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“सर्फ एक्सेल के विज्ञापन के विरोध में मैं भी हूं मगर वजह कुछ और है”

अध्यापक, मॉं और बाल मनोविज्ञान समझने वाले की हैसियत से कह रही हूं, बच्चों को धोती टोपी कण्ठी माला से ही नहीं, बल्कि ऐसी दकियानूस परम्पराओं की पहचान से भी दूर रखना चाहिए।

बाज़ार एक दिन सब नष्ट कर देगा, उसे हमारे बच्चों के मन से खेलने की इजाज़त नहीं देनी चाहिये। रंग त्यौहार परम्परा और बच्चे चार बेहद संवेदनशील अवयव को लेकर सर्फ एक्सेल का होली का विज्ञापन रचा गया है, जिसमें बच्चों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए। खेलिये ना आप बड़ों के साथ ऐसे खेल मगर हमारे बच्चों को बख्शिये।

फोटो सोर्स- Youtube

सर्फ एक्सेल के विज्ञापन में जिस उम्र के बच्चों को शामिल किया गया है उनके मन में पैदा हुए कौतुहल और जिज्ञासाओं का उत्तर उन्हें गहरे अंधेरे की ओर धकेलेगा। क्या कहेंगे जब एक बच्चा यह विज्ञापन देखने के बाद आपसे पूछेगा कि यह बच्चा होली के दिन रंग से क्यों बच रहा है? इसने टोपी क्यों पहन रखी है? धोती, टोपी, माला, कण्ठी और घुटनों तक पहुंचते पजामों से बच्चों का परिचय बिल्कुल ज़रूरी नहीं। मगर बच्चों के मन की परवाह किसे है? जितना कूड़ा भर सकें भर दें उनके दिमाग में।

क्या हमारे पास अपने बच्चों के लिए इतना वक्त बचा है कि उन्हें विस्तार से दूसरे धर्म के रीति रिवाज़ और परम्पराएं बताई जाएं और यदि बताई जाएं तो औचित्य क्या है, बच्चों को यह सब दिखाने समझाने का? यह हमारी नई नैतिक शिक्षा की कहानी है, जिसमें एक लड़की अपने साथी को उसके धर्मस्थल तक पहुंचाती है, अपने होली के हुरियारे दोस्तों से बचाकर।

सावधान! बच्चे इससे मदद करने के अलावा परोक्ष रूप से क्या-क्या सीख रहें, क्या आपको इस बात का अंदाज़ा है? नैतिक शिक्षा के लिहाज़ से यह घटिया कहानी गढ़ी है बाज़ार ने। हमारे पास समय और धीरज है भी तो उन्हें धर्म की शिक्षा के बजाय इतिहास भूगोल विज्ञान साहित्य संगीत पढ़ाया जाए ना कि दकियानूस परम्पराओं में उलझाया जाए।

यह दाग बच्चों के मन पर बहुत गहरा डालेगा। ये दाग अच्छे नही हैं बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं। बाज़ार को हमारे बच्चों को बख्श देना चाहिए। हम धीरे-धीरे बच्चा विरोधी समाज के रूप में विकसित हो रहे हैं, अध्यापकों और अभिभावकों को थोड़ा और सतर्क होने की ज़रूरत है।

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