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“क्या अलगाववादी नेता कश्मीर में पत्थरबाज़ों को उकसाते हैं?”

पत्थरबाज़

पत्थरबाज़

मीडिया का छात्र होने के नाते न्यूज़ चैनलों में जाकर बहस में शामिल होने के कई मौके मिले। बीते कुछ दिनों में जिस भी टॉक शो में शामिल होने गया, वहां मुद्दा केवल पुलवामा था।

मुझे इन बहसों में शामिल होने के बाद कुछ जानकारियां मिली। टॉक शो के दौरान मैं जान पाया कि जितने भी आतंकवादी हमले हुए हैं, उन्हें फन्डिंग करने में भारत के पैसों से पल रहे अलगाववादी नेताओं का हाथ रहा है। वे लोग देश के अंदर रहकर देश के साथ ही खिलाफत करते हैं।

पत्थरबाज़ों को मार देना समाधान नहीं

कश्मीर के नौजवानों को धर्म का गलत पाठ पढ़ाकर उन्हें हमारे सैनिकों के ऊपर पत्थर चलाने के लिए उकसाया जाता है। मैंने हर बहस में ऐसी बातें सुनी हैं कि पत्थरबाज़ों को मार देना चाहिए या उनको दर्दनाक सज़ा देनी चाहिए, जिससे उनकी रूह कांप जाए।

फोटो साभार: Getty Images

यह सज़ा देने की उपर्युक्त बातें कुछ हद तक तो सही है लेकिन ऐसी चीज़ों पर तर्क के आधार पर बात करने की ज़रूरत है। यदि हमें कश्मीर में युवाओं द्वारा पत्थरबाज़ी रोकनी है, तो असली कारणों का पता लगाते हुए उनपर काम करने की ज़रूरत है।

शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी

यदि वाकई में हम कश्मीरी युवाओं को सही रास्ते पर लाना चाहते हैं, तो हमें कश्मीर के विद्यालयों में बेहतर शिक्षा व्यवस्था बहाल करने की ज़रूरत है। हम जब कश्मीर में शिक्षा व्यवस्था पर काम करेंगे, तब चीज़ें धीरे-धीरे सही होने लगेंगी। एक वक्त ऐसा आएगा जब कश्मीर के युवाओं को कोई अलगाववादी नेता भड़का नहीं पाएंगे।

कश्मीर के स्कूलों में नैतिकता और देशप्रेम की कुछ किताबों को भी लागू करने की ज़रूरत है, जिसे देश की आने वाली पीढ़ी पढ़ सके। इसी कड़ी में मैं कुछ पक्तियां पेश करना चाहूंगा।

जब आंख खुले तो धरती हिन्दुस्तान की हो
जब आंख बंद हो तो यादें हिन्दुस्तान की हो।
हम मर भी जाएं तो कोई गम नहीं लेकिन
मरते वक्त मिट्टी हिन्दुस्तान की हो।

मैं नैतिकता के पाठ को पढ़ाए जाने की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि कहीं ना कहीं अलगावादियों को भी आतंक का पाठ पढ़ाया गया होगा लेकिन एक बात ध्यान देना चाहिए कि आतंकवाद का पाठ कितना भी बड़ा क्यों ना हो, देशभक्ति के सिलेबस से कभी बड़ा नहीं हो सकता।

कुछ लोग कहेंगे कि स्कूलों में नैतिकता का पाठ पढ़ाया तो जाता है। अब प्रश्न यह है कि हमें पढ़ाने वाले शिक्षक कौन हैं? ज़्यादातर स्कूलों में देखा जाता हैं कि नैतिक विषय वही शिक्षक पढ़ाते हैं, जिन्हें किसी और विषय के बारे में जानकारी नहीं होती है।

फोटो साभार: pixabay

कई दफा देखा जाता है कि नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले ऐसे ही शिक्षक स्कूल में छुट्टी के बाद अनैतिक कार्य करते दिख जाते हैं। जिन शिक्षकों के हाथ में बच्चों का भविष्य होता है, यदि वही शिक्षक अनैतिक कार्य करेंगे तो बच्चों का क्या होगा?

ये तमाम बातें मैं यहां पर इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कश्मीर में ज़मीनी स्तर पर हमें काम करने की ज़रूरत है। हमें वहां जाकर देखना होगा कि किस तरीके से बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।

जहां तक राजनीति की बात है, तो वह पहले भी होती थी, अब भी होती है और आगे भी होती रहेगी। इन सबके बीच कभी-कभी बिना परिणाम के बहसों का सिलसिला भी जारी रहेगा।

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