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बिहार में बहार है नाक में दम करने वाला भ्रष्टाचार है

रिश्वत लेते हुए प्रतीकात्मक तस्वीर

रिश्वत लेते हुए प्रतीकात्मक तस्वीर

बिहार की जितनी भी तारीफ कर लीजिए लेकिन उसकी सच्चाई यही है कि वहां के लोग बदलना नहीं चाहते हैं। दफ्तर से लेकर स्टार्टअप तक जो भी मैंने देखा और समझा वो यही है कि यहां के लोगों को बस दाल-रोटी से मतलब है।

बिहार सरकार ने स्टार्टअप पॉलिसी के तहत 500 करोड़ का फंड भी दिया मगर लोगों ने तीन सालों में करीब 10-15 करोड़ ही खर्च किए। अब जब इलेक्शन होने में सिर्फ एक साल बचे हैं, तब सरकारी अफसरों पर गाज़ गिरी है। वे पैसे खर्च करने का नया-नया तरीका खोज रहे है।

तीन सालों में जिस इनक्यूबेशन सेंटर से एक भी फंडिंग नहीं हुई है, वहां आज-कल आम लोगों को पकड़कर स्टार्टअप में फंडिंग करने की जबरदस्ती हो रही है। कुछ लोग बिना सोचे समझे फंडिंग कर रहे हैं।

उन्हें स्टार्टअप से मतलब ही नहीं है। स्टार्टअप को लोगों ने मज़ाक बनाकर रखा है। कुछ लोगों का तो यह मानना है कि अगर कुछ नहीं हो रहा है, तो स्टार्टअप में फंडिंग कर लो। कॉलेज और यूनिवर्सिटीज़ की स्थिति भी यही है।

पिछले तीन सालों से मगध महिला कॉलेज में इन्क्यूबेशन के बावजूद कोई ज़मीनी काम होती नहीं दिखी है। जब NAAC की टीम को दिखाने की बात आती है, तब लोग इवेंट करके दिखा देते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: सोशल मीडिया

उदाहरण के तौर पर इंडस्ट्री डिपार्टमेंट को ही ले लीजिए। जब रेड पड़ी और मीडिया में खुलासा होना शुरू हुआ तो लोग एक-दूसरे को लिखने और शेयर करने से मना करने लगे।

ऐसी बहुत-सी बातें हैं, जो यहां लिखना सही नहीं है लेकिन हां, बिहार की झूठी आन-बान और शान मैं नहीं रख सकता। जो लोग मुझसे पूछ रहे थे उन्हें बता दूं कि आज भी बिहार की दशा वही है। टेबल पर जब-तक कमीशन के पैसे नहीं आते तब-तक कुछ नहीं होता है।

बिहार के हालात देखकर मैं आपको झारखंड में इन्वेस्ट करने की सलाह दूंगा लेकिन अगर आपकी सरकार और सरकारी आला अफसर से सांठ-गांठ है, तब आप बिहार में इन्वेस्ट कर सकते हैं। इन्वेस्टमेंट यानि अपना टाइम और पैसा दोनों ही लगाना।

देखा जाए तो बिहार की हालत काफी नाज़ुक है। सरकारी विभागों में काम करवाने वाले लोगों को कई दिनों तक चक्कर काटना पड़ता है। इसके बावजूद उनका काम होगा या नहीं, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है।

यदि आपको कोई छोटा काम भी करवाना है, तो मोल-भाव  के बाज़ार में आपको भी बार्गेनिंग करनी पड़ेगी। यानि कि मतलब साफ है, पैसा खिलाएंगे तो काम होगा, नहीं तो चक्कर काटते-काटते परेशान होने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

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