Site icon Youth Ki Awaaz

उत्तर प्रदेश का वह गाँव जहां पहुंचने के लिए सड़कें नहीं हैं

गाँव की तंग सड़कें

गाँव की तंग सड़कें

आग की अपनी भयावहता है। लपटें जब उठने लगें तो हरे-भरे जंगल को राख बनाने की क्षमता रखती हैं। बात 90 के दशक की है, जब यमुना की तलहटी में बसे आगरा की बाह तहसील के सुन्सार गाँव में भयानक आग लगी थी।

इस गाँव में पहुंचने के लिए कोई वैध रास्ता नहीं है। खैर, हैरान होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि गाँव वाले जिस संकरे और भयानक रास्ते का प्रयोग करते हैं, उसपर वन विभाग अपना दावा करता है।

आग लगी और इतनी भयानक लगी कि लोगों को जलते घर छोड़कर यमुना किनारे भागना पड़ा। अपने कच्चे घरों और बड़े जतन से बनाई गई झोपड़ियों को गाँव वालों ने बड़ी लाचारी से जलते देखा होगा।

तंग सड़कों के साथ अनेकों परेशानियां

उस मंज़र की कल्पना करना बेहद मुश्किल है। उसके बाद की स्थिति पर बात करते हुए वरिष्ठ क्षेत्रीय पत्रकार शंकर देव तिवारी कहते हैं, “तत्कालीन एसडीएम आर.के. गुप्ता और एडीएम बाबा हरदेव सिंह के साथ अग्निकांड के बाद मैं भी गाँव में गया था। रास्ते की बदहाली के चलते हम लोग करीब 4 किलोमीटर पैदल चलकर गाँव पहुंचे थे। इस मामले में लेखपाल निलंबित किया गया था। प्रशासन ने मेरे प्रश्न के बाद राहत सामग्री उसी दिन तुरंत बंटवाई थी।”

आज इस बात को एक लंबा समय गुज़र चुका है लेकिन गाँव के हालातों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। वही रास्ता, वही परेशानियां और परेशानियों से जूझते, दम तोड़ते गरीब लोग। कैसे रातभर चिल्लाकर तड़पने के बाद एक युवक ने सुबह दम तोड़ दिया। गाँव की खराब सड़कें ही इसके पीछे की वजह है। रास्ता इतना खराब है कि अपनों को लाचारी से मरते हुए देखना पड़ता है।

फोटो साभार: घनश्याम

मैं मेरे साथी स्थानीय पत्रकार राहुल शर्मा जी के साथ इस गाँव के लिए निकला तो यह अंदाज़ा नहीं था कि आज के समय में कहीं इतनी स्थिति भी खराब हो सकती है। थोड़ा सफर तय करने के बाद हमने यमुना के बीहड़ में प्रवेश किया और जब हम रास्ते के खराब हिस्से पर पहुंचे, तो उस तकलीफ का छोटा सा हिस्सा महसूस करने लगे थे, जिसका पहाड़ इस गाँव में रहने वाले लोग रोज़ ढोते हैं।

इलाज के अभाव में युवक की मौत

गाँव के एक शख्स ने बताया कि कुछ समय पहले एक युवक के पेट में दर्द उठा, बरसात का मौसम और रात का समय था। सड़कें ना होने की वजह से किसी भी तरह अस्पताल लेकर जाना संभव नहीं हुआ। युवक सारी रात दर्द से चीखता रहा और अंत में सुबह होते-होते उसने दम तोड़ दिया।

रुंधे गले से शख्स ने हमसे कहा कि जब कोई अपना हमारी आँखों के सामने दम तोड़ता है, तो हम बहुत लाचार महसूस करते हैं, हमें हर पल बस यही लगता है कि हम नर्क में रह रहे हैं। यह गाँव हमारी जन्मभूमि है, हमारा स्वर्ग है लेकिन रास्ते की यह समस्या लगभग सभी दुखों का कारण हैं।

गर्भवती महिलाओं को ट्रैक्टर में अस्पताल जाना पड़ता है

स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का यह सिर्फ एक मामला नहीं है। यहां रहने वाले लोग अकसर ऐसी स्थिति का सामना करते और उनसे जूझते हैं। गर्भवती महिलाओं को ट्रैक्टर से अस्पताल लेकर जाना पड़ता है, रास्ता इतना खराब है कि एम्बुलेंस की तो छोड़िए बारिश के समय तो पैदल निकलना भी संभव नहीं होता है।

बेहद खराब रास्ते पर ट्रैक्टर में ले जाने के कारण कई बार बच्चे का जन्म अस्पताल पहुंचने से पहले हो गया है, कई मामलों में शिशु या माँ की ज़िन्दगी खतरे में पहुंच गई है और कुछ मामलों में जान तक चली गई है।

वन विभाग की दबंगई

आखिर क्यों नहीं बन पा रही है इस गाँव की सड़क? कई प्रयास कर चुके गाँव वाले अब बस भगवान से दुआ करते हैं। यह गाँव यमुना किनारे जंगल में बसा हुआ है। आसपास की ज़मीन वन विभाग के संरक्षण में हैं और जिस जगह से पक्का रास्ता गुज़रना है, उसपर वन विभाग अपना आधिपत्य बताता है।

कई सर्वे और प्रयासों के बाद एक बार सड़क का काम प्रारम्भ हुआ लेकिन वन विभाग ने कड़ी कार्रवाई करते हुए ग्राम प्रधान, पीडब्ल्यूडी और ठेकेदार समेत मज़दूरों तक पर एफआईआर दर्ज़ करा दी। यहां तक कि लोगों को जेल भी जाना पड़ा।

फोटो साभार: घनश्याम

जो गरीब मज़दूरी के लिए काम कर रहा था, उसे सरकारी पचड़े में पड़कर अपनी ज़मानत करानी पड़ी। वन विभाग द्वारा संरक्षित होने के कारण यहां रास्ता बनवाना प्रदेश के राज्यपाल, देश के राष्ट्रपति, न्यायालयों या स्वयं वन विभाग के हाथ में बताया जाता है। यह उस शख्स का कहना है, जो इन कामों में दफ्तर-दफ्तर भटका है।

गाँव वाले कहते हैं कि हमारी बेटियों से कोई ब्याह नहीं करना चाहता और ना ही अपनी बेटी हमारे गाँव में देना चाहता है। इसकी एक ही वजह है, यहां के रास्तों का नर्क जैसा होना।

बच्चियों की पढ़ाई संकट में

गाँव वालों की यह बात सुनकर मैं हैरान था लेकिन जब विस्तार से उन्होंने बताया तो हैरानी की परतें हटती गईं और उनकी बात मुझे माननी पड़ी। उनका कहना था कि रास्ता ऐसा है कि आना-जाना बहुत मुश्किल है, जिसके चलते बच्चियों को कोई बाहर पढ़ने नहीं भेजता।

एक तो रास्ता खराब ऊपर से घना बीहड़, यह बच्चों की पढ़ाई छुड़वा देते हैं फिर जब बच्चे पढ़े नहीं तो शादी में दिक्कतें आना स्वाभिविक हैं। लड़के अनपढ़ और बेरोजगार हैं, पूरे गाँव में सिर्फ एक ही व्यक्ति ऐसा है जो सरकारी नौकरी कर रहा है और वह भी इसी गाँव के स्कूल में शिक्षक है। लड़कियों की शादी में बरात को भी पैदल ही आना पड़ता है। बसों का यहां तक पहुंच पाना संभव नहीं है और गाड़ियों का भी आना बेहद मुश्किल है।

समस्याओं के बीच बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने वाली बच्ची

इन सबके बीच एक बच्ची ऐसी भी है, जो गाँव के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती हैं। उसने हमसे कहा, “मैं अकेली लड़की हूं गाँव से जिसने बीए किया है, मैं आगे भी पढ़ रही हूं और चाहती हूं कि यहां के सब बच्चे पढ़ें लेकिन यह इतना आसान नहीं है। हम यहां रहते हैं लेकिन कोई बाहर से आए और कुछ समय यहां रहे, तब उसे समझ आएगा कि यहां की परिस्थितियों में जीना भी मुश्किल है।”

गाँवों की इस यात्रा के दौरान हमारी कोशिश है कि जागरुकता लाने के साथ-साथ एक समाधान का भी प्रयास करें। हम चाहते हैं कि अगर आप इस समस्या के समाधान के लिए कोई सुझाव देना चाहते हैं, तो अवश्य दें क्योंकि समाधान हज़ार से ज़्यादा की आबादी की ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी है।

Exit mobile version