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“यह टेलीविज़न के अंत और सिटीज़न जर्नलिज़्म के उदय का दौर है”

Citizen journalism

भारत में पत्रकारों के दो गुट हैं या फिर यह कह सकते हैं एक ही गुट है। वजह, एक गुट तो पत्रकारिता करता है लेकिन बाकी के बचे हुए लोग जिनके पास पत्रकारिता की डिग्रियां हैं, वे सिर्फ चाटुकारिता करते हैं।

पुण्य प्रसून बाजपेयी का नाम उन पत्रकारों में से एक है जो पत्रकारिता करते हैं। पहले उन्हें ‘आज तक’ से रामदेव के इंटरव्यू के बाद निकाला गया। फिर उन्हें पीएम मोदी के एक झूठ का खुलासा करने पर ‘एबीपी न्यूज़’ से निकाला गया। अब आखिर में उन्हें सूर्या चैनल से निकाल दिया गया है। यह वही सूर्या चैनल है, जो बाजपेयी के नाम पर अपना प्रमोशन कर रहा थाटी

पुण्य प्रसून बाजपेयी। फोटो सोर्स- फेसबुक

अब सवाल यह उठता है कि कौन है, जो प्रसून के पीछे हाथ धोकर पड़ा है। या फिर सिर्फ प्रसून के पीछे नहीं बल्कि हर उस पत्रकार के पीछे पड़ा है, जो चाटुकारिता की जगह पत्रकारिता करता है। पिछले शुक्रवार को अहमदाबाद के चिराग पटेल को जला दिया गया, मणिपुर के पत्रकार किशोर चंद्र वांगखेम पर एनएसए लगा दी गयी, गौरी लंकेश जैसे पत्रकारों को मार दिया गया, रवीश कुमार को आए दिन धमकियां मिलती हैं। ये पत्रकार भी एसी रूम में बैठकर एंकरिंग कर सकते थे, इनके घर भी भरी अटैचियां आ सकती थीं लेकिन इन्होंने ऐसा नहीं किया।

आज प्रेस की वर्तमान स्थिति को देखते हुए हमें इतिहास में झांकने की ज़रूरत है

भारत प्रेस की स्वतंत्रता में 138वें नंबर पर पहुंच गया है। भारत में इमरजेंसी के अतिरिक्त प्रेस की ऐसी हालत नहीं थी। आज हमें इतिहास में झांकने की आवश्यकता है। फ्रांस की 1830 की क्रांति का मुख्य कारण प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म करना था। जब 1830 में प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया था, तब पत्रकारों ने क्रांति शुरू की और जनता से फ्रांस के क्रांतिकारी सिद्धांतों की रक्षा की अपील की। इसके बाद विद्यार्थी, मज़दूर और किसान इस क्रांति से जुड़ते गए।

यह टेलीविज़न के अंत और सिटीज़न जर्नलिज़्म का दौरा है

फोटो सोर्स- pexels.com

आज प्रेस की स्वतंत्रता खत्म होने और प्रेस पर पूंजीपतियों और राजनीति के प्रभाव के कारण ही लोग अब मेनस्ट्रीम मीडिया का साथ छोड़ रहे हैं। 2014 के बाद मानो ऑनलाइन वेब पोर्टल की बाढ़ सी आ गई है। लोगों ने अपनी फेसबुक और ट्विटर की वॉल को न्यूज़ देने का स्त्रोत बना दिया है। आज जैसे-जैसे सिटीज़न जर्नलिज़्म को बढ़ावा मिल रहा है, वैसे-वैसे इन चाटुकार पत्रकारों के मुंह पर तमाचा पड़ रहा है। मीडिया की खस्ता हाल के कारण ही आज Youth Ki Awaaz जैसे प्लैटफॉर्म जनता को पसंद आ रहे हैं।

भारत में वर्तमान युग न्यूज़ वेब पोर्टल का युग है, सिटीज़न जर्नलिस्म का युग है। लोग मिलकर नए-नए वेब पोर्टल्स बना रहे हैं, जिससे वह जनता को जानकारी दे सकें, क्योंकि न्यूज़ चैनल जानकारी नहीं प्रोपेगेंडा परोस रहे हैं। अब कुछ गिने चुने लोगों के काफी मेहनत के बाद सिर्फ मोबाइल फोन पर जानकारी मिल रही है। यह टेलीविज़न के अंत का दौर है और वाकई में जब तक चुनाव नहीं हो जाते, हमें टीवी बंद कर देना चाहिए। वरना हम भी उस प्रोपेगेंडा का शिकार हो जाएंगे, जो सत्ता हमें परोसना चाहती है, पत्रकारिता का अंत करके।

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