इन दिनों देश में फेसबुक के महान युद्धाओं ने एक अलग तरह का अभियान छेड़ा हुआ है। इस तरह के यौद्धा व्हाट्सअप का सहारा भी ले रहे हैं। इनका पहला टारगेट पाकिस्तान की तबाही है।
कुछ मीडिया संगठनों के एंकर्स इनके परम गुरू हैं, जिन्होंने इन दिनों अपने स्टूडियो को मिनी युद्ध क्षेत्र का जामा पहना रखा है। कुछ एंकर्स हाथ में त्रिशूल तो कुछ दिवाली में बच्चों द्वारा चलाई जाने वाली टिकड़ी बन्दुक लिए खड़े हैं। चेहरे के हावभाव ऐसे कि मानो स्वयं कालदेव अवतरित हुए हो।
अशांति फैला रहे हैं न्यूज़ एंकर्स
न्यूज़ चैनलों के एंकर्स अपने साथ 4 विशेषज्ञों की चौकड़ी का दरबार सजाए जमे हुए हैं। अपने विचित्र जंगी विचारों से समस्त देश में उन्माद का ज्वार पैदा कर रहे हैं, जिसके परिणाम से इन्हें कोई लेना-देना नहीं है।
मेरे प्रिय जंग लड़ने वाले फेसबुकिया और व्हाट्सपिया योद्धाओं, बस एक मिनट के लिए मेरी बात सुन लीजिए।
आपको अंदाज़ा भी है कि आप क्या बोल रहे हो? अभी के अभी लड़ाई कर दो, युद्ध का ऐलान कर दो और यह कर दो-वह कर दो जैसी बातों को बोलने के बजाए गौर कीजिए कि आप कह क्या रहे हैं।
पहली बात युद्ध ना फेसबुक, व्हाट्सअप पर लड़ा जाता है और ना ही यह PUBG का खेल है, जिसे बोरियत महसूस होने पर जब चाहे शूरू कर लिया और कुछ देर मज़े करके बंद कर दिया।
हुजूर इसमें चिकन डिनर नहीं होता बल्कि इसमें हीमोग्लोबिन युक्त लहू बहता है, जो किसी के बेटे, भाई, पिता और सुहाग का होता है।
चलो एक पल के लिए तुम्हारी बात मानते हुए एक जंग का ऐलान कर लेते हैं। एक बात बताओ इस जंग से तुम्हारा क्या नुकसान होने वाला? तुम्हारा क्या बिगड़ने वाला है? जी हां, तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ने वाला है।
युद्ध कहना आसान है, परिणाम बेहद घातक
युद्ध के बारे में उन बेवा माँओं से पूछो जिनका एकलौता बेटा उसके घर में रोटी लाने वाला एकमात्र सहारा सीमा पर खड़ा है, उस नई-नवेली दुल्हन से पूछो जिसकी शादी को अभी 20 दिन ही हुए हैं, जिसकी हथेली की मेहंदी अभी तक सुखी नहीं है और जिसका सुहाग तुम्हारे लिए सरहद पर हाथों में उसका हाथ थामने की जगह में बंदूक थामे खड़ा है।
उस बच्चे से पूछो जो कुछ दिन पहले माँ की कोख से आज़ाद हुआ और जिसने अभी तक अपने बाप की सूरत नहीं देखी है। तुम जैसे मुर्ख उसे यतीम बनाने के लिए जंग की मांग करते हो।
किस जंग की बात कर रहे हो तुम? अरे तुम तो फेसबुक और व्हाट्सअप पर दो दिन स्टेटस रखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दोगे लेकिन उनका क्या जो इसमें अपना बेटा, अपना भाई , अपना दोस्त, अपना बाप और अपना सुहाग खोएंगे।
इसलिए युद्ध क्या होता है यह मालूम करना है, तो जाओ उन परिवारों के पास जिसके बेटों ने सियासत के अहम की तुष्टि करने के लिए अपना परम बलिदान दिया है।
इस संदर्भ में साहिर लुधियानवी की पंक्तियां पेश करना चाहूंगा-
फतेह का जश्न हो या हार का शोक
ज़िन्दगी फकत मय्यतों पर रोती है
अगर फिर भी कोई जंग होती है तो मेरे देश के मीडिया और सोशल मीडिया के पराक्रमी योद्धाओं याद रखना युद्ध में होने वाले उस महाविनाश के लिए तुम उतने ही ज़िम्मेदार ठहराए जाओगे जितना महाभारत में अपने ही भाइयों की पत्नी द्रोपदी के चीरहरण के लिए कुंतीपुत्र महारथी कर्ण ज़िम्मेदार था ।
तुम्हें जंग लड़ने का अगर इतना ही शौक है तो CDSE नामक परीक्षा क्रैक करने की हिम्मत रखो। न्यूज़रूम में बैठकर भाषण देने से कुछ नहीं होगा।
यूं फेसबुक और व्हाट्सअप पर युद्ध-युद्ध चिल्लाकर उन परिवारों के दिलों की धड़कन ना बढ़ाओ जिनका कोई अजीज़ तुम्हारी रक्षा के लिए सरहद पर खड़ा है।