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“क्रिक्रेट के बाद अब राजनीति के लिए भी क्यों बेहतर चेहरा हैं गौतम गंभीर”

साल 2008, फिरोज़शाह कोटला स्टेडियम। इंडिया वर्सेज़ ऑस्ट्रेलिया, बॉर्डर गावस्कर सीरीज़ का तीसरा मुकाबला। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ों में से एक शेन वॉटसन ने 65 रन के स्कोर पर खेल रहे औसत कद के दुबले-पतले भारतीय लड़के को एक गेंद फेंकी। लड़के ने गेंद पर एक ज़ोरदार प्रहार किया और अपनी पूरी ताकत के साथ एक रन के लिए दौड़ पड़ा। वह सामने के क्रीज पर पहुंचने ही वाला था कि शेन वॉटसन ने अपनी खीझ में उसे अपनी कोहनी दिखाते हुए कुछ बताने का प्रयास किया।

इस बार जब वह दूसरे रन के लिए पलटा तो इस बीच वह अपनी कोहनी की भूमिका तय कर चुका था और चंद कदम आगे बढ़ते ही जो हुआ उस समय पूरी दुनिया उस ऐतिहासिक क्षण की गवाह बन रही थी। जब ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट इतिहास में पहली बार उनके ‘स्लेजिंग कल्चर’ को किसी भारतीय ने सीधी चुनौती दे दी थी। उस लड़के ने शेन वॉटसन को अपनी कोहनी से हिट कर दिया।

यह सिर्फ एक कोहनी नहीं थी, उस दिन ‘भारतीय मनोबल’ ने ‘ऑस्ट्रेलियाई दम्भ’ पर एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की थी। इसका आगाज़ सन् 2002 में देश के सफलतम कैप्टन सौरभ गांगुली, लॉर्ड्स के विश्वप्रसिद्ध मैदान में अंग्रेज़ों के सामने हवा में अपनी शर्ट को लहराते हुए ‘एयर स्ट्राइक’ करके पहले ही कर चुके थे। जिसमें सफलतापूर्वक इस ‘मिथ’ को तोड़ दिया गया कि भारत सिर्फ एक रक्षात्मक देश है, आक्रामक नहीं।

जिसके महत्व की अभिव्यक्ति ‘दिनकर’ की इन पंक्तियों में बड़े ही व्यापक तरीके से होती है-

क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,

उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो।

हालांकि यह कोई पहला वाकया नहीं था, जब उन्होंने किसी टीम को मुंह तोड़ जवाब दिया हो। इससे पहले वह ‘पाकिस्तानी टीम’ के विस्फोटक बल्लेबाज़ शाहिद अफरीदी को ‘उन्हीं की भाषा में जवाब’ दे चुके थे। जबकि उन्हें इन वजहों से कभी बैन तो कभी जु़र्माने के रूप में ‘गंभीर’ परिणाम भुगतने पड़े।

राजनीति में गौतम गंभीर

यह सारी बातें कल एक क्रम से मेरे दिमाग में दौड़ गईं, जब मैंने उन्हें एक राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में स्थापित होते देखा। एक नई भूमिका, एक नया भविष्य, एक नई सोच पर वही पुराने तेवरों के साथ, जिसमें उन्होंने जाने के संकेत अपने आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच के तुरंत बाद हुए साक्षात्कार में दे दिए थे।

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद जब एक साक्षात्कार में उनसे राजनीति में आने के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था “यदि मुझे मौका मिला तो मैं राजनीति में जाऊंगा लेकिन रबर स्टैंप नहीं बनूंगा”।

अब जब वह राजनीति में सक्रिय रूप से अपनी भूमिका तय कर चुके हैं, तब उनके राजनीतिक व्यक्तित्व को समझने के लिए उनके क्रिकेटर व्यक्तित्व को तय करने वाले दृश्य में झांकने की ज़रूरत है।

राजनीति के सफर की शुरुआत से पहले एक क्रिकेटर के रूप में गौतम गंभीर के व्यक्तित्व की झलक

फोटो सोर्स- Getty

2011 विश्वकप, विश्व प्रसिद्ध वानखेड़े स्टेडियम में खेला जा रहा है। वह फाइनल मैच, जिसमें वह सेंचुरी से मात्र तीन रन दूर होते हैं। ऐसे संवेदनशील स्कोर पर होकर जिसमें दुनिया के सर्वाधिक महान बल्लेबाज़ भी ‘नर्वस नाइंटीज़’ का शिकार हो जाते हैं। नर्वस होना लाज़िमी है, जब वो गेंद वह महान बॉलर फेंक रहा हो, जो दिग्गज क्रिकेटरों के सपनों में आकर उनकी नींद खराब करने के लिए मशहूर होता है। यह जानते हुए भी कि वह अब तक के वर्ल्डकप इतिहास में एक नया रिकॉर्ड बनाने की दहलीज़ पर खड़े हैं।

उस समय की सर्वाधिक आवश्यक ‘रनरेट’ को बरकरार रखने के लिए खुद के ‘निजी उपलब्धि’ की परवाह किये बिना, वो लेग साइड में रूम बनाकर ‘डाउन द पिच’ आते हैं, स्लॉग करते हैं और मिस कर जाते हैं। मिडिल स्टंप अपनी जगह से थोड़ा हिल जाता है।

एक पल के लिए वानखेडे स्टेडियम में शांति छा जाती है और अगले ही पल पूरा स्टेडियम तालियों की गूंज़ से भर जाता है। लोग उस विश्वकप फाइनल के सर्वाधिक विजयी पटकथा लिखने वाले नायक के लिए खुश थे लेकिन शायद बाद में सबके लिए रह जाने वाले उस मलाल के साथ, जिसमें उनको व्यक्तिगत रूप से ‘गंदी जर्सी’ के सिवा कुछ नहीं मिल पाया।

साल 2007 में उनकी वर्ल्ड T20 फाइनल की पारी को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता है, जिसमें उनके द्वारा अकेले 57% रन बनाने के बाद भी उनकी भूमिका पार्श्व में तय कर दी जाती है।

शायद हमें उनके बाकी कई उपलब्धियों को जानने के लिए विकिपीडिया का सहारा लेना पड़ सकता है। जिनमें से शायद यह भी कि वह भारत के एकमात्र ऐसे कप्तान रहे हैं, जो पांच से अधिक वनडे में कप्तानी करने के बावजूद कभी नहीं हारे।

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद सामाजिक मुद्दों पर गंभीर की भूमिका

वह क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद देश के कई बड़े मुद्दों और समस्याओं पर सोशल मीडिया और अन्य तरीकों से अपनी प्रतिक्रियाएं रखते रहे हैं। पुलवामा आतंकी हमले के बाद उन्होंने वर्ल्ड कप में भारत-पाक मैच को लेकर कहा था,

अगर भारत को पाकिस्तान के खिलाफ वर्ल्ड कप फाइनल भी खेलना पड़े तो उस मैच को नहीं खेलना चाहिए। मैं मानता हूं कि हमारा देश भी इसके लिए तैयार नहीं होगा। हमें अपने फैसलों पर यू-टर्न नहीं लेना चाहिए। जैसा कि समाज के कुछ तबकों से आवाज़ आनी शुरू हो चुकी है कि हमें खेल और राजनीति की एक साथ तुलना नहीं करनी चाहिए।

उनके सामाजिक व्यक्तित्व की कुछ समझ उन घटनाओं से बनाई जा सकती है, जब उन्होंने छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सली हमले में 25 शहीद जवानों के बच्चों के पढ़ाई की ज़िम्मेदारी को आगे बढ़ कर स्वीकार किया था।

फिर चाहे असम में शहीद सीआरपीएफ जवान दिवाकर दास के परिवार के खर्चे की बात हो, या जम्मू कश्मीर में शहीद हुए पुलिस अफसर अब्दुल राशिद की बेटी जोहरा के शैक्षणिक ज़िम्मेदारी की। चाहे गरीबों के लिए दिल्ली में लंगर की शुरुआत रही हो या ऑर्गन डोनेशन कैंप में हिस्सा लेना। इन्होंने अपने ‘फाउंडेशन’ के माध्यम से देश के लिए अपनी ज़िम्मेदारी के ‘गंभीर’ भाव को दर्शाया।

6 सितंबर 2018 को जब सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले से देश मुखातिब हुआ, जिसमें ‘धारा 377’ को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था। जब लोग दबी आवाज़ से इस फैसले का समर्थन या विरोध अपने तर्कों या अनुभवों के आधार पर कर रहे थे, तब भारतीय समाज में ‘एलियन’ की तरह देखे जाने वाले LGBTQ+ समाज के लोगों ने अपने हक की लड़ाई की जीत के जश्न में 11 सितंबर को एक ‘हिजड़ा हब्बा’ प्रोग्राम रखा।

फोटो सोर्स- फेसबुक

शाम तक इस कार्यक्रम की एक खास तस्वीर पूरे सोशल मीडिया पर वायरल होकर चर्चा का विषय बन गई। वह तस्वीर इसी क्रिकेटर की थी, जिसके माथे पर लाल बिंदी और सिर पर काले दुपट्टे से निकलने वाला संदेश उस सामाजिक दोहरेपन को चुनौती दे रहा था, जिसमें लोग इस समुदाय का समर्थन तो कर सकते हैं लेकिन अपने बराबर सम्मान कभी नहीं देते।

खैर, अब आगे उनका राजनीतिक भविष्य है और पीछे एक खूबसूरत उपलब्धियों की श्रृंखला। उम्मीद है कि उपलब्धियां अब नए आयामों के द्वार का वाहक बनेंगी। गौतम के राजनीतिक ‘गंभीरता’ से देश परिचित होगा और शायद जिसकी प्रतिध्वनि उनके एक साक्षात्कार के दौरान दिए गए उत्तर में मिलती है। उन्होंने कहा था,

अगर मैं राजनीति में कभी गया तो लोगों से यही कहूंगा कि वह क्रिकेटर गंभीर को वोट ना दें। मैं उनसे कहूंगा कि वह उस गौतम गंभीर को वोट दें, जो ज़िन्दगी में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखता है। उनकी जिंदगी में बदलाव लाना चाहता है। मैं झूठ की राजनीति पसंद नहीं कर सकता, मैं वही कहता हूं जो मैं कर सकता हूं। इसमें जो लोग भरोसा करते हैं वही मुझे वोट दें।

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