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“आदिवासियों को अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए खुद लड़ाई लड़नी होगी”

आदिवासी समुदाय

आदिवासी समुदाय

आदिवासी शब्द का अर्थ अनादि काल से रहने वाला वह पहला मानव जिसका जन्म इस धरती पर सबसे पहले हुआ। अदिवासी समुदाय की अपनी भाषा, व्यवहार, संस्कृति, ज़रूरतें और पहचान हैं।

ये चीज़ें वह आदिवासी बेहतर समझ सकता है, जिसे यह एहसास है कि उसका आदिवासी होना कितने गौरव की बात है। दुनिया में करोड़ों आदिवासी रहते हैं और सबकी अपनी-अपनी संस्कृति है, जिनके साथ वे जी रहे हैं।

इसी तरह हमारे भारत देश के 8 से 9 राज्यों में जहां अधिक मात्रा में आदिवासी रहते हैं, वहां भी राज्य से लेकर ज़िले और तहसील तक भाषा बदलती है। यह भी एक अलग पहचान है, जिसे सुरक्षित रखना हर आदिवासी समाज के व्यक्ति का फर्ज़ है। इसे निभाने के लिए उसे भरसक प्रयास करनी चाहिए, जिससे आदिवासी भाषा और आदिवासी अस्तित्व ज़िंदा रहे।

आदिवासी समाज और बदलती संस्कृति

राजस्थान राज्य के उदयपुर ज़िले की तहसील कोटड़ा में कुल 95% आदिवासी समुदाय रहते हैं। साथ ही पास में गुजरात राज्य के पोशिना, खेद्ब्रह्मा और दांता तहसील में भी आदिवासी समुदाय अधिक संख्या में रहते हैं।

इसके अलावा राजस्थान के सिरोही ज़िले की अबू रोड तहसील और पिण्डवाडा तथा पाली ज़िले की भी बाली तहसील इसके साथ-साथ राजस्थान के कुल पांच ज़िलो में आदिवासी लोग रहते हैं।

आदिवासी महिलाओं की प्रतिकात्मक तस्वीर

यहां रहने वाले एक व्यक्ति के साथ बातचीत के दौरान वह बताते हैं, “वक्त के साथ बदलाव बेहद ज़रूरी होता है। इस बात का ज़िक्र किताबों में भी है लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है कि हर जगह पर बदलाव हो। अब हमारे आदिवासी समुदाय के बारे में यदि आप पूछेंगे तो हम यही कहेंगे कि सब ठीक है, हम बदलाव नहीं चाहते हैं लेकिन अब धीरे-धीरे काफी कुछ बदल गया है।”

राजस्थान और गुजरात के आदिवासी इलाकों में समाज के रिवाज़ों में काफी परिवर्तन हुए हैं। आदिवासी समुदाय में वक्त के साथ रिवाज़ो को  बदला तो ज़रूर गया मगर इससे जो परिणाम आ रहे हैं, उनसे लोग अपने आपको दुखी महसूस करते हैं।

लोग बताते हैं कि हमारे आदिवासी समाज में जिन कुरीतियों ने जन्म लिया है, उन्हें खत्म करना होगा लेकिन वही बात आती है कि आदिवासी संस्कृति कहां गई? उनकी सुरक्षा कब और कैसे?

बदलाव, विकास और सुरक्षा

आदिवासी समाज में नए रिवाज़ों की शुरुआत तो ज़रूर हुई है लेकिन इन्हीं रिवाज़ों के ज़रिए फैलने वाली गलत चीज़ों को और बढ़ावा दिया गया। जो नियम हमें आगे बढ़ने से रोकते हैं, उन्हें समाज की संस्कृति से निकाल देना चाहिए। साथ ही जो हमारी संस्कृति हैं, उन्हें बचाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।

इसके साथ ही आदिवासी समुदाय जिस गाँव या पंचायत में रहते हैं, वहां की स्थिति बहुत ही भयंकर है। जो सुविधाएं और व्यवस्था होनी चाहिए, वे भी नही हैं। इस कारण लोगों को कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है।

इन सभी की मांग उठाने के लिए आदिवासी समुदायों मे कोई भी व्यक्ति आगे नही आ रहा है। हर कोई बस अपनी खुद की ज़िन्दगी बेहतर करने में लगे हुए हैं।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

आज जो युवा समाज के लिए सोचकर उसका भला कर सकता है, वही खुद को आदिवासी कहने से भी डरता और शर्म महसूस करता है, फिर कैसे होगा समाज का विकास? आदिवासी समाज को विकास, बदलाव और सुरक्षा के लिए मज़बूत युवा टीम की ज़रूरत है।

हमारे आदिवासी समाज में कई ऐसे बच्चे हैं जो पढ़ने के लिए स्कूल नहीं जाते हैं। ऐसे वक्त पर ज़रूरत है कि गाँव में सभी लोग एकजुट होकर किसी सकारात्मक पहल के ज़रिये बदलाव की बात करें।

इन चीजों को अमल करने पर हर आदिवासी युवा यह समझ पाएगा कि सही मायनों में आदिवासी होने का क्या अर्थ है, क्योंकि वह धरती के पहले मानव का अंश है।

आदिवासी ही आदिवासी का दुश्मन

मौजूदा वक्त में आदिवासियों को आदिवासी से ही खतरा है। आज आदिवासियों को विभिन्न विचारधाराओं से जोड़कर अलग-अलग धर्मो में परिवर्तित किया जा रहा है, जहां एक आदिवासी अपनी वास्तविक पहचान को भूलकर किसी अन्य पंथ का प्रचार कर रहा है। उसे ही सबकुछ मानकर अपनी संस्कृति खत्म कर रहा है।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

जब आदिवासी समुदाय अपने आप में अलग हैं, उनका अपना इतिहास और भूगोल है, फिर वे क्यों किसी अन्य धर्म के चक्कर में पड़कर अपनी संस्कृति से दूर जा रहे हैं?

नोट: विनोद ने अलग-अलग आदिवासी इलाकों में भ्रमण के आधार पर यह स्टोरी लिखी है।

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