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SC में सवर्ण आरक्षण पर रोक लगाने की याचिका खारिज़, 28 मार्च को अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट

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आरक्षण भारत में एक ऐसा विषय है, जिसने कुछ लोगों को हिंदुस्तान का हीरो बना दिया। इस सूची पहला नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर का है, जिन्होंने संविधान में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान करते हुए भारतीय जनमानस के नेता बन गए।

भारतीय जनता से उनका जुड़ाव गहराता गया जिसके बाद बिहार की एक राजनीतिक पार्टी के टिकट पर उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा। हालांकि मोदी लहर में वह जीत नहीं पाए लेकिन भारतीय राजनीति को उन्होंने सोचने पर मजबूर कर दिया।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में 11 मार्च को केन्द्र सरकार की तरफ से पेश किए गए 10 फीसदी आरक्षण मामले पर सुनवाई हुई। इसे रोकने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी लेकिन कोर्ट ने संविधान संशोधन विधेयक पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।

अब सुप्रीम कोर्ट को विचार करना है कि यह मामला संविधान पीठ के पास भेजा जाएगा या नहीं। इस मामले में 28 मार्च को कोर्ट में फिर सुनवाई होगी।

हिन्दुस्तान में फिल्मों ने लोगों को काफी प्रभावित किया है और ऐसा ही हुआ जब आरक्षण जैसे विषय पर प्रकाश झा की फिल्म ‘आरक्षण’ आाई। लोगों ने इस फिल्म की काफी सराहन की और तमाम एक्टर्स से लेकर निर्देशक तक देश के लिए असलियत में हीरे बन गए।

अब नाम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आता है, जिन्होंने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10% आरक्षण की घोषणा की। मोदी के इस फैसले के बाद कुछ लोगों ने उन्हें ‘सामान्य वर्ग का बाबा साहेब’ बना दिया।

7 जनवरी 2019, को यूनियन कैबिनेट की एक बैठक में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए सरकारी नौकरी और शिक्षण-संस्थानों में 10% आरक्षण की मंजूरी दे दी गई। इस बिल को 8 जनवरी 2019 को लोकसभा में पेश करते हुए साढ़े 4 घंटों की बहस के बाद पारित किया गया।

इसके पक्ष में 323 सांसदों और विरोध में मात्र तीन सांसदों ने अपना मत दिया। 9 जनवरी 2019 को राज्यसभा में पेश होने के बाद इसे पारित कर दिया गया।

क्या है 10% आरक्षण के लिए प्रावधान?

गौरतलब है कि 12 जनवरी 2018 को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में बताया था कि मात्र 76 लाख भारतीय जनता अपनी वार्षिक आय 6 लाख या इससे ज़्यादा दिखाती है।

काटा जा रहा है अनुसूचित जाति और जनजातियों का हक

सरकार बार-बार यह बात दोहरा रही है कि यह नई आरक्षण व्यवस्था पिछड़ी, अनुसूचित और जन-जातियों के आरक्षण के अलावा दी जा रही है। सरकार के मुताबिक इनका हक नहीं मारा जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार: Getty Images

इन सबके बीच सोचने वाली बात यह है 50% अनारक्षित कोटे में भी इन आरक्षित जातियों के लोग जा सकते थे, जो अब मात्र 40%  कोटे पर आकर सिमट गई है।

आरक्षण लागू होने में आने वाली मुश्किलें

अन्य राज्यों में भी यही हालात हैं। अंततः इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सवर्ण आरक्षण यह एक चुनावी जुमला है, जिसे लोकसभा के अंतिम सत्र में लाया गया है।

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