, तब हमें एक खास किस्म के चश्में से देखा जाता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि हर वह काम जो लड़का नहीं कर सकता, वह लड़की ज़रूर कर सकती है।

मैं 14 साल की थी तब मेरे अब्बू का इंतकाल हो गया। मुझे याद है मैं 9वीं कक्षा में थी तब मेरे पड़ोस के भैया मेरी माँ को बोलते थे कि अब इसे ज़्यादा मत पढ़ाओ लड़की जवान हो गई है। उस दौरान हर कोई ऐसी बातें करके मुझे टॉर्चर ही करता था। मैंने उन्हें शादी के लिए मना कर दिया।

इन्हीं चीज़ों के चक्कर में मेरा दो साल बर्बाद हो गया फिर मैं 10वीं में गई और फिर से पढ़ाई की शुरुआत की। 2017 में 9वीं की पढ़ाई की शुरुआत हुई।

हम लड़कियों के लिए इस समाज ने बंदिशों के कई दायरे बना रखे हैं। अगर कोई लड़का हमें उल्टी सीधी बात बोलता है, तो सोसाइटी या परिवार में लोग यही कहते हैं कि ज़रूर तुम्हारी ही गलती रही होगी।

मुझसे बिना राय लिए मेरी शादी की बात चलाने के दौरान भी तो ऐसा ही हुआ जब लाख मना करने के बाध भी हमें सिर्फ खामोश रहने के लिए कहा गया। मेरे ना चाहते हुए भी परिवारवालों ने मेरी मंगनी करा दी है। अब दो साल बाद मेरी शादी भी हो जाएगी। मैं नहीं चाहती हूं कि अभी इस उम्र में मेरी शादी हो लेकिन सामाजिक परिवेश और घर के लोगों के दबाव के आगे मैं क्या ही कर सकती हूं।

हां, एक बात ज़रूर है। ये लोग मेरी शादी करा तो देंगे लेकिन मैं उन तमाम लड़कियों की ज़िन्दगी बर्बाद नहीं होने दूंगी जिनकी कम उम्र में शादी कराई जाती है। बाल विवाह के खिलाफ मेरी लड़ाई जारी रहेगी।

ज़िन्दगी में कुछ करने के लिए हर किसी को कहीं ना कहीं से प्रेरणा मिलती है। ‘हमारे फाउंडेशन’ की आशा मैडम मेरे लिए प्रेरणा का श्रोत हैं, जिन्होंने तमाम जटिल परिस्थियों में हमें उठकर खड़ा होना सिखाया। यदि दीदी ने हमें सशक्त ना बनाया होता, तब 12 साल की उम्र में ही मेरी शादी हो जाती। अगर 12 साल में हमारी शादी हो जाती, तो कभी हम जी ही नहीं पाते।”

मैं ‘सेव दे चिलड्रेन’ संस्था का भी शुक्रगुज़ार हूं, जिन्होंने मेरी कहानी को अलग-अलग प्लैटफॉर्मस तक पहुंचाने में मेरी मदद की।

आज के दौर में बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर नकेल कसने के लिए रिज़वाना की लड़ाई सिर्फ उसकी नहीं है, बल्कि यह उन तमाम लड़कियों के लिए विषम परिस्थियों से निकलकर ज़िन्दगी के लिए मुकम्मल राह तलाशने की दिशा में सराहनीय कदम है। आज जिस कदर अकेले अपने दम पर रिज़वाना बाल विवाह के मामलों में डटकर विरोध प्रकट रही हैं, यह आने वाले वक्त में इस रिवायत के खात्मे के लिए ऐतिहासिक कदम है।

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